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(गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित विनयपत्रिका से)
गाइये गनपति जगजगबंदन।
संकर-सुवन भवानी-नंदन।।
सिद्धि-सदन, गज-बदन, बिनायक।
कृपा-सिंधु, सुन्दर, सब लायक।।
मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।
बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता।।
माँगत तुलसिदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे।।
अर्थ-
सम्पूर्ण जगत् के वन्दनीय, गणों के स्वामी श्रीगणेश जी का गुणगान कीजिये, जो शिव-पार्वती के पुत्र और उनको प्रसन्न करनेवाले हैं।
जो सिद्धियों के स्थान हैं, जिनका हाथी का-सा मुख है, जो समस्त विघ्नों के नायक हैं यानी विघ्नों को हटानेवाले हैं, कृपा के समुद्र हैं, सुन्दर हैं, सब प्रकार से योग्य हैं।
जिन्हें लड्डू बहुत प्रिय हैं, जो आनन्द और कल्याण को देनेवाले हैं, विद्या के अथाह सागर हैं, बुद्धि के विधाता हैं।
ऐसे श्रीगणेश जी से यह तुलसीदास हाथ जोड़कर केवल यही वर माँगता है कि मेरे मनमन्दिर में श्रीसीताराम जी सदा निवास करें।
।। श्रीगणेशाय नमः ।।
, (From Vinayapatrika composed by Goswami Tulsidasji)
Sing Ganpati Jagjagbandan. Sankar-Suvan Bhavani-Nandan.
Siddhi-sadan, Gaj-badan, Binayak. Indus of grace, beautiful, worthy of all.
Modak-beloved, Mud-mangal-giver. Vidya-Baridhi, Buddhi-Bidata.
Tulsidas made a demand. Basahin Ramsiya Manas More.
Meaning- Praise Lord Ganesha, the Lord of the Ganas, who is the son of Shiva-Parvati and the one who pleases them.
Who is the place of achievements, who has the face of an elephant, who is the hero of all obstacles, that is, the remover of obstacles, who is the ocean of grace, who is beautiful, who is worthy in every way.
To whom laddoos are very dear, who giver of joy and welfare, who is the infinite ocean of knowledge, the creator of wisdom.
This Tulsidas asks Shri Ganesh ji with folded hands only this boon that Shri Sitaram ji should always reside in my mind temple.
।। SHRI GANESHAYA NAMAH ।।