पाँच झेन बोध-कथाएँ
[झेन-साधना बौद्ध परम्पराके अन्तर्गत जापानमें विकसित हुई। जीवनकी सामान्य-सी दीखनेवाली घटनामें सत्यकी असामान्य अनुभूति थोड़े-से शब्दोंमें हो, यही इसकी विशेषता है। पश्चिमी देशोंके विचारकोंने अनेक झेन कथाओंका अपने चिन्तनमें उपयोग किया है, जिसकी कुछ झलक कल्याणके पाठकोंके लिये यहाँ प्रस्तुत की जा रही है-सम्पादक ]
क्षमाद्वारा हृदय परिवर्तन
एक चोर रात्रिके घने अन्धकारमें झेन आश्रममें चोरीकी नीयतसे घुस आया। उसने झेनगुरुको मन्त्र पाठ करते देखा तो उन्हें डरानेकी नीयतसे एक तलवार लहराते हुए सारा धन बाहर निकालनेका आदेश दिया। गुरुने बेपरवाहीसे कहा- ‘मेरे पाठमें विघ्न मत करो। सब सामनेकी आलमारीमें रखा है। जो लेना हो ले लो, किंतु कुछ यहाँके लिये भी छोड़ देना।’ चोर सब समेटकर जाने लगा, तब गुरुने फिर टोका- ‘जब कहींसे कुछ मिले, तब शुक्रिया भी अदा करना चाहिये।’ चोर ‘शुक्रिया’ बोलकर चल दिया।
थोड़े दिनों बाद दैवयोगसे चोर किसी अन्य चोरीमें पकड़ा गया और उसने झेन आश्रममें की हुई चोरीकी बात भी राजदरबार में स्वीकार की। आश्रमके गुरुको जब जाँच-पड़तालमें बुलाया गया, तब उन्होंने कहा कि मेरे यहाँ इसने कोई चोरी नहीं की। मैंने इसे स्वयं धन दिया था और इसने मुझे शुक्रिया भी कहा था। चोरको जो सजा हुई, उसे काटनेके बाद वह सीधा झेनगुरुके पास गया और उनका शिष्य बन गया।
इसी भावकी एक अन्य झेनकथा इस प्रकार है
एक आश्रममें ध्यान शिविर चल रहा था। कुछ लोग एक व्यक्तिको पकड़कर गुरुजीके पास लाये और कहा कि इसने चोरी करनेका प्रयास किया और हमने इसे रंगे हाथों पकड़ा है, इसे आश्रमसे निष्कासित करना चाहिये। गुरुजीने उनकी बातोंपर कोई ध्यान नहीं दिया और वे लोग चले गये। दूसरी बार फिर वैसी ही वारदात हुई और जो लोग उस व्यक्तिको पकड़कर लाये थे, उन्होंने कहा कि अब पानी
सिरसे गुजर गया है। इस चोरको यदि आश्रमसे नहीं निकाला गया तो हम सब यहाँसे चले जायँगे।
झेनगुरुने शान्तिपूर्वक घोषणा की – ‘जो लोग सही और गलत कामका अन्तर समझते हैं, वे तो कहीं भी अपना कल्याण कर लेंगे, किंतु जिसकी मूढ़ता गहन है, उसे तो मेरे सान्निध्यकी ज्यादा जरूरत है। अतः जो लोग जाना चाहें जा सकते हैं, यह यहीं रहेगा।’ वह चोर गुरुके चरणोंमें गिर गया और उसकी अश्रुधारामें उसकी चरित्रहीनताका मैल भी धुल गया।
Five Zen Enlightenment Stories
[Zen-meditation developed in Japan under the Buddhist tradition. In a simple-looking phenomenon of life, there should be an unusual experience of truth in a few words, this is its specialty. Thinkers of western countries have used many Zen stories in their thinking, some glimpse of which is being presented here for the welfare of the readers-Editor]
change of heart through forgiveness
A thief entered the Zen hermitage in the dark of night with the intention of stealing. When he saw Zenguru reciting mantras, with the intention of scaring him, he ordered to take out all the money while waving a sword. The Guru said nonchalantly – ‘ Don’t disturb my lesson. Everything is kept in the front cupboard. Take whatever you want, but leave something for here too.’ The thief started going after collecting everything, then the teacher again interrupted – ‘Whenever you get something from somewhere, then you should also thank him.’ The thief left after saying ‘thank you’.
A few days later, by accident, the thief was caught in another theft and he also accepted the theft in the Zen ashram in the royal court. When the master of the ashram was called for investigation, he said that he did not steal anything from me. I had given money to it myself and it also thanked me. After the thief was punished, he went straight to Zenguru and became his disciple.
Another Zenkatha of the same sentiment is as follows
A meditation camp was going on in an ashram. Some people caught a person and brought him to Guruji and said that he tried to steal and we caught him red handed, he should be expelled from the ashram. Guruji did not pay any heed to their words and they left. The same incident happened for the second time and the people who brought that person after catching them said that now the water
Sirse has passed. If this thief is not removed from the ashram, we will all leave from here.
Zenguru announced calmly – ‘ Those who understand the difference between right and wrong work, they will do their welfare anywhere, but the one whose stupidity is deep, he needs my presence more. So those who want to go can go, it will remain here.’ That thief fell at the feet of the Guru and his tears washed away the dirt of his characterlessness.