पुष्प वाटिका में श्री राम और जानकी जी का प्रथम मिलन होता है, जो पूर्वानुराग की अद्भुत और सौंदर्यमयी अभिव्यक्ति है। इधर गुरू की आज्ञा से श्री राम पुष्प वाटिका आते हैं और उधर माँ की अनुमति से सीता जी गिरिजा पूजन के निमित्त पुष्प वाटिका आतीं हैं।
सीता जी का संग छोड़ एक सखी वाटिका में फूलों का सौंदर्य निरख रही है, सहसा उसकी दृष्टि श्री राम और लक्ष्मण पर जा पड़ती है। वह चकित विस्मित व विस्फारित नेत्रों से श्री राम और लक्ष्मण का रूप-सौंदर्य-अवगाहन करती है, रोम-रोम पुलकित हो जाता है। उसकी अद्भुत दशा देख कर सखियाँ भी चकित हो जाती हैं।
सीता जी के हृदय की उत्कंठा भी सखियों से छिपी नहीं है। माँ जानकी जी को नारदमुनि की बातों का स्मरण हो आता है और हृदय में पुरातन प्रीति की स्मृति जागृत हो जाती है।सीता जी के चकित नयन और शिशुमृग सृदश मिश्रित हाव-भाव में अति ही शालीनता सौंदर्य का निर्वाह हुआ है। मुग्धा मृगी के नयन की भय मिश्रित उत्कंठा सम मर्मभरी भावाव्यक्ति है।
सीता जी के कंगन किंकणी और नुपुरों की मधुर ध्वनि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के चित्त पर कामदेव की विजय घोषणा का दम्भ भर रही है। समग्र विश्व को अपने रूप से आकृष्ट और मोहित कर लेने वाले श्री राम सीता जी के अलौकिक रूप-लावण्यमय को अपलक ठगे से निहारते रह जाते हैं।
सीता जी का अनुपम रूप-लावण्य और श्री राम जी का अभूतपूर्व प्रेम असीम मर्यादा के आवरण में मुखर है। सीता जी का सौंदर्य मानों स्वयं सौंदर्य की दीपशिखा बन कर सौंदर्य-भवन को प्रकाशित कर रहा है। श्री राम स्वयं सीता जी का सौंदर्य-वर्णन करने में अपनी असमर्थता का बोध कराते हैं।
पुष्प वाटिका में श्री राम और सीता जी का मिलन वस्तुतः शील और सौंदर्य का अनुपम मिलन है। श्री राम की मुख शोभा शब्दों से नहीं बखानी जा सकती और सीता जी का सौंदर्य भी शब्दों की सीमा में नहीं समाता है। औचित्य और मर्यादा का उल्लंघन महाकवि तुलसीदास जी के काव्य का भी सौंदर्य नही है।
अति पावन-हृदय अनुज लक्ष्मण से श्री राम सीता जी की शोभा का अनुभव बोध प्रकट करने का प्रयास करते हैं। वह रघुवंशमणि हैं, उनके स्वप्न में भी अब तक किसी पर-नारी का प्रवेश नहीं हुआ है। आज उनकी दशा अद्भुत बन गई है-
“रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ।
मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ।।
मोहि अतिसय प्रतीति मन केरि।
जेहि सपनेहुँ परनारि न हेरि।।
यही भाव दिव्य-प्रेम की पवित्रता और मर्यादा का शील-निरूपण कर रहा है। वस्तुतः पुष्प वाटिका का वर्णन सम्पूर्ण श्री रामचरित मानस में वर्णित भारतीय संस्कृति में निहित शील और सौंदर्य की अन्यतम अभिव्यक्ति है। पुष्प वाटिका का सौंदर्य अलौकिक दिव्य-प्रेम व निष्कलुष सौंदर्य का शील सम्पन्न संगमस्थल है। इसकी प्रत्येक शब्द-ध्वनि में माधुर्य भाव गूँजते हैं। यह कवि और भक्त हृदय की निर्विकार सुन्दरतम काव्य-सर्जना है।
The first meeting of Shri Ram and Janaki takes place in the Pushpa Vatika, which is a wonderful and beautiful expression of love for the past. Here Shri Ram comes to the flower garden by the order of the Guru and on the other side with the permission of the mother, Sita ji comes to the flower garden for the worship of Girija.
Leaving the company of Sita ji, a friend is looking after the beauty of flowers in the garden, suddenly her eyes fall on Shri Ram and Lakshman. She gazes at the beauty and beauty of Shri Rama and Lakshmana with wide-open eyes, and becomes ecstatic. Friends are also amazed to see his wonderful condition.
The longing of Sita ji’s heart is also not hidden from her friends. Mother Janaki ji remembers Naradmuni’s words and the memory of ancient love awakens in her heart. Sita ji’s amazed eyes and baby deer-like mixed expressions have a lot of decency beauty. The eyes of an enchanted deer are full of emotion mixed with fear and yearning.
Sita ji’s bracelet Kinkani and the melodious sound of nupuras are filled with the pride of declaring the victory of Kamadeva over the mind of Maryada Purushottam Shri Ram. Shri Ram, who attracts and fascinates the whole world with his form, keeps staring at the supernatural beauty of Sita ji.
Sita ji’s unique form-lavanya and Shri Ram ji’s unprecedented love are vocal in the cover of infinite dignity. Sita ji’s beauty is as if she herself is illuminating the beauty house by becoming a beacon of beauty. Shri Ram himself makes us realize his inability to describe the beauty of Sita ji.
The meeting of Shri Ram and Sita ji in Pushpa Vatika is actually a unique meeting of modesty and beauty. The beauty of Shri Ram’s face cannot be described in words and the beauty of Sita ji also does not fit in the limit of words. Violation of propriety and decorum is also not the beauty of the poetry of great poet Tulsidas ji.
Very pure-hearted Anuj tries to reveal the experience of the beauty of Shri Ram Sita ji to Laxman. He is Raghuvanshmani, so far no other woman has entered even in his dreams. Today his condition has become wonderful- Raghuban Singh Kar Sahaj Subhau. Manu Kupanth Pagu Dharai Na Kau. Mohi Atisaya Pratiti Man Keri. Wherever I dream, I am not here.
This feeling is representing the purity and dignity of divine love. In fact, the description of Pushpa Vatika described in the entire Shri Ramcharit Manas is another expression of modesty and beauty inherent in Indian culture. The beauty of the flower garden is the confluence of supernatural divine love and pure beauty. Melodious expressions echo in each of its words and sounds. This poet and devotee is the most beautiful poetry-creator without any thoughts.