मानस के अंतर्गत गीताएँ

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आज गीताजयंती के शुभ अवसर पर विशेष
🌲 यह लेख विशेषकर उन भक्तजनों के लिये है जो देवनागरी (संस्कृत) भाषा पढ़ने और समझने में सक्षम नहीं हैं, उनको श्रीमानसजी में ही गीता जी के उपदेशों का लाभ मिलने के लिये प्रसंग लिखे हुए हैं, स्वयं अवलोकन कर लें |

🥀 ब्रह्मपरक, आत्म-परमात्म विषयक (आध्यात्मिक ) संशय के निवारण के लिये जो उपदेश किया जाता है, वह गीता कहलाता है

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🥀 सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानसजी उपदेशों से परिपूर्ण है |मानस का प्रारम्भ ही संशय (शंका) से है | सर्वप्रथम भरद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य जी से श्रीरामजी के विषय में प्रश्न किया था —
🌱 रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही |
कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही || से लेकर
🌱 जैसें मिटै मोर भ्रम भारी |
कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी || तक
🥀 भरद्वाज जी ने अपना मोह , भ्रम , संशय कहा है | इसीके निवार्णार्थ याज्ञवल्क्य जी ने पहले शिव चरित तत्पश्चात् रामचरित कहा है |
🥀भरद्वाज जी को सगुणरूप श्रीरामजी में संशय हुआ था |अन्य सभी को ब्रह्मपरक शंका हुई थी |
🥀 पार्वती जी की शंका ब्रह्मपरक थी, इसी का निवारण शिवजी ने किया है | यही शिवगीता है |
🥀 श्री रामचरितमानस में स्थान-स्थान पर 11 गीताएँ हैं |इनमें सबसे मुख्य परशुराम गीता है |

🌹 1- शिवगीता– कैलाश प्रकरण — शिव जी का पार्वती जी के संशय निवारणार्थ उपदेश करना | वैसे तो सम्पूर्ण रामायण इतनी ही है |
🥀 उत्तरकाण्ड 129 में पार्वतीजी ने कहा है कि —
🌱 मैं कृतकृत्य भइउँ अब
तव प्रसाद बिस्वेस |
उपजी राम भगति दृढ़
बीते सकल कलेस ||
🥀 परन्तु मुख्यतः बालकाण्ड दोहा 108 से 110 तक पार्वती जी ने जो प्रश्न किये हैं, उन संशयों के निवृत्यार्थ जो शिव जी ने दोहा 111 से 119 तक उपदेश किये हैं | उसे शिव गीता कहा गया है |
🌹2- श्री राम गीता- कौसल्या प्रति – बालकाण्ड 201 में कौसल्या माता जी को विराट स्वरूप के दर्शन कराये हैं —
🌱 देखरावा मातहि निज
अद्भुत रूप अखंड |
रोम रोम प्रति लागे
कोटि कोटि ब्रह्मंड ||
🥀 इसप्रकार विराट स्वरूप दिखा कर कौसल्या माता जी की माया , जगत्पिता को पुत्र रूप मानने की ममता को दूर करके यथार्थ ब्रह्मपरक ज्ञान उत्पन्न किया |

🌹 3- सखी गीता- सीता स्वयंवर प्रकरण में — जब सुनयना जी को श्री राम जी द्वारा धनुष उठाने के प्रति संशय हुआ था और उसके निवारणार्थ जो सखी ने उपदेश किया था, वह सखी गीता है | यह प्रसंग बालकाण्ड में दोहा 255 से 257 /3 तक है |
🥀 सखी के उपदेश से सुनयना जी की संतुष्टि हुई, उनका भ्रम दूर हुआ इसलिये इसे सखी गीता कहते हैं |

🌹 4- परशुराम गीता – यह बालकाण्ड 268/ 2 से 285 तक है | इसका पूर्णतया मिलान महाभारत की श्रीमद्भगवत् गीता से होता है | दोनों का उद्देश्य परधर्म से विलग कर स्वधर्म में लगाना है |
🥀 महाभारत में अर्जुन ने निज क्षत्रिय धर्म (युद्ध करना) त्याग कर, परधर्म ब्राम्हण धर्म (भिक्षा माँगने) अपनाने की बात कही थी, उसी के निवारणार्थ श्री कृष्ण जी ने उपदेश किया और परधर्म से हटा कर स्वधर्म (युद्ध) में लगाया |
🥀 रामचरितमानस में तो परशुराम जी अपना ब्राम्हण धर्म (तपस्या करना) छोड़कर पूर्णतया परधर्म क्षत्रिय धर्म (युद्धकरने) में लगे हुए थे | उनको युद्ध से विलग कर स्वधर्म (तपस्या करने) में लगाया |

🌹 5- लक्ष्मण गीता- श्रंगवेरपुर में निषादराज के संशय का निवारण | इस प्रसंग में अयोध्याकाण्ड 90 / 5 से 92 / 2 तक निषाद का विषाद और 92/ 3 से 93 तक लक्ष्मण जी का निषादराज को उपदेश है |
🥀 निषादराज श्री राम जी का बालसखा था लेकिन अत्यधिक प्रेम के वशीभूत हो उसे विषाद हो गया था | लक्ष्मण जी के ब्रह्मपरक उपदेश देने से निषादराज को संतुष्टि मिली, इसलिये इसे लक्ष्मण गीता कहा है |

🌹6- रामगीता- यह प्रसंग अरण्यकाण्ड 14 /5 से 17 /2 तक है | यहाँ पर लक्ष्मण जी ने प्रश्न किये हैं ,जिनका उत्तर श्रीरामजी ने दिया है | यह प्रश्न ईश्वर-जीव, ग्यान-बैराग्य और माया से सम्बन्धित थे, इनका समाधान श्रीरामजी ने किया है | इसलिये इसे रामगीता कहा गया है |

🌹7- नारदगीता- अरण्यकाण्ड 43 /1 से 46 तक श्रीरामजी ने, नारद जी के विवाह सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर दिया और माया, ग्यान तथा वैराग्य सम्बन्धी उपदेश दिये हैं |

8- विभीषण गीता- लंकाकाण्ड 80 /1 से 80 तक रथ के ब्याज से श्री राम जी ने विभीषण को उपदेश किया है |
रावन रथी बिरथ रघुबीरा |
देखि बिभीषन भयउ अधीरा ||
अधिक प्रीति मन भा संदेहा |
बंदि चरन कह सहित सनेहा ||
इसी संदेह के निवारणार्थ श्री राम जी ने उपदेश दिये तब विभीषण ने सन्तुष्ट होकर कहा है कि —
सुनि प्रभु बचन बिभीषन
हरषि गहे पद कंज |
एहि मिसि मोहि उपदेसेहु
राम कृपा सुख पुंज ||
यहाँ पर श्री राम जी ने विभीषण को उपदेश दिये हैं और संदेह दूर किया है इसलिये इसे विभीषण गीता कहा है |

9- पुरजन गीता- उत्तरकाण्ड 43 /1 से 47 तक श्री राम जी ने सभी पुरजनों को राजसभा में बुलाकर उपदेश दिया है |
एक बार रघुनाथ बोलाए |
गुरु द्विज पुरबासी सब आए ||
सभी के आने पर श्री राम जी ने भक्ति का उपदेश दिया है और स्वयं को ईश्वर बताया है —
मम गुन ग्राम नाम रत
गत ममता मद मोह |
ता कर सुख सोइ जानइ
परानंद संदोह ||
सभी लोग संतुष्ट होकर अपने अपने घर गये —
निज निज गृह गए आयसु पाई |
बरनत प्रभु बतकही सुहाई ||
यहाँ अवधपुर वासियों को संतुष्टि मिली है अस्तु इसे पुरजन गीता कहा है |

