एक मुसलमान फकीर थे हाजी महम्मद। वे साठ बार मकाशरीफ हज कर आये थे और प्रतिदिन पाँचों वक्त नियमसे नमाज पढ़ते थे। एक दिन हाजी महम्मद साहेबने सपने में देखा – ‘स्वर्गीय दूत बेंत हाथमें लिये स्वर्ग और नरकके बीचमें खड़ा है। जो भी यात्री आता है, उसके भले-बुरे कर्मोंका परिचय जानकर वह किसीको स्वर्ग और किसीको नरकमें भेज रहा है। हाजी महम्मद इनके सामने आये तब दूतने पूछा- ‘तुम किस सत्कार्यके फलस्वरूप स्वर्गमें जाना चाहते. हो ?’ उत्तरमें हाजी साहबने कहा-‘मैंने साठ बार हज किया है।’ स्वर्गीय दूत बोला- ‘यह तो सत्य है; परंतु जब कोई तुमसे नाम पूछता तो तुम गर्वके साथ बोलते- ‘मैं हाजी महम्मद हूँ।’ इस गर्वके कारण तुम्हारा साठ बार हज करनेका पुण्य नष्ट हो गया। तुम्हारा और कोई पुण्य हो तो बताओ ?”
हाजी साहबका, जो अपनेको सहज ही स्वर्गका यात्री मानते थे, मुँह उतर गया। उन्होंने काँपते हुए स्वर्गीय दूतसे कहा- ‘मैंने साठ सालतक नित्य नियमितरूपसे प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़ी है।’ स्वर्गीय दूतने कहा-‘ नष्ट हो गयी।’ -‘तुम्हारी वह पुण्यकी ढेरी भी हाजी महम्मदने काँपते-काँपते पूछा – ‘सो कैसे ?
मेरे किस अपराधसे यह तप नष्ट हो गया ?’ स्वर्गीय दूतने कहा—’एक दिन बाहरके बहुत-से धर्मजिज्ञासु तुम्हारे पास आये थे, उस दिन तुमने उनके सामने उन लोगोंको दिखानेके लिये दूसरे दिनों की अपेक्षा अधिक देरतक नमाज की थी। इस लोग दिखाऊ भावके कारण तुम्हारी साठ वर्षकी तपस्या नष्ट हो गयी।’
स्वर्गीय दूतकी बात सुनते ही बूढ़े हाजी चिल्लाकर रो पड़े। चिल्लानेकी आवाज कानोंमें पड़ते ही उनकी नींद टूट गयी। जागनेपर भी स्वप्रकी बातका स्मरण करके वे भयसे काँपते और कराहते रहे। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई और उस दिनसे उनका गर्व दूर | गया, वे दीन बन गये। भगवान्ने स्वप्नमें सावधान करके उनपर बड़ी कृपा की।
Haji Muhammad was a Muslim fakir. He had performed Hajj to Makashrif sixty times and used to offer Namaz regularly five times a day. One day Haji Muhammad Saheb saw in a dream – ‘Heavenly messenger is standing between heaven and hell with a cane in his hand. Knowing the good and bad deeds of every traveler who comes, he is sending some to heaven and some to hell. When Haji Muhammad came in front of him, the messenger asked – ‘As a result of which good deed do you want to go to heaven. Are ?’ In reply Haji Saheb said – ‘I have performed Hajj sixty times.’ The heavenly messenger said – ‘ This is true; But when someone asked you your name, you proudly said – ‘I am Haji Muhammad.’ Due to this pride, your virtue of performing Hajj sixty times was destroyed. Tell me if you have any other virtue?”
Haji Saheb, who easily considered himself a traveler of heaven, lost his face. Trembling he said to the heavenly messenger- ‘I have offered Namaz regularly five times a day for sixty years.’ The heavenly messenger said – ‘It is destroyed.’ Haji Muhammad asked tremblingly – ‘So how?
By what crime of mine has this penance been destroyed?’ The heavenly messenger said-‘ One day many religious seekers from outside came to you, that day you prayed longer than other days to show them in front of them. Your sixty years of austerity has been destroyed because of the pretentiousness of these people.’
The old Haji cried out on hearing the words of the heavenly messenger. His sleep was disturbed as soon as the sound of shouting reached his ears. Even after waking up, he kept trembling and moaning in fear remembering his own words. He realized his mistake and from that day his pride went away. Gone, they became poor. God showed great kindness to him by warning him in his dream.