वामन अवतार और राजाबलि के दान की कथा। कथा विस्तार से है मेरा निवेदन है कि कथा पूरी पढ़े। इस महादानी की कथा पढ़ने के बाद आपकी आँखे नम हो जायेगी!!!!!
विष्णु ने अदिति व कश्यप के यहाँ बौने शिशु के रूप में जन्म धारण करके दशावतारों में से पांचवाँ वामनावतार लिया।
वामन ने उपनयन के बाद वैदिक विद्याएँ समाप्त कर लीं और इन्द्र के छोटे भाई तथा अदिति के प्यारे पुत्र के रूप में पलने लगे।
उस समय बलि चक्रवर्ती नर्मदा नदी के तट पर शुक्राचार्य के नेतृत्व में विश्वजित यज्ञ प्रारंभ करके अपार दान दे रहा था।
वामन ने जनेऊ, हिरण का चर्म व कमण्डलु धारण किया, छाता हाथ में लेकर खड़ाऊँ पहन लिया और मूर्तिभूत ब्रह्म तेज के साथ बलि चक्रवर्ती के पास चल पड़े। छोटे-छोटे डग भरनेवाले वामन को देख यज्ञशाला में एकत्रित सभी लोग प्रसन्न हो उठे। वामन ने बलि चक्रवर्ती के समीप जाकर जय-जयकार किया।
वामन को देखते ही बलि के मन में अपूर्व आनंद हुआ। उसने पूछा- ‘‘अरे मुन्ने ! तुम तो अभी शिशु के अवतार में ही हो, तुम कौन हो? एक नये ब्रह्मचारी के रूप में कहाँ चल पड़े?
‘‘मैं तुम से ही मिलने आया हूँ। मैं अपना परिचय क्या दूँ? सब लोग मेरे ही हैं, फिर भी इस वक्त मैं अकेला हूँ। वैसे मैं संपदा रखता हूँ, पर इस समय एक याचक हूँ। तुम्हारे दादा, परदादा महान वीर थे। तुम्हारे शौर्य और पराक्रम दिगंत तक व्याप्त हैं। वामन ने कहा। इस पर बलि चक्रवर्ती हँसते हुए बोला- ‘‘आप की बातें तो कुछ विचित्र मालूम होती हैं। आप शौर्य और पराक्रम की चर्चा कर रहे हैं। युद्ध करने की प्रेरणा तो नहीं देंगे न? क्योंकि इस वक्त मैं यज्ञ की दीक्षा लेकर बैठा हूँ।
इस पर वामन बोले-‘‘वाह, आपने कैसी बात कही? महान बल-पराक्रमी बने आप के सामने बौना बने हुए मेरी गिनती ही क्या है? आपका यश सुनकर याचना करने आया हूँ।
‘‘अच्छी बात है, मांग लीजिए, आप जो भी मांगे, वही देने का वचन देता हूँ। बलि चक्रवर्ती ने कहा।
इस पर शुक्राचार्य ने बलि को बुलाकर समझाया, ‘‘ये वामन साक्षात् विष्णु हैं, तुम्हें धोखा देकर तुम्हारा सर्वस्व लूटने के लिए आये हुए हैं! तुम उन्हें किसी प्रकार का दान मत दो।
बलि चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘विष्णु जैसे महान व्यक्ति मेरे सामने याचक बनकर हाथ फैलाते हैं, तो मेरे हाथों द्वारा कोई दान देना मेरे लिए भाग्य की ही बात मानी जाएगी, यह मेरी अद्भुत विजय का परिचायक भी होगा। इसके अतिरिक्त वचन देकर उस से विमुख हो जाना भी उचित नहीं है। मेरा वचन झूठा साबित होगा न?
‘‘आत्मरक्षा के वास्ते किया जाने वाला कर्म असत्य नहीं कहलाता, पर अनुचित धर्म भी आत्महत्या के सदृश्य ही माना जाएगा न? शुक्राचार्य ने कहा।
‘‘चाहे जो हो, वे चाहे मेरे साथ कुछ भी करें, या मैं हार भी जाऊँ; फिर भी वह मेरी पराजय नहीं मानी जाएगी। यह धर्मवीरता ही होगी! वैसे शिवि चक्रवर्ती आदि जैसे दान करके यश पाने की कामना भी मेरे अन्दर नहीं है, परन्तु वचन देकर इसके बाद उससे मुकर कर कायर कहलाना मैं नहीं चाहता। बलि चक्रवर्ती ने कहा।
इस पर शुक्रचार्य क्रोध में आ गये और शाप देने के स्वर में बोले, ‘‘तुम्हारे गुरु के नाते मैं ने तुम्हारे हित केलिए जो बातें कहीं, उन्हें तुम धिक्कार रहे हो। याद रखो, तुम अपने राज्य तथा सर्वस्व से हाथ धो बैठोगे!