🌹10- भुसुंडि गीता- उत्तरकाण्ड 77 में भुसुंडि जी ने अपने को मोह ग्रसित होना कहा है —
🌱 प्राकृत सिसु इव लीला
देखि भयउ मोहि मोह |
कवन चरित्र करत प्रभु
चिदानंद संदोह ||
🥀 इस मोह के निवारणार्थ श्री राम जी ने भुसुंडि जी को विराट स्वरूप के दर्शन कराये और अनेक प्रकार से उपदेश दिये | भुसुंडि जी ने उत्तरकाण्ड 88/ 5 में स्वयं कहा है —
🌱 बहु बिधि मोहि प्रबोधि सुख देई |
लगे करन सिसु कौतुक तेई ||
🥀 इस प्रसंग में भुसुंडि जी के मोह का नाश हुआ है |
इसलिये इसे भुसुंडि गीता कहा गया है |

11- गरुड़ गीता- उत्तरकाण्ड 63 /1 से 125 क तक, काकभुसुंडि जी का गरुड़ को उपदेश करना इसे भी गीता कहा गया गया है |
गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुंडा |
मति अकुंठ हरि भगति अखंडा || से लेकर.
तासु चरन सिरु नाइ करि
प्रेम सहित मतिधीर |
गयउ गरुड़ बैकुंठ तब
हृदयँ राखि रघुबीर ||
उत्तरकाण्ड 125 में संतुष्ट होकर गरुड़ का बैकुंठ जाना कहा है तथा उत्तरकाण्ड 129 में पार्वती जी ने शिव जी से स्वयं कहा है कि – आपकी कृपा से अब मैं कृतार्थ हो गयी |
मुझमें राम भक्ति उत्पन्न हो गयी |

इसके अतिरिक्त उपदेश तो सम्पूर्ण रामचरितमानस में हैं, लेकिन उन उपदेश को सुनकर आत्मिक संतोष किसी भी प्रसंग में नही दर्शाया है |
विशेष ध्यान देने वाली बात है कि याज्ञवल्क्य-भरद्वाज सम्वाद का समापन नहीं लिखा है | इससे यह दर्शाया है कि दोनो ही ऋषि-मुनि दीर्घजीवी हैं और प्रयागराज में उनका सतसंग अनवरत चलता रहा है |
🥀 प्रारम्भ में भरद्वाज जी ने एक ही प्रश्न किया है और याज्ञवल्क्य जी ने कथा कहनी शुरू कर दी |
शिव चरित सुनने के उपरांत लिखा है कि —
संभु चरित सुनि सरस सुहावा |
भरद्वाज मुनि अति सुखु पावा ||
बहु लालसा कथा पर बाढ़ी |
नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी ||
प्रेम बिबस मुख आव न बानी |
दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी ||
उसके पश्चात पुनः बोले ही नहीं हैं | याज्ञवल्क्य जी सुनाते ही रहे और सम्पूर्ण मानस का समापन हो गया |
इसलिये इसको गीता नहीं कहा गया है |

सबसे अधिक उपदेश रावण को दिये गये हैं, लेकिन वह अपने दृढ़ संकल्प से विलग नहीं हुआ है | उसपर उपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, अस्तु उन उपदेशों को भी गीता की संज्ञा नहीं दे सकते हैं |
🥀 यह हमने अपने मतानुसार लिखा है | इसमें यदि कहीं पर त्रुटि हो तो प्रबुद्धजन उसे ठीक करके पढ़ लें और हमें भी अवगत करा दें, जिससे हमें भी जानकारी हो जाय |
🌹 सभी प्रेमी मित्रजनों एवं विद्वज्जनों को सादर प्रणाम
🌹 जय जय सीताराम 🌹
🌹 जय श्री हनुमान जी 🌹
🌹 जय हो तुलसीदास जी की 🌹
🌹 सब भक्तों की जय 🌹
🌹 सनातन धर्म की जय 🌹

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