आत्मज्ञान आवश्यक
मनुष्यको एक पंख उग आया-विज्ञानका पंख उसने जोर लगाया और आकाशमें उड़ गया। पर अब वह मुक्त और शान्त नहीं था। उसे चारों ओरसे जटिलताकी आँधियोंने सताना प्रारम्भ कर दिया।
मनुष्य बहुत घबराया। प्रार्थना की कि हे ‘प्रभो! कैसे संकटमें डाल दिया? इससे तो अच्छा था कि हमें जन्म ही न देते।’ आकाशको चीरती हुई काल-पुरुषकी आवाज आयी – ‘वत्स! आत्मज्ञानका एक पंख और उगा। भीतरवाली चेतनाका भी विकास कर। वही संतुलन पैदा कर सकेगी।’
enlightenment required
Man grew a wing – he thrust the wing of science and flew in the sky. But now he was not free and calm. The storms of complexity started torturing him from all sides.
Man got very scared. Prayed that ‘O Lord! How did you get in trouble? It would have been better not to have given birth to us at all. The voice of Kaal-Purush came tearing the sky – ‘ Vats! One more wing of enlightenment grew. Develop the inner consciousness also. Only she will be able to create balance.