पतिव्रत धर्मका फल

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पतिव्रत धर्मका फल

एक समयकी बात है, सब प्रकारके तत्त्वोंको जाननेवाली, सर्वज्ञ एवं मनस्विनी शाण्डिली देवलोकमें गयी। वहाँ कैकेयी सुमना पहलेसे मौजूद थी। उसने शाण्डिलीको देखकर उससे पूछा- ‘कल्याणी! तुमने किस आचार और बर्तावका पालन किया था, जिससे समस्त पापों का नाश करके तुम इस देवलोकमें आयी हो ? इस समय अपने तेजसे तुम अग्निकी ज्वालाके समान देदीप्यमान हो रही हो। तुम्हें देखकर अनुमान होता है कि थोड़ी-सी तपस्या, साधारण दान या छोटे-मोटे नियमोंका पालन करके तुम इस लोकमें नहीं आयी हो; अतः अपनी साधनाके सम्बन्धमें तुम सच्ची-सच्ची बात बताओ।’
जब सुमनाने इस प्रकार मधुर वाणीमें पूछा तो मनोहर मुसकानवाली शाण्डिलीने धीरेसे उत्तर दिया- ‘देवि ! मैं गेरुआ वस्त्र पहनने, वल्कल धारण करने, मूँड़ मुड़ाने या बड़ी-बड़ी जटाएँ रखानेसे इस लोकमें नहीं आयी हूँ। मैंने सदा सावधान रहकर अपने पतिदेवके प्रति मुँहसे कभी अहितकर और कठोर वचन नहीं निकाले हैं। मैं सदा सास-ससुरकी आज्ञामें रहती और देवता पितर तथा ब्राह्मणोंकी पूजामें प्रमाद नहीं करती थी। किसीकी चुगली नहीं खाती थी। चुगलीकी आदत मुझे बिलकुल पसन्द न थी। मैं घरका दरवाजा छोड़कर अन्यत्र नहीं खड़ी होती और देरतक किसीसे बात नहीं करती थी। मैंने कभी छिपकर या सामने किसीसे अश्लील परिहास नहीं किया तथा मेरे द्वारा किसीका अहित भी नहीं हुआ है। यदि मेरे स्वामी किसी काम से बाहर जाकर फिर घरको लौटते हैं तो मैं उठकर उन्हें बैठनेके लिये आसन देती और एकाग्रचित्तसे उनकी पूजा करती थी। जो अन्न मेरे स्वामी नहीं खाना चाहते, जिस भक्ष्य, भोज्य या लेह्य (चटनी) आदिको वे नहीं पसन्द करते, उन सबको मैं भी त्याग देती थी। सारे कुटुम्बके लिये जो कुछ कार्य आ पड़ता, वह सब मैं सबेरे ही उठकर कर-करा लेती थी। यदि किसी आवश्यक कार्यवश मेरे स्वामी परदेश जाते तो मैं नियमसे रहकर उनके कल्याणके लिये नाना प्रकारके मांगलिक कार्य किया करती थी। स्वामीके बाहर चले जानेपर मैं अंजन, गोरोचन, माला और अंगराग आदिके द्वारा श्रृंगार नहीं करती थी। जब वे सुखसे सोये रहते, उस समय आवश्यक कार्य आ जानेपर भी मैं उन्हें नहीं जगाती थी और ऐसा करके मेरे मनको विशेष सन्तोष होता था। परिवारके पालन-पोषणके कार्यके लिये भी मैं उन्हें कभी तंग नहीं करती थी। घरकी गुप्त बातोंको सदा छिपाये रहती और घर-द्वारको सदा झाड़-बुहारकर साफ रखती थी। जो स्त्री सदा सावधान रहकर इस धर्म मार्गका पालन करती है, वह स्त्रियोंमें अरुन्धतीके समान आदरणीय होती है और स्वर्गलोकमें भी उसकी विशेष प्रतिष्ठा होती है।’ [ महाभारत ]

fruit of chastity
Once upon a time, the knower of all types of elements, omniscient and mind-swini Shandili went to Devlok. Kaikeyi Sumana was already present there. Seeing Shandili, he asked her – ‘Kalyani! What conduct and behavior did you follow, by which you have come to this Devlok after destroying all the sins? At this time you are becoming resplendent like a flame of fire with your brilliance. Seeing you, it is estimated that you have not come to this world by doing a little penance, simple charity or following small rules; So tell the truth about your practice.’
When Sumana asked in such a sweet voice, Shandili, who had a lovely smile, replied softly – ‘Devi! I have not come to this world by wearing saffron clothes, by wearing valkals, by turning my head or by having big locks. I have always been careful and have never uttered harmful and harsh words towards my husband. I always lived under the orders of my mother-in-law and father-in-law and did not neglect the worship of deities, ancestors and Brahmins. She didn’t listen to anyone’s backbiting. I did not like the habit of gossiping at all. I didn’t stand anywhere other than the door of the house and didn’t talk to anyone for a long time. I have never made obscene jokes with anyone secretly or in front of anyone and I have not harmed anyone. If my lord returned home after going out for some work, I would get up and give him a seat to sit on and worship him with concentration. The food that my master does not want to eat, the food, food or lehya (chutney) etc. that he does not like, I used to give up all those. Whatever work had to be done for the whole family, I used to get up early in the morning and get it done. If my master used to go abroad due to any necessary work, I used to do various auspicious works for his welfare by following the rules. When Swami went out, I did not adorn myself with Anjan, Gorochan, Mala and Angrag etc. When they used to sleep peacefully, I did not wake them up even when necessary work came up at that time and by doing this I used to get special satisfaction. I never harassed him even for the work of taking care of the family. She always used to hide the secret things of the house and always kept the door and door clean by sweeping. The woman who always follows this religious path by being careful, she is respected like Arundhati among women and she also has a special reputation in heaven.’ [ Mahabharata ]

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