साक्षात ब्रह्म जमाता के रूप में….दूल्हे के स्वरूप में भगवान का आदर सत्कार। कितना विहंगम दृश्य है,प्रभु के साक्षात चरण महाराजा जनक व महारानी सुनयना के हाथों में….दृष्टि निमिमेष प्रभु मुख पर…नि:शब्द अवाक….नेत्रों से अविरल प्रसन्नता व सुख मोद की अश्रु धारा प्रवाहित।कैसा अतिशय बड़भागी सौभाग्यों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ महाराजा जनक जी को।
श्री राम और सीता जी के विवाह पर महाराजा जनक जी और रानी सुनयना स्वर्ण थाल व स्वर्ण कलश में पवित्र सुगंधित जल लेकर वर-वेश में विराजमान भगवान श्री राम के समक्ष बैठ जाते हैं और उनके चरण धोते हैं। वे चरण जो ‘कमल’ हैं।वे चरण-कमल जो कामदेव के शत्रु श्री महादेव जी के हृदयरूपी सरोवर में सदा विद्यमान रहतें हैं, जिनके एक बार भी स्मरण से मन में निर्मलता आ जाती है-
“जे पद सरोज मनोज अरि
उर सर सदैव विराजहिं।
जे सुकृत सुमिरत विमलता
मन सकल कलिमल भाजहिं।”
गोस्वामी तुलसीदास जी कहतें हैं प्रभु के कमल रूपी चरण में पराग मकरंद व सुगंध तीनों गुण विद्यमान हैं- इन तीनों गुणों ने ही भक्तों को अतुलनीय धन्यता प्रदान की है। प्रभु के चरण-कमल-पराग का स्पर्श पा मुनिपत्नी अहिल्या धन्य हुई-
“जे परसि मुनिबनिता लसी
गति रही जो पातकमई।”
गंगा जी इन चरणों का मकरंद हैं जिन्हें शिवजी मस्तक पर धारण करतें हैं-
“मकरंदु जिन्ह को संभु सिर
सुचिता अवधि सिर बरनई।”
और जिस प्रकार कमल की सुगंध से आकर्षित भौंरा सतत उसी के आसपास मँडराता है उसी प्रकार श्री राम के चरण कमलों का सेवन करने के लिये ऋषि मुनि सतत लालायित रहतें हैं।अतिशय बड़भागी महाराजा जनक और रानी सुनयना आज उन्हीं चरणों को पखार रहें हैं-
“करि मधुप मन मुनि जोगीजन
जे सेई अभिमत गति लहैं।
ते पद पखारत भाग्यभानजु जनकु
जय जय जय सब कहैं।”