संत इगनाशियस लायलाके जीवनकी एक घटना है। उनकी कृपासे एक भयानक व्यभिचारी पुण्यात्मा हो गया।
रातका समय था। बड़े जोरका हिमपात हो रहा था। नदी और तालाब आदिका पानी शीतसे जमता जा रहा था। एक दुर्व्यसनी विलासी युवक किसी दुराचारिणी स्त्रीसे मिलनेके लिये अपने रास्तेपर चला जा रहा था; अचानक उसके पैर एक तालाबके किनारे रुक गये, वह चेष्टा करनेपर भी आगे नहीं बढ़ पाता था।
“कहाँ जा रहे हो! क्या तुम ईश्वरीय न्यायकी कड़कती बिजली नहीं सुन पा रहे हो? वह अभी तुम्हारे सिरपर घहरानेवाली है।’ एक आवाज उसकेकानोंके परदे फाड़ने लगी।
‘नहीं रुकोगे? तो जाओ। तुम्हारे पापोंका फल मैं भोग लूँगा। कहीं ऐसा न हो भगवान्का कोप तुमपर घहरा पड़े। मैं परमात्माको मनाऊँगा।’ दूसरी आवाजसे पापी नवयुवक अपने-आपको नहीं सँभाल सका। उसके भाव बदल गये, उसने देखा कि संत इगनाशियस लायला गलेतक जमे तालाब में खड़े उसके कल्याणकेलिये भगवान् से प्रार्थना कर रहे हैं।
वह संतके पैरोंपर गिर पड़ा, उसने क्षमा माँगी; संत लायलाकी कृपादृष्टिसे उसका जीवन परम पवित्र हो गया।
– रा0 श्री0
There is an incident in the life of Saint Ignatius Lyall. By his grace, a terrible adulterer became a pious soul.
It was night time. It was snowing heavily. The water of the river and the pond etc. was freezing due to cold. A debauched lustful young man was on his way to meet a promiscuous woman; Suddenly his feet stopped at the bank of a pond, he could not move forward even if he tried.
“Where are you going! Can’t you hear the crackling thunder of divine justice? It’s about to strike you now.” A sound started tearing his eardrums.
‘Won’t you stop? So go I will bear the fruits of your sins. Lest it happen that God’s anger may fall on you. I will persuade God.’ The sinful young man could not control himself from the second voice. His mood changed, he saw St. Ignatius Lyla standing in the frozen pond praying to God for his welfare.
He fell at the feet of the saint, he asked for forgiveness; With the grace of Saint Layla, his life became pure.