पोप पाइस नवमको एक दिन विचित्र पत्र मिला जिसमें स्याहीके अनेक धब्बे थे। बहुत-सी भूलें थीं। कागज अत्यन्त मैला था। उसे रोमके अड़ोस-पड़ोसके एक गाँवमें रहनेवाले वालकने भेजा था और मृत्युशय्यापर पड़ी हुई माँकी सेवा-शुश्रूषा और दवाके लिये सहायता माँगी थी। बालकने अत्यन्त असहाय स्थितिमें पत्र लिखा था; उसके पास एक पैसा भी नहीं था; जो कुछ था सो पहले ही समाप्त हो चुका था, उसे विश्वास था कि धर्मगुरु और ईश्वरके परम भक्त होनेके नाते पोप अवश्य सहायता करेंगे।
‘मैं पोपसे मिलना चाहता हूँ।’ बालकने पोपके निवास स्थानपर पहुँचकर द्वारपालको पत्रोत्तर दिखाया था, जिसमें पोपने दूसरे दिन सबेरे मिलनेकी इच्छा प्रकट की थी। पोप बड़े उदार थे। उन्होंने बालकको एक स्वर्णमुद्रा दी। उसकी ओर बड़े स्नेहसे देखकर कहा कि ‘शीघ्र ही घर जाकर माँका यथाविधि उपचार करो।’ ‘पर यह तो केवल बीस ही लाइर का है। इतनेसे काम न चलेगा।’ बालकके नयनोंमें करुण याचना थी। ‘क्षमा करो, भाई! मुझे तुम्हारे पत्रका स्मरण ही नहीं रहा।’ पोपने एक मुद्रा और दी।
‘पर यह तो मेरी आवश्यकतासे अधिक है। मेरे पास फुटकर सिक्के भी नहीं हैं; कल सबेरे शेष पैसे अवश्य लौटा दूँगा।’ बालकने पोपको धन्यवाद दिया और चला गया।
दूसरे दिन सबेरे-सबेरे वह पोपके सामने अपने वचनके अनुसार उपस्थित हुआ। शेष पैसे लौटाने ही जा रहा था कि पोपने उसकी सत्यवादिताकी बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने बालकके आनेके पहले ही अपना विशेषसेवक भेजकर बालक और उसकी माँकी स्थितिका पता लगा लिया था। वे बालकको देखकर बहुत प्रसन्न हुए ।
‘मैंने तुम्हारी शिक्षा और माताकी सेवा-शुश्रूषाकीपूरी-पूरी व्यवस्था कर दी है।’ पोप पाइसने बालकको आश्वासन दिया। उनकी कृपासे बालकने आगे चलकर बड़ा नाम
कमाया। रा0 श्री0
Pope Pius IX received a strange letter one day which had many ink blots. There were many mistakes. The paper was very dirty. He sent him to Valkone, who lived in a village in the neighborhood of Rome, and sought help for the care and medicine of his mother, who was lying on her death bed. The child had written the letter in a very helpless condition; He was penniless; Whatever was there was already finished, he was sure that the Pope, being a religious leader and a supreme devotee of God, would definitely help.
‘I want to see the Pope.’ On reaching the Pope’s residence, the boy had shown the gatekeeper the letter post, in which the Pope had expressed his desire to meet him the next morning. The Pope was very generous. He gave a gold coin to the boy. Looking at her with great affection, he said, ‘Go home soon and treat your mother properly’. ‘But it’s only twenty lire. This much will not work. There was compassion in the eyes of the child. ‘Sorry, brother! I can’t remember your letter at all.’ Pope gave another currency.
‘But this is more than I need. I don’t even have change coins; Tomorrow morning I will definitely return the remaining money. The boy thanked the Pope and left.
The next day, early in the morning, he appeared before the Pope as per his promise. Was going to return the remaining money that the Pope praised his truthfulness. Even before the arrival of the child, he had sent his special servant to find out the condition of the child and his mother. He was very happy to see the child.
‘I have made complete arrangements for your education and mother’s service.’ Pope Pius assured the child. By his grace, the child later became a big name.
Earned. Ra0 Mr.0