बलि चक्रवर्ती ने विनयपूर्वक कहा, ‘‘गुरु देव, आप नाहक अपयश के शिकार हो गए। मैं सब प्रकार के सुख-दुखों को समान रूप से स्वीकार करते हुए दान देने के लिए तैयार हो गया हूँ, पर आप का यह शाप विष्णु के लिए वरदान ही साबित हुआ, क्योंकि गुरु के वचन का धिक्कार करने के उपलक्ष्य में प्राप्त शाप को विष्णु केवल अमल करने वाले हैं; पर अन्यायपूर्वक उन्होंने बलि के साथ दगा किया है, इस अपयश से वे दूर हो गये। मैं आपके शाप को स्वीकार करता हूँ।
शुक्राचार्य का चेहरा सफेद हो उठा। उन्होंने लज्जा के मारे सर झुका लिया। वे निरुत्तर हो गये।
इस के बाद बलि वामन के पास जाने लगे, तब शुक्राचार्य ने कहा, ‘‘हे दानव राज, ‘‘यह विनाश केवल तुम्हारे लिए ही नहीं, बल्कि समस्त दानव वंश का है और हम सब के लिए अपमान की बात है। शुक्राचार्य ने चेतावनी दी।
‘‘यही नहीं, बल्कि एक दानव ने न्यायपूर्ण शासन किया है। धर्म का पालन किया है और विष्णु को भिक्षा दी है, इस प्रकार समस्त दानव वंश के लिए यश का भी तो कारण बन सकता है? बलि यों कह कर वामन के पास पहुँचे।
इसके बाद बलि चक्रवर्ती की पत्नी विंध्यावली स्वर्ण कलश में जल ले आई, स्वर्ण थाल में वामन के चरण धोये । उस जल को बलि ने अपने सर पर छिड़क लिया, तब बोले- ‘‘हे वामन रूपधारी, आप जैसे महान व्यक्ति का मेरे पास दान के लिए पहुँचना मेरे पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। आप जो कुछ चाहते हैं, मांग लीजिए। रत्न, स्वर्ण, महल, सुंदरियाँ, शस्य क्षेत्र, साम्राज्य – सर्वस्व यहाँ तक कि मेरा शरीर भी आप के वास्ते प्रस्तुत है ।
‘‘महाबलि, तुमने जो कुछ देना चाहा, उन को लेकर मैं क्या करूँगा? मैं तो हिरण का चर्म बिछाये ब्रह्म निष्ठा करना चाहता हूँ। इस वास्ते मेरे लिए तीन कदम की जगह पर्याप्त है। ये तीन क़दम तुम्हारे दिगंतों तक फैले साम्राज्य में अत्यंत अल्प मात्र हैं, फिर भी मेरे लिए यह तीनों लोकों के बराबर है। वामन ने कहा।
‘‘वे तीन क़दम ही ले लो। यों कह कर बलि ने अपने जल कलश के जल लुढ़काकर दान करना चाहा, पर उस में से जल न निकला। शुक्राचार्य ने सूक्ष्म रूप में जल कलश की सूंड में छिपे रहकर जल को गिरने से रोक रखा था। इस पर वामन ने दाभ का तिनका निकाल कर जल कलश की सूंड में घुसेड़ दिया। शुक्राचार्य अपनी एक आँख खोकर काना बन गया। इस पर वह हट गया, तब जलधारा बलि चक्रवर्ती के हाथों से निकल कर वामन की अंजुलि में गिर गई। दान-विधि के समाप्त होते ही बलि चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘अब आप द्वारा अपने चरणों से माप कर तीन क़दम जमीन प्राप्त करना ही शेष रह गया है।
वामन ने झट इधर-उधर घूम कर विर्श्वरूप धारण किया, लंबे, चौड़े एवं ऊँचाई के साथ नीचे, मध्य व ऊपर – माने जाने वाले तीनों लोकों पर व्याप्त हो गये। एक डग से उन्होंने सारी पृथ्वी को माप लिया, त्रिविक्रम विष्णु के चरण की छाया में सारे भूतल पर पल भर केलिए गहन अंधकार छा गया। इसके बाद आकाश को माप लिया, उस वक्त सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र मण्डल आदि उनके चरण से चिपके हुए रेणुओं की भांति दिखाई दिये। तब ब्रह्मा ने अपने कमण्डलु के जल से विष्णु के चरणों का अभिषेक किया। विष्णु के चरण से फिसलने वाला जल आकाश गंगा का रूप धर कर स्वर्ग में मंदाकिनी के रूप में प्रवाहित हुआ।
वामनरूपी त्रिविक्रम ने बलि से पूछा-‘‘हे बलि चक्रवर्ती, बताओ, मैं तीसरा कदम कहाँ रखूँ?
‘‘हे त्रिविक्रम, लीजिए यह मेरा सिर! इसपर अपना चरण रखिये। यों कह कर बलि चक्रवर्ती ने अपना सर झुका लिया!
इस पर विष्णु ने अपने विश्वरूप को वापस ले लिया, फिर से वामन बनकर बलि के सर पर चरण रख कर बोले, ‘‘बलि, पृथ्वी तथा आकाश को पूर्ण रूप से मापनेवाला यह मेरा चरण तुम्हारे सर को पूर्ण रूप से माप नहीं पा रहा है!
उस समय प्रह्लाद ने वहाँ पर प्रवेश कर कहा, ‘‘भगवन, मेरा पोता आपका शत्रु नहीं है, उस पर अनुग्रह कीजिये!
बलि चक्रवर्ती की पत्नी विंध्यावली ने कहा, ‘‘वामनवर, मेरे पति का किसी भी प्रकार से अहित न हो। ऐसा अनुग्रह कीजिये ।
‘‘बहन, आप के पति केलिए हानि पहुँचाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए तो मैं ने याचक बनकर उन से दान लिया है। इनका धार्मिक बल ही कुछ ऐसा है।
यों समझाकर वामन प्रह्लाद की ओर मुड़कर बोले, ‘‘जानते हो, बलि मेरे लिए कितने प्रिय व्यक्ति हैं? यह कहते वामन विष्णु की संपूर्ण कलाओं के साथ शोभित हो लंबे वेत्र दण्ड समेत दिखाई दिये।
‘‘हे बलि चक्रवर्ती, तुम्हारी समता करनेवाला आज तक कोई न हुआ और न होगा। आदर्शपूर्ण शासन करनेवाले चक्रवर्तियों में तुम्हारा ही नाम प्रथम होगा! मैं तुम्हें सुतल में भेज रहा हूँ। पाताल लोकों के अधिपति बन कर शांति एवं सुख के साथ चिरंजीवी बनकर रहोगे। तुम्हारी पत्नी तथा तुम्हारा दादा प्रह्लाद भी तुम्हारे साथ होंगे। मैं तुम्हारे सुतल द्वार का इसी प्रकार दण्डपाणि बनकर तुम्हारा रक्षक रहूँगा। यों कह कर वामनावतार विष्णु अंतर्धान हो गये।
The story of Vamana Avatar and Rajabali’s donation. The story is in detail, I request you to read the story completely. Your eyes will become moist after reading the story of this great donor!!!!!
Vishnu took birth as a dwarf child in the house of Aditi and Kashyapa and took the fifth Vamanavatar among the Dasavatars.
Vamana finished the Vedic studies after the Upanayana and started growing up as the younger brother of Indra and the beloved son of Aditi.
At that time, Bali Chakraborty was giving immense charity by starting Vishwajit Yagya under the leadership of Shukracharya on the banks of river Narmada.
Vamana wore sacred thread, deer skin and kamandalu, took umbrella in hand and put on a khadoon and went to Bali Chakravarti with the idolized Brahma Tej. All the people gathered in the sacrificial hall were pleased to see Vamana taking small steps. Vaman went near Bali Chakraborty and shouted.
On seeing Vamana, Bali’s heart felt immense joy. He asked – “Hey baby! You are still in the form of a child, who are you? Where did you go as a new celibate?
“I have come to see you only. How should I introduce myself? Everyone is mine, yet at this moment I am alone. Although I keep wealth, but at present I am a beggar. Your grandfather, great grandfather were great heroes. Your bravery and valor are pervaded till the horizon. Vaman said. On this, Bali Chakraborty said laughing- “Your words seem somewhat strange. You are talking about bravery and might. Won’t you inspire to fight, will you? Because at this time I am sitting with the initiation of Yagya.
Vaman said on this – “Wow, what did you say? What is my count in front of you who became great force-mighty? Hearing your fame, I have come to beg.
It’s a good thing, ask for it, I promise to give you whatever you ask for. Bali Chakraborty said.
On this, Shukracharya called Bali and explained, “This Vamana is Vishnu in person, he has come to cheat you and rob you of everything! Don’t give them any donation.
Bali Chakraborty said, “If a great person like Vishnu extends his hand in front of me as a beggar, then giving any donation through my hands will be considered a matter of luck for me, it will also be a sign of my wonderful victory. Apart from this, it is also not proper to turn away from it after making a promise. Will my promise be proved false?
