वट सावित्री व्रत

पति की दीर्घायु हेतु वट वृक्ष की पूजा”

वट सावित्री व्रत का पूजन 19 मई को विधि-विधान से होगा। इस दिन सुहागिनें 16 श्रृंगार करके बरगद के पेड़ की पूजा कर फेरें लगाती हैं ताकि उनके पति दीर्घायु हों। प्यार, श्रद्धा और समर्पण का यह भाव इस देश में सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहता है।

वट वृक्ष बरगद को जल चढ़ाना केवल एक प्रथा नहीं बल्कि सुख शांति तरक्की का माध्यम है
आपको बता दें कि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। सनातन परंपरा में वट सावित्री पूजा स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे करने से हमेशा अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीष प्राप्त होता है।
कथाओं में उल्लेख है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिए तीन वरदान दिये। एक वरदान में सावित्री ने मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है।

सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गयी कि,वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं।

जब सावित्री पति के प्राण को यमराज के फंदे से छुड़ाने के लिए यमराज के पीछे जा रही थी उस समय वट वृक्ष ने सत्यवान के शव की देख-रेख की थी। पति के प्राण लेकर वापस लौटने पर सावित्री ने वट वृक्ष का आभार व्यक्त करने के लिए उसकी परिक्रमा की इसलिए वट सावित्री व्रत में वृक्ष की परिक्रमा का भी नियम है।

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, आम फल और मिठाई से वट वृक्ष की पूजा कर सावित्री, सत्यवान और यमराज की कथा श्रवण कर पूजा करें। ब्राह्मण देव को दक्षिणा आदि सामग्री दान करें।
वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार, 5 बार, 8 बार, 11 बार, 21 बार, 51, 108 जितनी परिक्रमा कर सके करें। पूजा के बाद वटवृक्ष से सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें।

बरगद की पूजा जरूर करें…..


ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन
वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थायी धन और
सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

बरगद के पेड़ को वट का वृक्ष कहा जाता है।

पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि वटवृक्ष की
जड़ों में ब्रह्माजी, तने में विष्णुजी और डालियों
एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर
पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है।

हिन्दू धर्मानुसार 5 वटवृक्षों का महत्व अधिक है


अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट

इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त 5 वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है।

प्रयाग में अक्षयवट,
नासिक में पंचवट,
वृंदावन में वंशीवट,
गया में गयावट
और
उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
जहाँ प्रत्येक चौदस अमावस्या
के पहले वाली तिथि को पित्रो को
दूध अर्पित किया जाता है।

मानस से-
तहं पुनि संभु समुझिपन आसन।
बैठे वटतर, करि कमलासन।।

भावार्थ- अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों यहां तक
कि देवताओं ने भी वटवृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।


वट और पीपल के वृक्ष पहले बहुत लगाये जाते थे, ये धर्म से जुड़ा हुआ वृक्ष है, लेकिन आज वर्तमान के लिए यह वृक्ष अति आवश्यक है। क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में पड़ रहे सूखे, अत्यधिक गर्मी और प्रदूषण की वजह क्या है ?

बरगद और पीपल के वृक्षों की कमी होना।

विकास के नाम पर इस प्रकार के बड़े पेड़ों को काटना, इनके नए पेड़ नहीं लगाना, इन पेड़ों के संरक्षण, संवर्धन में कमी।।

आप को लगेगा अजीब बकवास है किन्तु यही अटल सत्य है.. .।

पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द कर दिया गया है।
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड को 100% सोख लेता है, बरगद़ 80% और नीम 75 %
हमने इन पेड़ों से दूरी बना लिया तथा इसके बदले यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन कर देता है।

अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही ।
हर 500 मीटर की दूरी पर एक बरगद का, पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त हिन्दुस्तान होगा।
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए, बरगद और पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है जिसकी वजह से शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं। वैसे भी बरगद और पीपल को वृक्षों का राजा कहते है।

इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।

भावार्थ तो समझ ही गए होंगे।

अब करने योग्य कार्य

इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगायें तथा यूकेलिप्टस पर बैन लगाया जाये इसके साथ नीम और आम के पौधे भी लगाएं। हर शहरों में ऐसा नियम बनाया जाये की हर घर के आसपास पेड़ जरूर लगाना है, जैसे वाटर हार्वेस्टिंग को जरूरी नियम बनाया गया है वैसे ही हर घर में वृक्ष का नियम भी होना चाहिए।

जिसके घर में ये बड़े पेड़ लगाने की जग़ह न हो वह तुलसी जी का पौधा जरूर लगाये*
आइये हम सब मिलकर अपने “हिंदुस्तान” को प्राकृतिक आपदाओं से बचायें, सूखे से बचायें, अत्यधिक गर्मी से बचाएं प्लास्टिक कचरे से बचाएं, निरीह जीव जन्तुओं की रक्षा करें। “जियो और जीने दो हिलमिल कर रहने दो” की नीति अपनाएं।



Worship of Vat tree for longevity of husband”

Vat Savitri fast will be worshiped on May 19 with rituals. On this day, married women do 16 adornments and worship the banyan tree, so that their husbands may live long. This gesture of love, devotion and dedication tells the story of true and pure love in this country.

Offering water to the banyan tree is not just a ritual but a means of happiness, peace and progress… Let us tell you that it is believed that on this day Goddess Savitri saved the life of her husband Satyavan from the noose of Yamraj. In the Sanatan tradition, Vat Savitri Puja is an important festival of women, by doing which one gets the blessings of being unbroken. It is mentioned in the stories that when Yamraj started taking the life of Satyavan, then Savitri also started following Yamraj. Yamraj gave three boons to prevent Savitri from doing so. In a boon, Savitri asked that she be the mother of a hundred sons. Yamraj said that this will happen. After this Savitri told Yamraj that I am a virtuous woman and how is it possible to have a child without a husband.

After listening to Savitri, Yamraj realized his mistake that he had given the boon of returning Satyavan’s life by mistake.

When Savitri was going after Yamraj to save her husband’s life from the trap of Yamraj, at that time the banyan tree took care of the dead body of Satyavan. On returning after taking the life of her husband, Savitri circumambulated the Vat tree to express her gratitude, hence there is a rule of circumambulation of the tree in the Vat Savitri fast.

On the day of Vat Savitri fast, married women worship the banyan tree with vermilion, roli, flowers, Akshat, gram, mango fruit and sweets, listening to the story of Savitri, Satyavan and Yamraj. Donate Dakshina etc. material to Brahmin Dev. Irrigate the root of the banyan tree with milk and water. After this, after wrapping the raw yarn in turmeric and wrapping it in the banyan tree, do parikramas at least three times, 5 times, 8 times, 11 times, 21 times, 51, 108 times. After worship, pray to Savitri from banyan tree and Yamraj for long life of husband and children.

Do worship the banyan…

There is a ritual of worshiping the banyan tree on the day of Jyestha Krishna Amavasya. It is said in the scriptures that on this day Good luck and permanent wealth by worshiping banyan tree and Happiness and peace are attained.

Banyan tree is called Vat tree.

It is clearly written in the Puranas that the banyan tree Brahma in the roots, Vishnu in the trunk and branches And Shiva resides in the leaves. sitting under Wishes are fulfilled by worshiping, fasting, telling and listening to the story.

According to Hindu religion, 5 banyan trees are more important

Akshayavat, Panchavat, Vanshivat, Gayavat and Siddhavat

No one knows about their antiquity. In the world, the above 5 Vats have been kept in the category of holy Vats.

Akshayavat in Prayag, Panchavat in Nashik, Vanshivat in Vrindavan, Gayawat in Gaya And There is a holy Siddhavat in Ujjain. where every fourteenth new moon Peter the day before Milk is offered.

from the mind Tahan Puni Sambhu Samujhipan Aasan. Sitting Vattar, Kari Kamalasan.

Meaning- That means many sagun sadhaks, sages even That even the gods have seen the presence of Lord Vishnu in the banyan tree.

Vat and Peepal trees were planted earlier, it is a tree associated with religion, but today this tree is very important for the present. Do you know what is the reason for the current drought, extreme heat and pollution?

Lack of Banyan and Peepal trees.

Cutting such big trees in the name of development, not planting new trees, lack of conservation and promotion of these trees.

You will think it is strange nonsense but this is the unchanging truth.

Planting of peepal, banyan and neem trees has been stopped at the government level. Peepal absorbs 100% carbon dioxide, banyan 80% and neem 75%. We distanced ourselves from these trees and started planting Eucalyptus instead, which depletes the land of water.

Now, when there will be no refresher in the atmosphere, the heat will definitely increase and when the heat will increase, the water will evaporate. Plant a banyan tree and a peepal tree at every 500 meters distance, then after a few years India will be pollution free. By the way, you should be given one more information, the blade of banyan and peepal leaves is more and the stalk is thinner, due to which the leaves keep moving even in calm weather and keep giving clean oxygen. Anyway, Banyan and Peepal are called the king of trees.

Look at a verse in its praise: The root is Brahma, the skin is Vishnu, and the friend is Shiva. Leaf by leaf, one of all the gods, O king of trees, I offer my obeisances to you.

You must have understood the meaning.

actionable now

These life-giving trees should be planted as much as possible and eucalyptus should be banned, along with it, neem and mango plants should also be planted. Such a rule should be made in every city that trees have to be planted around every house, just as water harvesting has been made an essential rule, similarly there should be a rule of trees in every house.

Those who do not have space to plant these big trees in their house, they must plant Tulsi plant. Let us all together save our “Hindustan” from natural calamities, save from drought, save from excessive heat, save from plastic waste, save innocent animals. Follow the policy of “live and let live”.

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