गांधीजीके बचपनके एक मित्र थे – शेख मेहताब साहब। इन मित्रके कारण उनमें पहले अनेक बाल सुलभ दुर्गुण भी आ गये थे जिन्हें गांधीजीने पीछे अपने मित्रके साथ ही बड़ी कठिनतासे एक-एक करके परित्याग किया। इन्हीं महोदयने कृपा करके इन्हें एक दिन वेश्यालय भी पहुँचा दिया था। पर भगवत्कृपासे या जन्मान्तरके संस्कार या अज्ञानसे ये कैसे बच गये, इसका विस्तृत विवरण स्वयं उन्हींके शब्दोंमें पढ़िये
—’मैं मकानमें दाखिल तो हुआ; पर ईश्वर जिसे बचाना चाहता है, वह गिरनेकी इच्छा करता हुआ भी बच सकता है। उस कमरेमें जाकर मैं तो मानो अंधा हो गया। कुछ बोलनेका औसान ही न रहा। मारे शरमके चुपचाप उस बाईकी खटियापर बैठ गया। बाई झल्लाई और दो-चार बुरी – भली सुनाकर सीधा दरवाजेका रास्ता दिखलाया।’
‘उस समय तो मुझे लगा, मानो मेरी मर्दानगीको लाञ्छन लग गया और धरती फट जाय तो मैं उसमें समा जाऊँ। पर बादको इससे मुझे उबार लेनेके लिये मैंने ईश्वरका सदा उपकार माना है। मेरे जीवनमें ऐसे ही चार प्रसङ्ग और आये हैं। पर मैं दैवयोगसे बचतागया हूँ। विशुद्ध दृष्टिसे इन अवसरोंपर मैं गिरा ही समझा जा सकता हूँ; क्योंकि विषयकी इच्छा करते ही मैं उसका भोग तो कर चुका। फिर भी लौकिक दृष्टिसे हम उस आदमीको बचा हुआ ही मानते हैं, जो इच्छा करते हुए भी प्रत्यक्ष कर्मसे बच जाता है। और मैं इन अवसरोंपर इतने ही अंशतक बचा हुआ समझा जा सकता हूँ। फिर कितने ही काम ऐसे होते हैं, जिनके करनेसे बचना व्यक्तिके तथा उसके सम्पर्कमें आनेवालोंके लिये बहुत लाभदायक साबित होता है। और विचार शुद्धि हो जानेपर उस कर्मसे बच जानेमें व्यक्ति ईश्वरका अनुग्रह मानता है। जिस प्रकार न गिरनेका यत्न करते हुए भी मनुष्य गिर जाता है, उसी प्रकार पतनकी इच्छा हो जानेपर भी मनुष्य अनेक कारणोंसे बच जाता इसमें कहाँ पुरुषार्थके लिये स्थान है, कहाँ दैवके लिये अथवा किन नियमोंके वशवर्ती होकर मनुष्य गिरता है या बचता है, ये प्रश्न गूढ़ हैं। ये आजतक हल नहीं हो सके हैं। और यह कहना कठिन है कि इनका अन्तिम निर्णय हो सकेगा या नहीं।’
सचमुच इन विचारोंमें गांधीजीकी सरलता तथा महत्ता साफ फूट पड़ती है।
– जा0 श0
Gandhiji had a childhood friend – Sheikh Mehtab Sahib. Due to this friend, many child-friendly bad qualities had also developed in him earlier, which Gandhi ji abandoned one by one with great difficulty along with his friend. The same sir kindly took him to a brothel one day. But read the detailed description in his own words of how he was saved by God’s grace or the rituals of birth after birth or ignorance.
—’ I have entered the house; But whom God wants to save, he can be saved even if he wants to fall. After going into that room, it was as if I became blind. There was no capacity to speak anything. Ashamed, he silently sat on the cot of that bike. Bai Jhallai and after telling a couple of good and bad things showed me the way to the door.’
‘At that time I felt as if my masculinity had been defamed and if the earth bursts, I would get absorbed in it. But later I have always considered it a favor to God for saving me from this. Four more such incidents have come in my life. But luckily I have escaped. From a pure point of view, I can be understood to have fallen on these occasions; Because as soon as I desired the subject, I have already enjoyed it. Nevertheless, from the worldly point of view, we consider that man to be saved, who, despite having a desire, is saved from direct action. And I can only be considered saved to such an extent on these occasions. Then there are many such things, avoiding doing which proves very beneficial for the person and those who come in contact with him. And when thoughts are purified, a person considers God’s grace to be saved from that action. Just as a man falls even while trying not to fall, in the same way a man gets saved due to many reasons even when he has the desire to fall. Where is there a place for effort, where is there for God or by obeying which rules a man falls or survives, these questions are mysterious. Huh. These have not been resolved till date. And it is difficult to say whether their final decision will be taken or not.
Really, the simplicity and importance of Gandhiji is clearly evident in these thoughts.