प्रेम दशा में सयानापन रहता नही ….वहाँ तो कैसे भी “रस” को पीने की उत्कट प्यास ।
लोग क्या कहेंगे ?
ना , ये बात बहुत पीछे छूट चुकी है ….अब लोग दीखते कहाँ हैं !
कहाँ हैं लोग ?
बस दिखाई देता है तो “रस” , गमन में रस …पथ में रस …दृश्यों में रस …मन नयन श्रवण और तन में बस रस ही रस । कहीं पहुँचना है ? कहीं जाना है ? ना , रस तो मिला हुआ है , कहीं पहुँचकर रस की प्राप्ति होगी …ये गलतफ़हमी है …मिल गया रस …अब तो भटकने में भी रस है । रस का कारण ? अजी कारण शब्द की यहाँ आवश्यकता नही है …यहाँ कारण की कल्पना भी होती नही है ….रस व्यापक है ..सर्वत्र है …सर्वदा है …अजी क्यों न हो जिसे तुम ब्रह्म कहते हो परमात्मा ईश्वर या और जो भी नाम हैं वो सब रस के ही तो हैं । आहा ! रस रस केवल रस ।
बालकृष्ण जी का यश अब बृज में फैल रहा था ।
उनके भजन का प्रभाव नन्दगाँव में चर्चा का विषय था ।
छोटे छोटे बृजवासी बालक इनको देखते ही “रोने वाला बाबा” कहकर इनसे प्रेम करते थे ….नन्दगाँव के बूढ़े बड़े बृजवासी इनके प्रति श्रद्धा रखते थे ….युवकों को ये प्रिय थे …..बृजवासन माताएं इनको मधुकरी देकर प्रसन्न होती थीं ।
पर कुछ लोग ईर्ष्या करने लगे , बृजवासी भला क्यों ईर्ष्या करते …किन्तु कुछ बाबा लोग ही थे जो इनकी प्रतिष्ठा से चिढ़ गये ..और उन्होंने एक किसी बजारू स्त्री को पैसे देकर कहा ..बस इस बालकृष्ण दास को तुझे बदनाम करना है ..इसके साथ संसर्ग कर फिर हम लोग पीछे आही जाएँगे ।
स्त्री चली गयी …रात्रि में भजन करते हुए बालकृष्ण जी टहलते थे ….उसी समय इस स्त्री को भेजा इन तथाकथित बाबाओं ने ….वो गयी ….पीछे छुप कर खड़े थे दुष्ट बाबा लोग ….
बालकृष्ण जी महामन्त्र का उच्चारण करते हुये रस मग्न घूम रहे थे ….
तभी वो स्त्री उनके पास गयी ….और अपने वस्त्र उघाड़ते हुये बोली …बाबा ! आजा ।
बालकृष्ण जी पहले तो समझे नही ….वो तो नन्दनन्दन के चिन्तन में मग्न थे….पर स्त्री ने जाकर जैसे ही उनका स्पर्श किया ….बालकृष्ण जी ने देखा ….अर्धनग्न स्त्री को देखते ही वो तो रोने लगे …दाहाड मार कर रोने लगे …उस स्त्री को हाथ जोड़ते हुये बोले …मैया ! ये मत करो …ये मानव जीवन बहुत दुर्लभ है …श्रीकृष्ण की विशेष कृपा हुयी है …तब यह जीवन मिला है …उसमें भी भारत वर्ष में …उसमें भी बृज में ! फिर ये सब क्यों ? ये कहते हुये बालकृष्ण दास जी उस स्त्री के पैरों में पड़ गये थे …..और रोते ही जा रहे थे …..आस पास के बृजवासियों ने जब सुना बालकृष्ण बाबा रो रहा है …तो सब बाहर निकले ….अब वो स्त्री डर गयी और वहाँ से भागी ।
पीछे जो दुष्ट बाबा लोग थे जिन्होंने ये षड्यंत्र रचा था वो भी जब भागने लगे …तब एक को सर्प ने डस लिया ….दूसरा पास के कुण्ड में ही गिर गया ।
पर ये बालकृष्ण जी अभी भी रोते जा रहे थे ….इनके मन में करुणा सहज प्रकट हो गयी थी कि देखो , ये सब करने से इनकी दुर्गति ही तो होगी …क्यों कर रहे हैं ये लोग ये सब ।
