वास्तव में रामायण इंसान के अलग-अलग मनोभावों का ताना-बाना है। इसकी हर घटना इंसान की आंतरिक स्थिति का ही प्रतिबिंब है। रामायण में चित्रित हर चरित्र इंसान के अंदर ही मौजूद है, जो समय-समय पर बाहर निकलता है। उदाहरण के तौर पर जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान के विरुद्ध किसी के कान भरता है तब वह मंथरा बन जाता है। यदि कोई इंसान किसी बाहरवाले की बातों में आकर, अपने शुभचिंतकों पर ही संदेह करने लगे तो उस वक्त वह कैकेयी है।
जब एक इंसान वासना और क्रोध जैसे विकारों के वशीभूत होकर, अपनी मर्यादा लाँघ जाए तो उस वक्त वह रावण है। जब इंसान की निष्ठा सत्य के पक्ष में इतनी गहरी हो जाए कि वह अपने प्रियजनों द्वारा किए जा रहे गलत कार्यों में अपना सहयोग या मूकस्वीकृति देना बंद कर दे और पूरे साहस के साथ उनका विरोध करने हेतु खड़ा हो जाए तो उसके भीतर विभीषण का अवतरण हुआ है।
जब राम (ईश्वर) किसी शरीर के माध्यम से अपना अनुभव कर, अपने गुणों को अभिव्यक्त करना चाहता है तो उस शरीर के, उस इंसान के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ घटती हैं, जो उसमें सत्य की प्यास जगाती हैं। तब उसके हृदय से सत्य प्राप्ति के लिए सच्ची प्रार्थना उठती है। यही प्रार्थना उसके जीवन में सत्य का अवतरण कराती है।
🕉 हरि ॐ 🕉