।।श्रीहरिः।।
“वह ह्या पै दान लेत हैं “
एक सत्य घटना
श्री जी की कृपा हुई और मुझे 14 वर्षों के बाद पुनः श्री ब्रज दर्शन की आज्ञा मिली । मैं वृंदावन होता हुआ श्री लाडली जी के बरसाने पहुंचा । संध्या समय सांकरी खोर गया ।
सुंदर लता पताओ से आच्छादित दो छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच केवल एक ही मनुष्य के चलने योग्य सकरी गली के पुण्य दर्शन हुए ।
यहीं पर मनमोहन नटनागर ब्रज बालाओं को रोककर दही का दान लेते और प्रेम का झगड़ा किया करते थे ।
एक वृक्ष के नीचे पत्थर पर दही गिरने के चिन्ह देखकर मैं सोचने लगा कि यहां पर दही कैसे गिरा। इस बात पर विचार करता हुआ गह्वर वन होकर वापस आया ।
दूसरे दिन प्रातः काल फिर वही गया । देखा एक वृद्धा ग्वालिन माई साधारण घाघरा ओढनी पहने माथे पर दो दहेडिया रखे चमोली गांव की ओर से आई । वृक्ष के नीचे खड़ी होकर दहेहेड़ी से एक कटोरी दही निकालकर पत्थर पर डाल दिया ।
मैंने उससे पूछा और जो कुछ उसने कहा उसको ज्यों का त्यों लिखने का प्रयत्न कर रहा हूं ।
मैं _ माई तूने वहां दही क्यों गिराया ?
वृद्धा _
मैंने वाके लिए दही दै दीनों है । वह ह्या ं पे दान लेय है _ दान ।
मैं _ क्या वह दान लेकर तुम्हारा दही खाता है?
वृद्धा _ क्यों नाँय । बराबर तो वाको दर्शन होय नायँ। याही गैल मैं दह्यो ले जाया करती हो ।
एक बार एक छोटो सो छोरा दसेक बरस को मोयँ याई ठाँ रोक्यो ! कह्यो कि तू मेरो दान दै के जा ।
मैंने कहा _ मैं तोयँ दान दूंगी । जब तूने गुजरीन ते दान लीणो है तो मैं क्यों ना दूंगी । चल परें तें चल , मैं देऊँ हूं ।
वाने कह्यो
_ डोकरी तू भाग जाएगी !! मोय ना देगी !!! एसो कह , वा पत्थर पर बैठ बंसी बजान लाग्यो ।
मैंने एक बेली दही निकारी कह्यो __ ले अपनों दान ।
वाने बंसी को बगल में दाब लीनी दोनों हाथन कूँ या तरियाँ सूँ जोर के दोना बनायो वामें दह्यो ले चाटते चाटते वा गैल सूँ ऊपर चल्यो गयो ।
जब सों मैं बाकू यहां दान दै जाय करूँ हूँ। या वाई कूँ दान दीनों हैं! वाई कूँ !!!
इस सीधी साधी वृद्धा ग्वालिन ई की बातें इतनी मधुर , स्वाभाविक और भावपूर्ण तथा सच्चाई से ओतप्रोत थी कि मेरा हृदय प्रेम और आनंद से भर गया । जब उसने पत्थर की और अपनी उंगली से निर्देश किया तथा अपनी दोनों दहेडियो को सिर पर रखे रखे अपनी तीनों उंगलियों को जोड़ कर दोनों का आकार बनाया और ऊपर की ओर उसने दही चाटते चाटते चले जाने का मार्ग दिखलाया तो मेरे हृदय का आनंद रुक नहीं सका।
प्रेम अश्रु के रूप में नेत्रों से बरस पड़े । मैं उस प्रेममई बड़भाग इनके दोनों चरणों को पकड़कर प्रेम जल से धोने लगा । उसकी आंखों में भी जल भर आया । उसकी चरण धूलि लेकर मैंने अपने को कृत कृत्य माना । श्री जी की कृपा का अनुभव हुआ । ब्रज वासियों का कथन सत्य है कि मेरो लाला ब्रज से बाहर नहीं गयो है
यह बृजवासिनी धन्य है जो उस नटनागर की लीला का आज भी प्रत्यक्ष अनुभव करती हैं ।