जापान में एक फकीर हुआ: बोकोजू। वह टोकियो में, राजधानी में ही था। पुरानी कथा है, कोई तीन सौ वर्ष पहले की।
सम्राट रात को, जैसा पुराने सम्राट निकला करते थे, घोड़े पर निकलता था, छिपे हुये वेश में, नगर को देखने: कहां क्या हो रहा है। सारा नगर सोया रहता, यह एक फकीर वृक्ष के नीचे जागा रहता। अक्सर तो खड़ा रहता। बैठता भी तो आंख खुली रखता। आखिर सम्राट की उत्सुकता बढ़ी। पूरी रात, किसी भी समय, भी जाता, मगर उसको जागा हुआ पाता। कभी टहलता, कभी बैठता, कभी खड़ा होता, लेकिन जागा होता। सोया, सम्राट उसे कभी न पा सका।
महीने बीत गए, उत्सुकता घनी होने लगी। आखिर एक दिन उससे न रहा गया। वह रुका और कहा कि फकीर, एक उत्सुकता है। अनाधिकार है। कोई हक मुझे पूछने का नहीं, लेकिन उत्सुकता घनी हो गयी है और अब बिना पूछे नहीं रह सकता। किसलिए जागते रहते हो रात भर?
फकीर ने कहा कि…संपदा है, उसकी सुरक्षा के लिए। सम्राट और हैरान हुआ। उसने कहा, संपदा दिखाई नहीं पड़ती। ये टूटे—फूटे ठीकरे पड़े हैं। तुम्हारा भिक्षापात्र, ये तुम्हारे चीथड़े—इनको तुम संपदा कहते हो, दिमाग ठीक है? और उनको चुरा कौन ले जाएगा?
उस फकीर ने कहा, जिस संपदा की बात मैं कर रहा हूं, वह तुम्हारी समझ में न आ सकेगी। तुम्हें ठीकरे ही दिखाई पड़ते हैं, और ये गंदे वस्त्र…। और वस्त्र गंदे हों कि सुंदर, क्या फर्क पड़ता है—वस्त्र ही हैं; और ठीकरे टूटे—फूटे हों कि स्वर्ण के पात्र हों, ठीकरे ही हैं। इनकी बात ही कौन कर रहा है? एक और संपदा है, जिसकी रक्षा करनी है।
पर सम्राट ने कहा, संपदा मेरे पास भी कुछ कम नहीं है, मैं भी सोता हूं।
उस फकीर ने कहा, तुम्हारे पास जो संपदा है, तुम मजे से सो सकते हो, वह खो भी जाए तो कुछ खोएगा नहीं। मेरे पास जो है, वह अगर खो गया तो सब खो जाएगा। और पहुंचने के बिलकुल करीब हूं। हाथ में आयी—आयी बात है, चूक गया तो पता नहीं, कितने जन्म लगेंगे!
There was a fakir in Japan: Bokuju. He was in Tokyo, in the capital itself. It is an old story, about three hundred years ago.
The emperor used to go out on horseback at night, as the old emperors used to do, in disguise, to see the city: what was happening where. The whole city would have been asleep, this one fakir would have been awake under the tree. Often he would have been standing. Even while sitting, he would have kept his eyes open. At last the emperor’s curiosity increased. Whole night, at any time, he would also go, but would find him awake. Sometimes he would walk, sometimes he would sit, sometimes he would stand, but he would be awake. Soya, the emperor could never find him.
Months passed, curiosity started to thicken. After all, one day he could not live with it. He paused and said Fakir, there is a curiosity. It is illegal. I have no right to ask, but my curiosity has increased and now I cannot live without asking. Why do you stay awake all night?
The fakir said that… there is wealth, for its protection. The emperor was further surprised. He said, wealth is not visible. These broken pieces are lying there. Your beggar, these rags of yours-you call them wealth, is your brain okay? And who will steal them?
That fakir said, you will not be able to understand the wealth I am talking about. You can only see the splinters, and these dirty clothes…. And whether the clothes are dirty or beautiful, what difference does it make-the clothes are the same; And the shards may be broken or broken to be vessels of gold, they are still shards. Who is talking about them? There is one more asset, which has to be protected.
But the emperor said, I have no less wealth, I also sleep.
That fakir said, the wealth you have, you can sleep comfortably, even if it is lost, you will not lose anything. If I lose what I have, all is lost. And I’m so close to reaching it. It is a matter that has come in hand, if it is missed then do not know, how many births it will take!