जिन पंक्तियों के माध्यम से संत तुलसीदास पर ” शूद्र एवं नारी अवमानना ” के आरोप लगते रहे हैं , उनमें से चौपाई के निम्नलिखित दो चरण प्रमुख हैं –
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
(ध्यान रहे कि छंद – चौपाई में चार चरण होते हैं।)
अत: उपर्युक्त पंक्तियों पर हम गंभीरता से विचार करेंगे।
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करने के पहले कुछ तथ्यों की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। महाकवि तुलसीदास जी की ” ढोल गंवार ———- अधिकारी। ” पंक्तियों को लेकर जो कुछ भी हो रहा है , वैसा ही भगवत् गीता के कुछ श्लोकों के साथ नहीं वरन् संपूर्ण भगवत् गीता के साथ हो चुका है।
हम सभी जानते हैं कि रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने अपने आराध्य प्रभु श्री राम को आधार बनाकर भक्तिमूलक महाकाव्य की रचना की , जबकि भगवत् गीता में तो साक्षात पूर्णावतार लीला-पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की वाणी ही है।
गनीमत है कि संपूर्ण रामचरितमानस के साथ ऐसा नहीं हो रहा , केवल उसकी कुछ पंक्तियों के साथ ही हो रहा है।
कहीं दो व्यक्ति या समुदाय आपस में लड़ने को आतुर हों , तो उस स्थिति में वहां किसी सज्जन की भूमिका क्या होगी ? सामान्यतः वह सज्जन दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर लड़ाई बंद कर आपस में मैत्री-भाव पैदा करने का प्रयास करेगा।
पर महाभारत के अंतर्गत भीष्म पर्व में बहुत ही अद्भुत घटना हुई। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध करने के लिए उकसा रहे हैं। यह पढ़कर महात्मा गांधी जैसे लोगों को यह लगा कि इससे भगवान श्री कृष्ण की छवि खराब होगी। इसलिए भगवान श्री कृष्ण की छवि बनाए रखने के लिए ऐसे व्यक्तियों ने यह कहा कि यहां बाह्य-युद्ध की चर्चा नहीं है , बल्कि अपने अंतःकरण में चलने वाले सत् – असत् का युद्ध है। इसका परिणाम यह हुआ की भगवत् गीता की व्याख्या भगवान श्री कृष्ण की व्याख्या से अलग हो गई।
ठीक ऐसा ही भगवान श्रीराम , भक्त तुलसीदास एवं उनकी कृति रामचरितमानस के प्रति भक्ति-भाव रखने वाले कतिपय लोग भी कर रहे हैं।
कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि ‘ शूद्र ‘ शब्द तुलसीदास जी का नहीं है , वरन् उसे गलती से लिखा गया है। वे ‘सूद्र ‘ शब्द के बदले ‘ छुद्र ‘ शब्द का प्रयोग करते हुए दिखते हैं। इसका कारण यह है कि किष्किंधाकांड में तुलसीदास जी ने जो चौपाई लिखी है , उसके प्रथम चरण में ही ‘ छुद्र ‘ शब्द का प्रयोग हुआ है। जो इस प्रकार है –
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई।
जस थोरेहुं धन खल इतराई।।
कुछ विद्वान सूद्र शब्द के स्थान पर पशु के विशेषण के रूप में छुब्ध (क्षुब्ध) शब्द का प्रयोग करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। वे ‘ छुब्ध पशु ‘ की ओर इंगित कर रहे हैं।
कुछ विद्वान ‘ नारी ‘ शब्द के बदले ‘ रारी ‘ शब्द का भी प्रयोग कर रहे हैं। इसके समर्थन में वे पुरानी पांडुलिपियां दिखा रहे हैं। रारी अर्थात् तकरार करने वाला (कुतर्की)।
ऐसे महानुभावों को ऐसा लगता है कि तुलसीदास जी इस चौपाई में शूद्र तथा नारी का प्रयोग कर संपूर्ण शूद्र एवं नारी समाज के सम्मान की अवहेलना नहीं कर सकते हैं।
वे इतनी बड़ी गलती नहीं कर सकते। वे तो सभी का भला चाहते हैं।
(व्याख्या जारी रहेगी। इसे आप अधिकाधिक लोगों तक पहुंचा कर पुण्य के भागीदार बनें।)
मिथिलेश ओझा की ओर से आपको नमन एवं वंदन।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।
Among the lines through which Saint Tulsidas has been accused of “Shudra and women contempt”, the following two stanzas of Chaupai are prominent – Dhol Gawar Sudra Pasu Nari. Officer of gross chastisement. (Keep in mind that there are four steps in Chhand-Chaupai.) Therefore, we will seriously consider the above mentioned lines.
Before explaining the above lines, it is very important to pay attention to some facts. Whatever is happening with regard to the lines “Dhol Gawar ———- Adhikari” of great poet Tulsidas ji, the same has happened not with some verses of Bhagvat Gita but with the entire Bhagvat Gita. We all know that in Ramcharitmanas, Tulsidas ji composed a devotional epic based on his adorable Lord Shri Ram, whereas in Bhagwat Gita, there is only the speech of Supreme Personality of Godhead Shri Krishna. It is a matter of pride that this is not happening with the entire Ramcharitmanas, it is happening only with some of its lines.
Somewhere two people or communities are eager to fight with each other, then what will be the role of a gentleman in that situation? Generally, that gentleman will try to create a feeling of friendship by stopping the fighting by understanding both the sides. But a very wonderful incident happened in the Bhishma festival under the Mahabharata. Lord Shri Krishna is provoking Arjuna to fight. After reading this, people like Mahatma Gandhi felt that this would tarnish the image of Lord Shri Krishna. That’s why in order to maintain the image of Lord Shri Krishna, such people said that there is no discussion of external war here, but the war of truth and falsehood going on in their conscience. This resulted in the interpretation of Bhagavad Gita being different from that of Lord Shri Krishna.
Exactly the same is being done by some people who have devotion towards Lord Shri Ram, devotee Tulsidas and his work Ramcharitmanas. Some people feel that the word ‘Shudra’ does not belong to Tulsidas ji, rather it has been written by mistake. They seem to be using the word ‘Chhudra’ instead of ‘Sudra’. The reason for this is that the word ‘Chhudra’ has been used in the first stanza of Tulsidas ji’s Chaupai written in Kishkindhakand. which is like this – Chudra river was full of Torai. Jas Thorehun Dhan Khal Atrai.
Some scholars seem to be using the word Chubdha (खुभ्द्ध) as an adjective for the animal instead of the word Sudra. They are pointing to the ‘touched animal’. Some scholars are also using the word ‘Rari’ instead of the word ‘Nari’. In support of this they are showing old manuscripts. Rari means one who quarrels (Kutarki).
Such great people feel that Tulsidas ji cannot ignore the respect of the entire Shudra and women society by using Shudra and women in this chaupai. They cannot make such a big mistake. He wants the good of all. (The explanation will continue. Be a part of virtue by making it accessible to more and more people.) Greetings and salutations to you from Mithilesh Ojha. , Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram.