भाई-बहनका आदर्श प्रेम
इन्द्रप्रस्थमें राजसूय यज्ञ पूर्ण होनेपर चक्रवर्ती सम्राट् युधिष्ठिर अपने पूज्य गुरुजनों, कुटुम्बियों तथा अभ्यागत नरेशोंके साथ राजसभामें विराजमान थे। सर्व सम्मतिसे भगवान् श्रीकृष्णकी अग्रपूजा चल रही थी । तभी शिशुपालने श्रीकृष्णकी अग्रपूजाका प्रतिवाद करते हुए उनपर अपशब्दोंकी बौछार कर दी।
भगवान् श्रीकृष्ण सुनते रहे। पूर्वकालमें शिशुपालकी माँको दिये गये अपने वचनका स्मरणकर वे उसके अपशब्दोंको सहते रहे तथा उनकी गिनती करते रहे। शिशुपालने जैसे ही सौवाँ अपशब्द कहा, वैसे ही श्रीकृष्णने अपने चक्रसे शिशुपालका सिर काट डाला।
शिशुपालपर चक्र छोड़ते समय भगवान्की तर्जनी अँगुली भी घायल हो गयी और उससे टप टप खून टपकने लगा। राजसिंहासनपर युधिष्ठिरके साथ विराजमान द्रौपदी घबराकर उठी और उसने तत्काल अपने आँचलका एक कोना फाड़कर श्रीकृष्णकी अँगुलीमें बाँध दिया। खूनका टपकना बन्द हो गया, किंतु प्रेमकी रसधार फूट पड़ी। बहन द्रौपदीके इस उत्कट स्नेहको देखकर भ्राता श्रीकृष्ण भावविह्वल हो उठे तथा उन्होंने द्रौपदीके इस सौहार्दको अपने ऊपर ऋण माना।
कुछ ही दिन बीते थे कि हस्तिनापुरकी राजसभामें युधिष्ठिर द्रौपदीको जूएमें हार गये। विजयी दुर्योधनकी आज्ञासे दुःशासन द्रौपदीको बलपूर्वक राजसभामें ले आया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने लगा। द्रौपदीने राजसभामें उपस्थित भीष्म आदि सभी महानुभावोंसे एक-एककर विनती की, किंतु किसीने एक न सुनी, तब उसको भ्राता श्रीकृष्ण याद आये और उसने मन-ही-मन द्वारकाधीशको पुकारा। श्रीकृष्ण द्रौपदीकी पुकार सुनते ही दौड़े और उसकी साड़ीको इतना अधिक बढ़ा दिया कि दुःशासन साड़ी खींचते खींचते थककर हार गया; किंतु द्रौपदीकी साड़ी समाप्त नहीं हुई।
द्रौपदीका यह भ्रातृ-प्रेम और श्रीकृष्णद्वारा बहनकी इस प्रकार लज्जा बचाना—ये दोनों ही घटनाएँ भारतीय संस्कृतिके उत्कृष्ट रूपको प्रकट करती हैं।
The ideal love of brothers and sisters
After the completion of the Rajasuya sacrifice at Indraprastha, Chakravarti Emperor Yudhisthira was seated in the royal assembly with his revered teachers, family members and visiting kings. The first worship of Lord Krishna was going on by unanimous consent. Then Shishupala protested against Krishna’s first worship and showered him with abusive words.
Lord Krishna was listening. Remembering his promise to Shishupala’s mother in the past, he endured her abuse and counted it. As soon as Shishupala uttered the hundredth abusive word, Krishna cut off Shishupala’s head with his chakra.
While releasing the chakra on Shishupala, the Lord’s index finger was also injured and blood began to drip from it. Draupadi, who was sitting on the throne with Yudhisthira, got up in panic and immediately tore a corner of her arm and tied it to Krishna’s finger. The blood stopped dripping, but the juice of love burst. Seeing this passionate affection of his sister Draupadi, his brother Sri Krishna was overwhelmed and he considered this affection of Draupadi as a debt to him.
A few days passed when Yudhisthira lost Draupadi in the royal assembly of Hastinapur. At the command of the victorious Duryodhana, Dushasana forcibly brought Draupadi to the royal assembly and began to strip her naked. Draupadi pleaded with all the great men present in the royal assembly, including Bhishma, one by one, but no one listened. Then she remembered her brother Krishna and called out to the lord of Dwarka in her heart. Sri Krishna ran as soon as he heard Draupadi’s cry and extended her sari so much that Dushasana lost his weariness as he pulled the sari; But Draupadi’s sari was not finished.
This brotherly love of Draupadi and the saving of her sister’s shame by Krishna—both these events reveal the excellent form of Indian culture.