रामभक्त हनुमान जी

हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। और रावण उनका कुछ नहीं कर सका, यह सोचते-सोचते रावण परेशान हो जाता है कि आखिर उस हनुमान में इतनी शक्ति आई कहां से और हनुमान है कौन।

परेशान हो कर वह महल में ही स्थित शिव मंदिर में जाकर शिवजी की प्रार्थना आरम्भ करता है। उसकी प्रार्थना से शिव भगवान प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं। रावण अभिभूत होकर उनके चरणों में गिर पड़ता है।

कहो दशानन कैसे हो ? शिवजी पूछते हैं।

आप अंतर्यामी हैं महादेव। सब कुछ जानते हैं प्रभु।

एक अकेले वानर ने मेरी लंका को और मेरे दर्प को भी जला कर राख कर दिया। मैं जानना चाहता हूं कि यह वानर जिसका नाम हनुमान है आखिर कौन है ? और प्रभु उसकी पूंछ तो और भी ज्यादा शक्तिशाली थी। किस तरह सहजता से मेरी लंका को जला दिया। मुझे बताइए कि यह हनुमान कौन है ?

शिवजी मुस्कुराते हुए रावण की बात सुनते रहते हैं। और फिर बताते हैं कि रावण यह हनुमान और कोई नहीं मेरा ही रूद्र अवतार है।

विष्णु जी ने जब यह निश्चय किया कि वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे और माता लक्ष्मी भी साथ ही अवतरित होंगी। तो मेरी इच्छा हुई कि मैं भी उनकी लीलाओं का साक्षी बनूं।

और जब मैंने अपना यह निश्चय पार्वती को बताया तो वह हठ कर बैठी कि मैं भी साथ ही रहूंगी। लेकिन यह समझ नहीं आया कि उसे इस लीला में किस तरह भागीदार बनाया जाए।

तब सभी देवताओं ने मिलकर मुझे यह मार्ग बताया। आप तो वानर बन जाइये और शक्ति स्वरूपा पार्वती देवी आपकी पूंछ के रूप में आपके साथ रहे, तभी आप दोनों साथ रह सकते हैं।

उसी अनुरूप मैंने हनुमान के रूप में जन्म लेकर रामजी की सेवा का व्रत रख लिया और शक्ति रूपा पार्वती ने पूंछ के रूप में और उसी सेवा के फल स्वरूप तुम्हारी लंका का दहन किया।

अब सुनो रावण! तुम्हारे उद्धार का समय आ गया है। अतः श्री राम के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा। मेरा परामर्श है कि तुम युद्ध के लिए सबसे अंत में प्रस्तुत होना। जिससे कि तुम्हारा समस्त राक्षस परिवार भगवान श्रीराम के हाथों से मोक्ष को प्राप्त करें और तुम सभी का उद्धार हो जाए।

रावण को सारी परिस्थिति का ज्ञान होता है और उस अनुरूप वह युद्ध की तैयारी करता है और अपने पूरे परिवार को रामजी के समक्ष युद्ध के लिए पहले भेजता है और सबसे अंत में स्वयं मोक्ष को प्राप्त होता है..!!

।। बोलो सियावर रामचंद्र की जय ।।



Hanumanji burns Ravana’s golden city Lanka to ashes and leaves. And Ravana could not do anything to him, Ravana gets worried thinking that where did Hanuman get so much power from and who is Hanuman.

Feeling upset, he goes to the Shiva temple located in the palace itself and starts praying to Lord Shiva. Lord Shiva is pleased with his prayer and appears. Ravana gets overwhelmed and falls at his feet.

Tell me, how are you Dashanan? Shivji asks.

You are the intercessor Mahadev. God knows everything.

A single monkey burnt my Lanka and my Darpa to ashes. I want to know who is this monkey named Hanuman? And Lord, his tail was even more powerful. How effortlessly my Lanka was burnt. Tell me who is this Hanuman?

Lord Shiva keeps listening to Ravana smilingly. And then he tells that Ravana, this Hanuman is none other than his Rudra incarnation.

When Lord Vishnu decided that he would incarnate on earth and Goddess Lakshmi would also incarnate along with him. So I wished that I too become a witness to his activities.

And when I told this decision of mine to Parvati, she insisted that I would also stay with her. But it was not understood how to make him a participant in this leela.

Then all the gods together told me this path. You become a monkey and Goddess Parvati, the form of Shakti, remains with you as your tail, only then both of you can live together.

Accordingly, I took birth as Hanuman and took a vow to serve Ramji and Shakti form Parvati burnt your Lanka in the form of a tail and as a result of that service.

Now listen Ravana! The time of your salvation has come. Therefore, you will be saved at the hands of Shri Ram. My advice is that you should be the last one to appear for the war. So that your entire demon family attains salvation from the hands of Lord Shri Ram and you all get salvation.

Ravana is aware of the whole situation and accordingly he prepares for the war and first sends his entire family for the war in front of Ramji and at the end he himself attains salvation..!!

, Say Jai Siyawar Ramchandra.

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