एक कारवाँ एक मरुभूमिको पार कर रहा था । रास्तेंमें पानीका सर्वथा अभाव हो गया । अन्तमें थोड़ा सा जल उनके पास बच रहा । अब यात्री उसे मापसे परस्पर बाँटने लग गये। उस मापका प्रकार यह था कि एक प्यालेमें एक छोटा कंकड़ डाल दिया गया था। जब जल कंकड़के ऊपर आ जाय तब वह एक व्यक्तिका उचित भाग मान लिया जाता था। वह जल भी केवल उसके प्रधान लोगोंके हिस्से पड़ता था ।
जब पहले दिन जल बाँटा जाने लगा, तब प्रथम माप काब – इब्न-मम्माहको दिया जाने लगा । वह उसे लेना ही चाहता था कि उसकी दृष्टि नामीर जातिके एक आदमीपर पड़ी जो बड़ा ध्यान लगाये उसकी ओर सतृष्ण दृष्टिसे देख रहा था। उसने जल बाँटनेवालेको कहा, ‘भइया! मेरा हिस्सा कृपया इस व्यक्तिको दे दो।’ उस व्यक्तिने जल पी लिया और काब – इब्न-मम्माहकोबिना जलके ही रह जाना पड़ा। दूसरे दिन पुनः जलका विभाजन आरम्भ हुआ। और उस नामीर जातिका वह पुरुष पुनः बड़े ध्यानसे उधर देखने लगा। ‘काब’ ने पुनः अपना भाग उस व्यक्तिके लिये दिला दिया।
पर अब जब कारवाँ चलने लगा, तब काबको इतनी भी शक्ति न रह गयी थी कि वह किसी प्रकार ऊँटपर बैठ सके। वह मरुस्थलमें ही लेट गया। सबोंने देखा कि अब कोई यहाँ ठहरता है तो सभी नष्ट होंगे, अतएव किसीने उसकी सहायताका साहस नहीं किया और मांसलोभी हिंस्र जन्तुओंके भयसे उसके ऊपर कुछ वस्त्र डालकर चलते बने।
वस्तुतः काब करुणाका आदर्श था, जिसने अपनी जान दे दी। पर दया- कातरताका तिरस्कार करनेका साहस वह न कर सका। -जा0 श0
A caravan was crossing a desert. There was complete lack of water on the way. In the end, some water was left with them. Now the passengers started distributing it among themselves according to the measure. The type of measurement was that a small pebble was put in a cup. When the water reached the top of the pebble, it was considered a person’s fair share. That water also used to be shared only by its chief people.
When water was distributed on the first day, then the first measure was given to Ka’b-Ibn-Mammah. He just wanted to take it when his eyes fell on a man of Namir caste who was looking at him with great attention. He said to the water distributor, ‘Brother! Please give my share to this person.’ The man drank the water and Ka’b ibn-Mammah had to be left without water. The division of water started again on the second day. And that man of that famous caste again started looking there very carefully. ‘Kaab’ again got his share for that person.
But now when the caravan started moving, then Kab was not even strong enough to sit on the camel somehow. He lay down in the desert itself. Everyone saw that if someone stayed here now, everyone would be destroyed, so no one dared to help him and in fear of the carnivorous beasts, kept walking by putting some clothes on him.
In fact, Kaab was an ideal of compassion, who gave his life. But he could not muster the courage to scorn kindness. -Ja0 Sh0