परमात्मा पर्याप्त है


अनेकों तरह से अनेक सम्पत्तियों की खोज में बाहर भटका। बाहरी खोज से उसे तृप्ति नहीं मिली । फिर स्वयं में, अपने ही अन्दर सम्पत्ति की खोज-बीन शुरू की। जो मिला वही परमात्मा था।

औरउसे पा लेना ही सम्पत्ति है।
पुरानी कथा है, किसी चारण ने एक सम्राट की बहुत तारीफ की। उसकी स्तुति में अनेक सुन्दर गीत गाए। यह सब उसने कुछ पाने की लालसा से किया।

उसकी प्रशंसाओं से सम्राट हंसता रहा। फिर उसने स्तुति गान करने वाले उस चारण को सोने की बहुत सी मुहरें भेंट कीं। उस व्यक्ति ने जब इन मुहरों पर निगाह डाली, तो उसके अन्दर कुछ कौंध गया।

एक चमक उसकी चेतना में बिखर गयी।
उसने आकाश की ओर कृतज्ञता भरी नजरों से देखा। लगा आकाश भी मौन स्वरों में उसके अन्तर भावों के साथ सहमति जता रहा है।

अब उसने मुहरें फेंक दी और वह नाचने लगा। एक अनूठी कृतज्ञता उसके मुख पर छा गयी। उसका हाल कुछ का कुछ हो गया।

उन मुहरों को देखकर उसमें न मालुम कैसी क्रान्ति हो गयी थी। अब वह चारण न रहा, सन्त हो गया। उसकी अन्तर्चेतना में कामना की बजाय प्रार्थना के स्वर गूँजने लगे।


बहुत वर्षों बाद किसी ने उससे पूछा, ऐसा क्या था उन मुहरों में? क्या वे जादुई थीं। वह हंसा और बोला, मुहरें नहीं, वह वाक्य जादुई था, जो उसमें लिखा था।

कुछ पलों की आत्म निमग्नता के बाद उसने अपनी बात पूरी की, उस पर लिखा था ‘जीवन की सभी आवश्यकताओं के लिए परमात्मा पर्याप्त है।’
सच ही ‘परमात्मा पर्याप्त है।’ जो जानते हैं, वे सभी इस सच की गवाही देते हैं। यह जीवन की गहरी अनुभूति है,

जिनके पास सब कुछ है, सारा ऐश्वर्य है, ईश्वर के बिना वे दरिद्र दिखाई देते हैं। और ऐसे सम्पत्तिशाली भी मिले, जिनके पास कुछ भी नहीं, केवल परमात्मा है।

तभी यह सूत्र प्रकट हुआ, जिन्हें सब पाना है, उन्हें सब छोड़ देना होगा। जो सब छोड़ने का साहस रखते हैं, वे स्वयं प्रभु को पा लेते हैं। उनके सामने यह सच अनायास ही उजागर हो जाता है, कि ‘परमात्मा पर्याप्त है।’

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on pinterest
Share on reddit
Share on vk
Share on tumblr
Share on mix
Share on pocket
Share on telegram
Share on whatsapp
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *