एक युवक को अपने पिता के साथ बैंक जाना पड़ा क्योंकि उन्हें कुछ पैसे ट्रांसफर करने थे। बैंक में जाने के बाद वहां थोड़ा समय लग गया। बैंक में जब घंटा भर बीत गया तो युवक अपने आप को रोक नहीं पाया। वह अपने पिता के पास गया और बोला: पिताजी, आप अपने अकाउंट पर इंटरनेट बैंकिंग सेवाएं क्यों नहीं शुरू करवा लेते?
पिता ने पूछा: और मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए?
बेटा बोला: यदि आप ऐसा कर लेते हैं तो आपको पैसे ट्रांसफर करने जैसे कामों के लिए बैंक में घंटों नहीं बैठना पड़ेगा। इसके बाद, आप अपनी खरीदारी भी ऑनलाइन कर सकते हैं। सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा!
बेटा अपने पिता को इंटरनेट बैंकिंग के फायदे दिखाने को लेकर बहुत उत्साहित था।
पिता ने पूछा: अगर मैं ऐसा करता हूं, तो मुझे घर से बाहर कदम नहीं रखना पड़ेगा?
युवक ने बड़े उत्साहित होकर कहा: हां, बिलकुल। आपको कहीं नहीं जाना पड़ेगा। आपके मोबाइल पर बटन दबाकर आर्डर देने की देर है, और आपके घर पर सामान हाज़िर होगा। बेटे ने अपने पिता को बताया कि कैसे अब किराने का सामान भी घर पर पहुंचाया जा रहा है और कैसे अमेज़न जैसी कंपनियां इंसान की ज़रूरत का हर सामन घर पहुंचा देती हैं! ये सब सुनने के बाद पिता ने जो जवाब दिया उससे बेटे की जुबान पर ताला लग गया।
उसके पिता ने कहा: आज, जब से मैंने इस बैंक में प्रवेश किया है, मैं अपने चार दोस्तों से मिल चूका हूं। पैसे ट्रांसफर करवाने के दौरान मैंने बैंक के कर्मचारियों के साथ थोड़ी देर बात की और वो अब मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। तुम्हारे जाने के बाद, मैं बिलकुल अकेला हूं। और मुझे इसी तरह की कंपनी की जरूरत है। मुझे तैयार होकर बैंक आना अच्छा लगता है। समय की दिक्कत तुम्हारी पीढ़ी को होगी, मेरे पास पर्याप्त समय है। मुझे चीज़ों की नहीं, मानवीय स्पर्श की ज़रूरत महसूस होती है।
जवाब सुनकर युवक को झटका लगा।
पिता में आगे कहा: दो साल पहले मेरी तबीयत खराब हो गई थी। जिस दुकानदार से मैं फल ख़रीदता हूँ, उसे पता चला तो वह मुझसे मिलने आया और मेरे हालचाल पूछ कर गया। तुम्हारी माँ कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक के दौरान गिर पड़ी थी। तो जिस व्यक्ति से मैं किराने का सामान लेता हूँ उसने देखा तो वह तुरंत अपनी कार में तुम्हारी मां को घर छोड़कर गया। तो बेटा, अगर मैं सब कुछ ऑनलाइन लूंगा, तो क्या मेरे पास इस तरह का ‘मानवीय’ स्पर्श होगा?
बेटा कुछ बोलता इससे पहले पिता ने कहा: मैं नहीं चाहता कि सब कुछ मुझ तक पहुंचाया जाए और इसके लिए मैं अपने आप को सिर्फ बेज़ुबान, बिना भावनाओं वाले कंप्यूटर से बातचीत करने के लिए सीमित और मजबूर कर लूँ। जिससे मैं कुछ खरीदता हूँ, वो मेरे लिए सिर्फ एक ‘विक्रेता’ नहीं, उससे मेरे मानवीय संबंध बनते हैं। और ये रिश्ते ही हमें इंसान बनाते हैं, हमारी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करते हैं, हमें ज़िंदा महसूस करवाते हैं।
अंत में पिता ने पूछा: क्या कोई कंपनी रिश्ते भी ऑनलाइन डिलीवर करती है?
टेक्नोलॉजी से ज़िंदगी सुविधाजनक तो की जा सकती है लेकिन उसके सहारे
गुजारी नहीं जा सकती।
इंसान सामाजिक प्राणी है।
उपकरणों के साथ कम और
लोगों के साथ अधिक समय बिताएं।
A young man had to go to the bank with his father as he had to transfer some money. After going to the bank it took a while there. When an hour passed in the bank, the young man could not stop himself. He went to his father and said: Father, why don’t you start internet banking services on your account?
Father asked: And why should I do this?
Son said: If you do this then you will not have to sit for hours in the bank for things like transferring money. After this, you can also do your shopping online. Everything will be very easy!
The son was very excited to show his father the benefits of internet banking.
Father asked: If I do this, I will not have to step out of the house?
The young man said very excitedly: Yes, of course. You don’t have to go anywhere. You just have to press a button on your mobile to place the order, and the goods will be delivered at your doorstep. The son told his father how even groceries are now being delivered at home and how companies like Amazon deliver everything a person needs! After listening to all this, the father’s answer got locked on the son’s tongue.
Her father said: Today, since I entered this bank, I have met four of my friends. While getting the money transferred, I chatted with the bank staff for a while and they know me very well now. After you’re gone, I’m all alone. And I need this kind of company. I like to come prepared to the bank. Time will be a problem for your generation, I have enough time. I need human touch, not things.
The young man was shocked to hear the answer.
The father further said: Two years ago my health deteriorated. When the shopkeeper from whom I buy fruits came to know, he came to meet me and inquired about my well-being. Your mother had fallen down during her morning walk a few days back. So the guy I pick up groceries from saw it and he immediately left your mom at home in his car. So son, if I take everything online, will I have this kind of ‘human’ touch?
Before the son could say anything the father said: I don’t want everything to be delivered to me and for that I limit and force myself to interact only with a voiceless, emotionless computer. From whom I buy something, he is not just a ‘seller’ for me, I have a human relationship with him. And it is these relationships that make us human, fulfill our human needs, make us feel alive.
Finally the father asked: Does any company deliver relationships online?
Life can be made convenient with technology, but with the help of Can’t pass Man is a social animal. less with tools and spend more time with people.