एक धनी व्यक्ति ने वसीयत में लिखा- “बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में मेरे ये फटे मोज़े पहनाकर अग्नि देना।” बेटे ने पंडितजी से बाप की इच्छा बताई।
पंडितजी ने कहा- धर्म में कुछ भी पहनाने की अनुमति नही है, पर बेटे की ज़िद थी कि बाप की अंतिम इच्छा पूरी हो। बहस ऐसी बढ़ गई की शहर के विद्वानों को जमा किया गया पर कोई नतीजा न निकला।
अभी ये बहस चल ही रही थी कि एक व्यक्ति आया और उसने एक चिठ्ठी देकर कहा- आपके पिता ने कहा था मरने के बाद मेरे बेटे को दे देना। पिता ने बेटे के लिए शिक्षा दी थी-
“मेरे प्यारे बेटे!”
देख रहे हो?
बंगला, गाडी, फैक्ट्री और दुनियाभर की दौलत के बाद भी मैं एक फटा मोजा तक नहीं ले जा सकता। एक रोज़ तुम्हें भी मौत आएगी। याद रखना तुम्हें भी एक कफ़न में ही जाना है। कोशिश करना दौलत का सही इस्तेमाल हो। नेक कार्य में ख़र्च करना, बेसहाराओं का सहारा बनना क्योंकि अर्थी में सिर्फ तुम्हारे कर्म ही जाएंगे।
जय जय श्री राम