एक मुमुक्षुने अपने गुरुदेवसे पूछा- ‘प्रभो! मैं कौन-सी साधना करूँ ?’
‘तुम बड़े जोरसे दौड़ो। दौड़नेके पहले यह निश्चित कर लो कि मैं भगवान्के लिये दौड़ रहा हूँ। बस, यही तुम्हारे लिये साधना है।’ गुरुने बतलाया।
‘तो क्या बैठकर करनेकी कोई साधना नहीं है।’
शिष्यने पुनः पूछा।’है क्यों नहीं। बैठो और निश्चय रखो कि तुम भगवान् के लिये बैठे हो।’ गुरुने उत्तर दिया। ‘भगवन्! कुछ जप नहीं करें ?’ शिष्यने पुनः प्रश्न किया।
‘किसी भी नामका जप करो, सोचो मैं भगवान्के लिये कर रहा हूँ।’ गुरुने समझाया। ‘तब क्या क्रियाका कोई महत्त्व नहीं? केवल भावही साधना है।’ शिष्यने फिर पूछा। गुरुने कहा- ‘भैया ! क्रियाकी भी महत्ता है। क्रियासे भाव और भावसे ही क्रिया होती है। इसलिये दृष्टि लक्ष्यपर रहनी चाहिये। फिर तुम जो कुछ करोगे,वही साधना होगी। भगवान्पर यदि लक्ष्य रहे तो वे सबको सर्वत्र सर्वदा मिल सकते हैं। ऐसा है ही कौन जिसे भगवान् नहीं मिले हुए हैं। लक्ष्य यदि ठीक रखा जाय तो साधना स्वयमेव ठीक हो जायगी।’
A Mumukshu asked his Gurudev – ‘ Lord! Which meditation should I do?’
‘You run very fast. Before running make sure that I am running for God. That’s all, this is the meditation for you. Guru told.
‘So there is no meditation to do while sitting.’
The disciple asked again. ‘Why not? Sit and be sure that you are sitting for the sake of God.’ The Guru replied. ‘God! Don’t chant anything?’ The disciple asked again.
‘Chant any name, think I am doing it for God.’ Guru explained. ‘ Then does the action have no importance? There is only spiritual practice.’ The disciple asked again. The teacher said – ‘Brother! Action is also important. From action comes emotion and from emotion comes action. That’s why the vision should be on the target. Then whatever you do, that will be spiritual practice. If the aim is on God, then he can be found everywhere and always. Who is like this who has not met God. If the goal is kept right, then the meditation will automatically be right.