सिद्दियोंने जंजीरके अभागे दीवान आवजी हरि चित्रेका खून करके उनको पत्नी और दो पुत्रोंको बेच भी दिया। यह तो पत्नीकी चतुराई थी कि अधिक मूल्यके लोभमें वे राजापुरमें बेचे गये और उन्हें इनके मामाने खरीद लिया। पत्नी गुलबाई 17 वर्षीय प्रथम पुत्र बालाजी, द्वितीय चिमणाजी और अन्तिम नन्हे श्यामजीको लेकर वहीं रहने लगी।
बालाजीने शिवाजी महाराजके यहाँ नौकरीके लिये आवेदन करते हुए सारी घटना लिख भेजी थी। संयोगवश कुछ ही दिनों बाद लड़ाईसे लौटते हुए शिवराजका राजापुरमें ही पड़ाव पड़ा अवसर देख बालाजी उनसे मिला और महाराजने तत्काल उसे अपने यहाँ लेखकके स्थानपर रख लिया महाराज उसके सुन्दर अक्षरोंपर मुग्ध थे, अतः माताके हठ पकड़नेपर वे मातासहित तीनों भाइयोंको रायगढ़ ले गये।
शिवराज पर्यङ्कपर पौढ़े कागज पत्र देख रहे थे। सूचना पाकर बालाजी आ पहुँचे। महाराजने पूछा “प्रातः हमने एक पत्रका उत्तर लिखनेके लिये तुमसे कहा था, सो लिखा ही होगा।’ बालाजीने कहा-‘हाँ, महाराज!’ ‘तो दिखाओ।’- शिवाजीने प्रश्न किया। बालाजीने कहा -‘अभी साफ नहीं किया, कल दरबारमें साफ करके सुनाऊँगा।’
‘क्या, साफ किये बिना पत्र नहीं पढ़ना चाहिये ?’
शिवाजीने आग्रहपूर्ण स्वरमें कहा।
थैलीसे कागज निकाल, ‘जैसी महाराजकी इच्छा!’ कहते हुए बालाजी पढ़ने लगा
‘श्रीः परमेश्वर प्रतिनिधि साक्षात् तीर्थरूप श्रीपितृचरणोंमें
बालक शिवाका त्रिकाल साष्टाङ्ग नमस्कार। अनन्तर
आपका पत्र प्राप्त हुआ। आशय ध्यानमें आया। आपने लिखा कि जिस कार्यका बीड़ा उठाया, उसके लिये सर्वदा कटिबद्ध रहो सो आपका आदेश हमारे लिये ईश्वरका आदेश है। अनन्तर आपने शुभ कामना प्रकट की है कि तुम्हारे शत्रुओंकी पनियाँ अपने गरम-गरम असे अपने संतप्त हृदयको शीतल करें, सो आपके तथा पूर्वजोंके पुण्यसे आपका यह आशीर्वाद सदा सफल रहा है। अनन्तर आपने लिखा है कि शिवा,यदि तू मेरा पुत्र है तो मेरा अपमान करनेवाले, मुझे बंदी बनानेवाले नीच बाजी घोरपड़ेका शासन होना चाहिये, सो आपके प्रतापसे वह नीच घोरपड़े उसी प्रकार नष्ट होगा, जिस प्रकार गजराजपर सामनेसे आक्रमण करनेवाला वनराज इति अलम् । आशीर्वादेच्छु
महाराजको पत्र पसंद आ गया। उन्होंने कल साफकर दरबारमें लानेको कहा। और आज्ञा लेकर बालाजी चला गया। सारी घटना देख और सुनकर शिवाजीका सेवक रायबा मुसकरा रहा था।
बालाजीके जानेपर शिवाजीने उससे मुसकरानेका कारण पूछा। रायबाने अपराधके लिये क्षमा माँगकर कहा- ‘बालाजी आपकी आज्ञा पाकर धूर्ततासे सादा कागज पढ़ रहा था, इसीलिये हँसी आयी।’ शिवाजीके आश्चर्यका ठिकाना न रहा।
दूसरे दिन दरबार लगनेपर शिवाजीने बालाजीसे पत्र साफ करनेकी बात पूछी। बालाजीने पत्र निकाल सामने रख दिया। शिवाजीने पास पड़े सादे कागजको उठा बालाजीको देते हुए कहा – ‘यह तुम्हारे इस पत्रकी प्रथम प्रति, जो तुमने कल पढ़ी, लो और ठीक उसी तरह पढ़ो। अगर एक भी गलती हुई तो माँ भवानी ही तुम्हारी रक्षा कर सकती है।’
सरदार आबाजीको पत्र देते हुए कहा- आप इससे मिलाइये, यह जो पढ़ेगा।’ बालाजीने सिर अञ्जलिमें छिपाकर कहा-क्षमा हो महाराज! कार्यव्यस्ततासे लिख नहीं पाया। महाराजकी आज्ञा हुई तो ‘नहीं’ कहनेका साहस भी नहीं हुआ l
महाराजने कहा-‘ और सादा कागज इस तरह पढ़ दिया मानो लिखा हुआ ही पढ़ रहे हो। पर बिल्लीके आँखें मूँदनेसे दुनिया अंधी नहीं हो जाती। दरबारियो! इसने धोखा दिया है। बतायें, क्या दण्ड दें?’
दरबारी चुप रहे। महाराजने कहा-‘ अच्छा मैं स्वयं दण्डविधान करता हूँ। बालाजी तुमने गम्भीर अपराध किया, इसलिये दण्ड भी गम्भीर भुगतना होगा। आगे आओ।’
बालाजी आगे आ सिर झुकाकर खड़ा हो गया।महाराजने सेवकको संकेत किया। सेवक आच्छादित चाँदीका थाल ले आया। शिवाने उसमेंके वस्त्र उलटकर पगड़ी निकाली और बालाजीके सिरपर धर दी। बालाजीने आनन्द और आश्चर्यके साथ कहा-
‘महाराज !’ शिवाजीने कहा-‘ -‘हाँ, बालाजी! आजसे तुम दरबारके मन्त्री नियुक्त किये गये। अबसे सरकारी पत्र-व्यवहारविभाग तुम्हारे अधीन रहेगा। तुम्हारे अपराधका दण्ड यही है कि आजसे तुम अपनी यह समय-सूचकता, अद्भुत स्मरणशक्ति, अलौकिक चातुर्य और अपने मोतीके समान अक्षरोंका उपयोग स्वदेश-हितको छोड़ और किसी काममें न लानेकी शपथ लो।’
बालाजीने जमीनपर सिर लगाकर शपथ ली।
– गो0 न0 बै0
सिद्दियोंने जंजीरके अभागे दीवान आवजी हरि चित्रेका खून करके उनको पत्नी और दो पुत्रोंको बेच भी दिया। यह तो पत्नीकी चतुराई थी कि अधिक मूल्यके लोभमें वे राजापुरमें बेचे गये और उन्हें इनके मामाने खरीद लिया। पत्नी गुलबाई 17 वर्षीय प्रथम पुत्र बालाजी, द्वितीय चिमणाजी और अन्तिम नन्हे श्यामजीको लेकर वहीं रहने लगी।
बालाजीने शिवाजी महाराजके यहाँ नौकरीके लिये आवेदन करते हुए सारी घटना लिख भेजी थी। संयोगवश कुछ ही दिनों बाद लड़ाईसे लौटते हुए शिवराजका राजापुरमें ही पड़ाव पड़ा अवसर देख बालाजी उनसे मिला और महाराजने तत्काल उसे अपने यहाँ लेखकके स्थानपर रख लिया महाराज उसके सुन्दर अक्षरोंपर मुग्ध थे, अतः माताके हठ पकड़नेपर वे मातासहित तीनों भाइयोंको रायगढ़ ले गये।
शिवराज पर्यङ्कपर पौढ़े कागज पत्र देख रहे थे। सूचना पाकर बालाजी आ पहुँचे। महाराजने पूछा “प्रातः हमने एक पत्रका उत्तर लिखनेके लिये तुमसे कहा था, सो लिखा ही होगा।’ बालाजीने कहा-‘हाँ, महाराज!’ ‘तो दिखाओ।’- शिवाजीने प्रश्न किया। बालाजीने कहा -‘अभी साफ नहीं किया, कल दरबारमें साफ करके सुनाऊँगा।’
‘क्या, साफ किये बिना पत्र नहीं पढ़ना चाहिये ?’
शिवाजीने आग्रहपूर्ण स्वरमें कहा।
थैलीसे कागज निकाल, ‘जैसी महाराजकी इच्छा!’ कहते हुए बालाजी पढ़ने लगा
‘श्रीः परमेश्वर प्रतिनिधि साक्षात् तीर्थरूप श्रीपितृचरणोंमें
बालक शिवाका त्रिकाल साष्टाङ्ग नमस्कार। अनन्तर
आपका पत्र प्राप्त हुआ। आशय ध्यानमें आया। आपने लिखा कि जिस कार्यका बीड़ा उठाया, उसके लिये सर्वदा कटिबद्ध रहो सो आपका आदेश हमारे लिये ईश्वरका आदेश है। अनन्तर आपने शुभ कामना प्रकट की है कि तुम्हारे शत्रुओंकी पनियाँ अपने गरम-गरम असे अपने संतप्त हृदयको शीतल करें, सो आपके तथा पूर्वजोंके पुण्यसे आपका यह आशीर्वाद सदा सफल रहा है। अनन्तर आपने लिखा है कि शिवा,यदि तू मेरा पुत्र है तो मेरा अपमान करनेवाले, मुझे बंदी बनानेवाले नीच बाजी घोरपड़ेका शासन होना चाहिये, सो आपके प्रतापसे वह नीच घोरपड़े उसी प्रकार नष्ट होगा, जिस प्रकार गजराजपर सामनेसे आक्रमण करनेवाला वनराज इति अलम् । आशीर्वादेच्छु
महाराजको पत्र पसंद आ गया। उन्होंने कल साफकर दरबारमें लानेको कहा। और आज्ञा लेकर बालाजी चला गया। सारी घटना देख और सुनकर शिवाजीका सेवक रायबा मुसकरा रहा था।
बालाजीके जानेपर शिवाजीने उससे मुसकरानेका कारण पूछा। रायबाने अपराधके लिये क्षमा माँगकर कहा- ‘बालाजी आपकी आज्ञा पाकर धूर्ततासे सादा कागज पढ़ रहा था, इसीलिये हँसी आयी।’ शिवाजीके आश्चर्यका ठिकाना न रहा।
दूसरे दिन दरबार लगनेपर शिवाजीने बालाजीसे पत्र साफ करनेकी बात पूछी। बालाजीने पत्र निकाल सामने रख दिया। शिवाजीने पास पड़े सादे कागजको उठा बालाजीको देते हुए कहा – ‘यह तुम्हारे इस पत्रकी प्रथम प्रति, जो तुमने कल पढ़ी, लो और ठीक उसी तरह पढ़ो। अगर एक भी गलती हुई तो माँ भवानी ही तुम्हारी रक्षा कर सकती है।’
सरदार आबाजीको पत्र देते हुए कहा- आप इससे मिलाइये, यह जो पढ़ेगा।’ बालाजीने सिर अञ्जलिमें छिपाकर कहा-क्षमा हो महाराज! कार्यव्यस्ततासे लिख नहीं पाया। महाराजकी आज्ञा हुई तो ‘नहीं’ कहनेका साहस भी नहीं हुआ l
महाराजने कहा-‘ और सादा कागज इस तरह पढ़ दिया मानो लिखा हुआ ही पढ़ रहे हो। पर बिल्लीके आँखें मूँदनेसे दुनिया अंधी नहीं हो जाती। दरबारियो! इसने धोखा दिया है। बतायें, क्या दण्ड दें?’
दरबारी चुप रहे। महाराजने कहा-‘ अच्छा मैं स्वयं दण्डविधान करता हूँ। बालाजी तुमने गम्भीर अपराध किया, इसलिये दण्ड भी गम्भीर भुगतना होगा। आगे आओ।’
बालाजी आगे आ सिर झुकाकर खड़ा हो गया।महाराजने सेवकको संकेत किया। सेवक आच्छादित चाँदीका थाल ले आया। शिवाने उसमेंके वस्त्र उलटकर पगड़ी निकाली और बालाजीके सिरपर धर दी। बालाजीने आनन्द और आश्चर्यके साथ कहा-
‘महाराज !’ शिवाजीने कहा-‘ -‘हाँ, बालाजी! आजसे तुम दरबारके मन्त्री नियुक्त किये गये। अबसे सरकारी पत्र-व्यवहारविभाग तुम्हारे अधीन रहेगा। तुम्हारे अपराधका दण्ड यही है कि आजसे तुम अपनी यह समय-सूचकता, अद्भुत स्मरणशक्ति, अलौकिक चातुर्य और अपने मोतीके समान अक्षरोंका उपयोग स्वदेश-हितको छोड़ और किसी काममें न लानेकी शपथ लो।’
बालाजीने जमीनपर सिर लगाकर शपथ ली।
– गो0 न0 बै0