तीन दिन तक बालकृष्ण जी इस घटना को लेकर रोते रहे थे …..लोगों ने पूछा भी पर इन्होंने कुछ नही बताया ।
अब बालकृष्ण जी को लोग एक सिद्ध महात्मा के रूप में समझने लगे थे ….लोग आते , इनके पास लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गयी थी …ये सबके पाँवों में अपना मस्तक रख देते थे ….बृजवासीयों से ये आशीर्वाद लेते थे …पर बृजवासियों की श्रद्धा इनके प्रति और और बढ़ती ही जा रही थी ।
इनके भजन में विघ्न होने लगा ….एकान्त इनका बाधित होने लगा था ……
क्या करें नन्दगाँव छोड़ दें ? पर नन्दगाँव को छोड़ने की इनकी इच्छा नही थी …जब इनकी इच्छा नही तो कन्हैया की भी इच्छा नही ।
“तू यशोदा कुण्ड में जाकर रह, वहाँ एक गुफा भी है “ नन्दनन्दन का आदेश आया ।
यशोदा कुण्ड ? आज ध्यान में ही संवाद चल रहा था ।
“हाँ , मेरी यशोदा मैया वहीं नहाती” ….कन्हैया इतना बोलकर मौन हो गये ।
वो स्थान एकान्त था …नन्दगाँव की बस्ती से कुछ दूर ….बालकृष्ण जी गये वहाँ …हाँ यशोदा कुण्ड के सन्निकट ही एक गुफा थी ….वहीं जाकर रहने लगे थे बालकृष्ण दास जी । इन्हें यहाँ बहुत आनन्द आरहा था …सवा तीन लाख के स्थान पर अब चार लाख नाम जाप ये कर रहे थे ….और लीला चिन्तन तो साथ साथ ही …अद्भुत ।
दिव्य नन्दभवन …..गोपियों का झुण्ड आरहा था सामने से …और वो गोपियाँ ! उनके देह से कमल की गन्ध प्रकट हो रही थी ……वो अत्यन्त सुन्दर थीं सुन्दर से भी ज़्यादा ।
बालकृष्ण जी खड़े होकर सब का दर्शन कर रहे थे …..गोपियाँ कहाँ जा रही हैं ? ये प्रश्न मन में जैसे ही उठा कि एक गोपी बोलती हुई आगे बढ़ गयी ।
“मटकी फोड़ी है ….माखन खायो है …और तो और बहुत ऊधम मचायो है …..”
ये कहते हुए उस गोपी ने बालकृष्ण जी को छु लिया था ….ओह ! तभी पीछे से एक प्रौढ़ गोपी आयी और बालकृष्ण जी को अपनी गोद में बिठाकर एक हल्की सी चपत लगाई …”कन्हैया के साथ तू तो नाँय हो ना ? “। बस फिर बालकृष्ण जी को गोद से नीचे उतार कर वो चल दी ….ये घटना घट गयी आज ….उसी समय बालकृष्ण जी मूर्छित हो गये ….उन्हें कुछ भान नही था …..ये स्थिति इनकी दो दिनों तक रही ….उन दो दिनों में क्या हुआ …कैसे बिताया …कहाँ पड़े रहे …ये इनको भी भान नही था ।
इस दिव्य अनुभव के बाद तो विचित्र स्थिति इनकी हो गयी थी …..
गोप गोपी के दर्शन करके तो इनका उन्माद और बढ़ा …अब इन्हें कहीं जाने आने की इच्छा नही रही……नींद तो बिल्कुल ही चली गयी …क्या करें …भिक्षा के लिए तो जाना पड़ेगा ना ….पर अब इनसे ये भी नही हो पा रहा था …..
तो इन्होंने तय किया सात घर से मधुकरी माँगूँगा ….एक घर की मधुकरी एक दिन …..उस लाये हुए मधुकरी को सुखा कर रख लूँगा …और उनको ही पाऊँगा ….रात दिन तो मेरे बीत जाएँगे …।
बालकृष्ण दास जी ने ये आहार की नयी रीत निकाली थी …इससे भजन – साधन तो तो खूब हो …गया …..पर शरीर ? शरीर का अपना धर्म है …..
शेष कल –