मध्याह्न वेला भिक्षु भिक्षा कर चुके थे। जेतवनमें विश्राम करते हुए एकने कहा- ‘मगधराज सेनिय विम्बसार राज्य एवं सम्पत्तिकी दृष्टिसे बड़ा है। ‘नहीं!’ दूसरे भिक्षुने बात काटकर कहा – ‘कोसलराज प्रसेनजित् बड़ा है।’
‘तुम्हें पता नहीं!’ पहले भिक्षुने अपनी बातका समर्थन किया। ‘महाराज सेनिय बिम्बसारके राज्यकोषकी तुलना कोसलराजसे कैसे हो सकती है।’
‘प्रसेनजितके वैभवसे महाराज सेनिय बिम्बसारकी तुलना नहीं।’ दूसरे भिक्षुने चटसे उत्तर दिया ‘और….'”
‘क्या बात हो रही है ?’ भगवान् आ निकले। दूसरे भिक्षुका मुँह खुला का खुला ही रह गया। प्रथम भिक्षुभी मौन था।
‘महाराज सेनिय बिम्बसार और कोसलराज प्रसेनजित्में राज्य, धन एवं वैभवकी दृष्टिसे कौन बड़ा है ? इसीपर चर्चा हो रही थी।’ तीसरे भिक्षुने भगवान्को आसन देकर अत्यन्त विनीत वाणीमें कहा।
‘भिक्षुओ!’ प्रभु बोले – ‘प्रव्रजित होनेके बाद | सांसारिक चर्चा ही उचित नहीं । तुम्हें बोलना हो तो केवल धार्मिक चर्चा करो, अन्यथा मौन रहो।’
कुछ क्षणोंके अनन्तर भगवान्ने पुन: कहा ‘तृष्णा-क्षयके दिव्य सुखकी तुलनामें सांसारिक काम सुख धूलिके तुल्य हैं।’
– शि0 दु0
By noon the monks had done alms. While resting in Jetavana, one said – ‘ Magadharaj Seniya Vimbasar is bigger in terms of state and wealth. ‘No!’ The second monk interrupted and said – ‘Kosalraj Prasenjit is big.’
‘you not know!’ The first monk supported his point. ‘How can the treasury of King Seniya Bimbasar be compared to that of the King of Kosala?’
‘Maharaj Seniya Bimbasar cannot be compared to Prasenjit’s glory.’ ‘And…’ replied the other monk.
‘What’s the matter?’ God came out. The other monk’s mouth remained open. The first monk was also silent.
‘Who is greater in terms of kingdom, wealth and glory, Maharaj Seniya Bimbasar and Kosalaraj Prasenjit? This was being discussed. The third monk gave a seat to the Lord and said in a very polite voice.
‘Monks!’ The Lord said – ‘After migration. Worldly discussion is not proper. If you want to speak then only discuss religious, otherwise keep silent.’
After a few moments, the Lord again said, ‘The pleasures of worldly work are like dust in comparison to the divine pleasures of thirst-decaying.’
– Shi0 Du0