“The work done for the sake of self-defense is not called false, but wrong religion will also be considered like suicide, will it not? Shukracharya said.
“Come what may, whatever they may do to me, or I may lose; Even then it will not be considered my defeat. This would be dharmaveer! By the way, I don’t even have the desire to get fame by donating like Shivi Chakraborty etc., but I don’t want to be called a coward by turning away from it after giving a promise. Bali Chakraborty said.
Shukracharya got angry on this and said in a cursing voice, “As your teacher, you are cursing the things I said for your benefit. Remember, you will lose your kingdom and everything!
Bali Chakraborty humbly said, “Guru Dev, you have become a victim of undeserved infamy. Accepting all kinds of happiness and sorrow equally, I have agreed to donate, but this curse of yours proved to be a boon for Vishnu, because the curse received on the occasion of cursing the Guru’s word was accepted by Vishnu. There are only executors; But they have cheated the sacrifice unjustly, they got away from this infamy. I accept your curse.
Shukracharya’s face turned white. He bowed his head in shame. They became speechless.
After this Bali started going to Vamana, then Shukracharya said, “O demon king, this destruction is not only for you, but for the entire demon race and it is a matter of humiliation for all of us.” Shukracharya warned.
“Not only this, but a demon has justly ruled. Followed the religion and gave alms to Vishnu, in this way it can also be the reason for fame for the entire demon dynasty? By saying this, Bali reached Vamana.
After this, Vindhyavali, the wife of Bali Chakraborty, brought water in a golden urn and washed the feet of Vamana in a golden plate. Bali sprinkled that water on his head, then said – “O Vaman Rupdhari, a great person like you reaching me for charity is the result of the virtues of my previous birth.” Ask for whatever you want. Gems, gold, palaces, beauties, fields, kingdoms – everything even my body is offered to you.
Mahabali, what will I do with what you have given me? I want to do Brahma Nishtha by spreading the skin of a deer. For this, a space of three steps is sufficient for me. These three steps are very little in the empire that extends to your horizons, yet for me it is equal to all the three worlds. Vaman said.
Take only those three steps. Saying this, Bali tried to donate by rolling the water from his urn, but no water came out of it. Shukracharya had stopped the water from falling by hiding in the trunk of the water urn in a subtle form. On this, Vaman took out the straw of Dabh and inserted it into the trunk of the water urn. Shukracharya became Kana by losing one of his eyes. On this he moved away, then the stream of water came out of the hands of Bali Chakraborty and fell in Vamana’s Anjuli. As soon as the donation ceremony was over, Bali Chakraborty said, “Now it remains only to get three steps of land by measuring with your feet.
Vaman quickly roamed here and there and assumed the form of the world, along with long, wide and height, pervaded all the three worlds considered as lower, middle and upper. With one step, he measured the whole earth, under the shadow of the feet of Trivikram Vishnu, there was deep darkness on the entire surface for a moment. After this, the sky was measured, at that time the Sun, the Moon, the constellations etc. appeared like raindrops sticking to his feet. Then Brahma anointed the feet of Vishnu with the water of his kamandalu. The water that slipped from the feet of Vishnu took the form of Akash Ganga and flowed in heaven in the form of Mandakini.
Trivikram in the form of Vamana asked Bali – “O Bali Chakraborty, tell me, where should I put the third step?”
O Trivikram, take this head of mine! Keep your feet on it. By saying this, Bali Chakraborty bowed his head!
On this, Vishnu took back his Vishvarupa, once again became Vamana and placed his feet on Bali’s head and said, “Sacrifice, this step of mine which measures earth and sky completely, is not able to measure your head completely. !
At that time Prahlad entered there and said, “Lord, my grandson is not your enemy, have mercy on him!
Bali Chakraborty’s wife Vindhyavali said, “Vamnavar, my husband should not be harmed in any way. Do this favor.
“Sister, it is not possible for anyone to harm your husband. That’s why I have taken charity from them in the form of a beggar. Such is their religious power.
Having explained thus, Vaman turned to Prahlad and said, “Do you know how dear Bali is to me? Saying this, Vaman appeared adorned with all the arts of Vishnu with a long Vetra stick.
O Bali Chakraborty, there has never been and will never be anyone who is equal to you. Your name will be the first among the chakravartins who rule ideal! I am sending you to Sutal. By becoming the ruler of the Hades, you will live like Chiranjeevi with peace and happiness. Your wife and your grandfather Prahlad will also be with you. I will be your protector like this by becoming Dandapani of your Sutal door. By saying this, Vamanavatar Vishnu disappeared.