श्री हरि:
गत पोस्ट से आगे…
निष्पाप पुरुषो ! शूद्र की भुजाओं में अंगरागादि कामोद्दीपक वस्तुएँ लगि हुई थीं और वह उनसे उस कुलटा का आलिंगन कर रहा था | अजामिल उन्हें इस अवस्था में देखकर सहसा मोहित और काम के वश हो गया ||६१|| यद्यपि अजामिल ने अपने धैर्य और ज्ञान के अनुसार अपने काम वेग से विचलित मन को रोकने की बहुत-बहुत चेष्टाएँ कीं, परन्तु पूरी शक्ति लगा देने पर भी वह अपने मन को रोकने में असमर्थ रहा ||६२|| उस वेश्या को निमित बनाकर काम-पिशाच ने अजामिल के मन को ग्रस लिया | इसकी सदाचार और शास्त्र-सम्बन्धी चेतना नष्ट हो गयी | अब यह मन-ही-मन उसी वेश्या का चिन्तन करने लगा और अपने धर्म से विमुख हो गया ||६३|| अजामिल सुन्दर-सुन्दर वस्त्र आभूष्ण आदि वस्तुएँ, जिनसे वह प्रसन्न होती, ले आता | यहाँ तक कि इसने अपने पिता की सारी सम्पति देकर भी उसी कुलटा को रिझाया | यह ब्राह्मण उसी प्रकार की चेष्टा करता, जिससे वह वेश्या प्रसन्न हो ||६४|| उस स्वच्छन्दचारिणी कुलटा की तिरछी चितवन ने इसके मन को ऐसा लुभा लिया कि इसने अपनी कुलीन नवयुवती और विवाहिता पत्नी तक का परित्याग कर दिया | इसके पाप की भी भला कोई सीमा है ||६५|| यह कुबुध्दी न्याय से, अन्याय से जैसे भी जहाँ कहीं भी धन मिलता, वहीँ से उठा लाता | उस वेश्या के बड़े कुटुम्ब का पालन करने में ही यह व्यस्त रहता ||६६|| इस पापी ने शास्त्राज्ञा का उलंघन करके स्वच्छन्द आचरण किया है | यह सत्पुरुषों के द्वारा निन्दित है | इसने बहुत दिनों तक वेश्या के मन समान अपवित्र अन्न से अपना जीवन व्यतीत किया है, इसका सारा जीवन ही पापमय है ||६७|| इसने अब तक अपने पापों का कोई प्रायश्चित भी नहीं किया है | इसलिये अब हम इस पापी को दण्डपाणी भगवान् यमराज के पास ले जायँगे | वहाँ यह अपने पापों का दण्ड भोगकर शुध्द हो जायगा ||६८||
शेष आगामी पोस्ट में |
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक परम सेवा पुस्तक कोड १९४४ से |
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Mr. Hari: Continuing from last post… Innocent men! The shudra’s arms were adorned with erotic objects and he was embracing that kulata from them. Seeing him in this state, Ajamil suddenly became fascinated and enamored ||61|| Although Ajamila made many efforts according to his patience and knowledge to stop his mind distracted from his work, but he was unable to stop his mind even after putting all his strength in it ||62|| By making that prostitute an instrument, the vampire engulfed Ajamil’s mind. Its morality and scriptural consciousness was destroyed. Now he started thinking about the same prostitute and turned away from his religion ||63|| Ajamil would bring beautiful clothes, ornaments, etc., with which she would have been pleased. He even wooed the same clan by giving all the property of his father. This brahmin would do the same kind of effort which would please the prostitute.||64|| The slanting chit of that free-spirited Kulata so enticed its mind that it even abandoned its noble maiden and married wife. There is no limit to its sin too.||65|| This foolishness would have picked up money from justice and injustice, wherever it was found. He would have been busy only in following the big family of that prostitute ||66|| This sinner has violated scripture and behaved freely. It is condemned by the virtuous. He has lived his life for a long time with impure food like a prostitute’s heart, his whole life is sinful ||67|| He has not even made any atonement for his sins till now. That is why now we will take this sinner to Lord Yamraj, the sinner. There it will be purified after suffering the punishment of its sins ||68|| rest in upcoming posts. From the book Param Seva Book Code 1944 published by GeetaPress, Gorakhpur. ,