सन् 1831 की बात है, एक 12 वर्षका हिंदू । बालक चित्तूरके जिला – जजके दरवाजेपर उपस्थित हुआ। वह एक ऐसे किसानका लड़का था, जिसे समयपर मालगुजारी न अदा करनेके कारण जेलकी सजा दे दी गयी थी। किसानने कुछ सरकारी जमीन ली थी, पर उस वर्ष कोई फसल न हुई और तत्कालीन कानूनके अनुसार उसे जेल जाना पड़ा। इधर पिताजेलमें ही था कि उसके पितामहके वार्षिक श्राद्धका अवसर आ गया। अब उसकी माँ इसलिये रोने लग गयी कि उसका पिता इस समय घर न होकर जेलमें था, फिर यह क्रिया हो कैसे ? यही रंगनादके चित्तूरके जिला – जजके दरवाजेपर उपस्थित होनेका कारण था ।
जजने बालककी पूरी बात सुन ली और कहा ‘मैं तुम्हारे पिताको बिना किसी जमानत तथा प्रतिभूकेनहीं जाने दे सकता।’
* सदा सत्कथा सा लड़केने बड़े उत्साहके साथ कहा, ‘मेरे पास धन तो है नहीं जो ज़मानत मुचलकेकी बात करूँ। पर मैं पिताके स्थानपर स्वयं ही जेलमें बंद रहूँगा।’
जजका हृदय पिघल गया। उसने उसके पिताकी मुक्ति सम्बन्धी कागजातपर हस्ताक्षर करके उसे छोड़दिया। दोनों पिता-पुत्र उसी रात घर पहुँचे। उचित समयपर श्राद्ध-क्रिया सम्पन्न हुई ।
यही रंगनाद आगे चलकर पंद्रह भाषाओंमें अच्छी तरह बोल और लिख लेनेवाला प्रसिद्ध रंगनाद शास्त्री हुआ।
– जा0 श0
It is about the year 1831, a 12 year old Hindu. The boy appeared at the door of the District Judge of Chittoor. He was the son of a farmer who had been jailed for not paying the revenue on time. The farmer had taken some government land, but there was no crop that year and he had to go to jail according to the then law. Here the father was in jail only that the occasion of his grandfather’s annual Shraddha came. Now his mother started crying because her father was not at home at this time and was in jail, then how should this action happen? This was the reason for Ranganad appearing at the door of the District Judge of Chittoor.
The judge listened to the child’s whole story and said ‘I cannot let your father go without any bail and surety.’
* Always a true story, the boy said with great enthusiasm, ‘ I don’t have money to talk about surety bond. But I myself will remain in jail instead of my father.’
Judge’s heart melted. He signed the papers related to his father’s release and released him. Both father and son reached home the same night. Shradh-Kriya was completed at the right time.
This Ranganad later became the famous Ranganad Shastri who could speak and write well in fifteen languages.