मेरा काम है बचाना, मारना नहीं!
‘आ जा पठ्ठे, मुझसे द्वन्द्व-युद्ध कर।’ प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चूरको डॉक्टर जुलेस गुइरिनने ललकारा। पाश्चूरने बड़ी नम्रतासे इस चुनौतीको यह कहकर बेकार कर दिया- ‘मेरा काम लोगोंको बचाना है, उन्हें मारना नहीं।’
X X Xmas
पाश्चूरने बहुत-से आविष्कार किये। रेशमके कीड़ोंका, शराबके कीड़ोंका पता लगाकर चौपट होनेवाले उद्योगोंको बचाया। पशुओं और आदमियोंमें कीटाणुओंसे रोग पनपते हैं, इसकी खोज की। विषूचिका जैसे संक्रामक रोगको दूर करनेका उपाय निकाला।
उसने गरम करके दूध आदिको कीटाणुहीन रखनेकी ‘पाश्चराइजेशन’ की पद्धति निकाली, जिससे आज संसारको अपार लाभ हो रहा है। चीर-फाड़में गरम पानीका प्रयोग चालूकर हजारोंकी जान बचानेका साधन निकाला।
पर पाश्चूरकी सबसे कीमती देन है- पागल कुत्तेकी दवा ।
जानपर खेलकर उसने यह खोज कर डाली। हजारों-लाखों आदमी अपने प्राणोंके लिये आभारी हैं। पाश्चूरके ।
X X X
एक बड़ा-सा पागल बुलडॉग दर्दसे कराह रहा था। मुँहसे लार टपक रही थी। उसके पिंजड़े में एक खरगोश डाला गया कि वह उसे काट ले, पर वह उसे काटनेको तैयार ही न था। प्रयोगके लिये पागल कुत्तेकी लार आवश्यक थी।
अब क्या हो ?
पाश्चूरने कहा कि ‘इसकी लार तो चाहिये ही। इसके जबड़ोंसे इसे चूसना पड़ेगा, तब इसे सूई लगाकर खरगोशमें प्रवेश कराना होगा।’
गुस्सेसे भरे उस बुलडॉगको मेजपर मजबूतीसे कसकर बाँध दिया गया। पाश्चूर अपने मुँहमें शीशेका एक ट्यूब लेकर उसके मुँहपर झुका
एक-एक बूँद लार उसने कुत्तेके मुँहसे चूसी।
प्रयोगभरको लार इकट्ठी हो जानेपर पाश्चूरने अपने सहयोगियोंसे कहा- ‘मित्रो! अब हमें अपना प्रयोग शुरू करना चाहिये।’
इस जहरकी एक बूँद जान लेनेके लिये काफी थी, पर दूसरोंकी जान बचानेके लिये पाश्चूरने खुशी-खुशी इस खतरेको उठाया।
इस प्रयोगके कुछ ही महीनों बाद जोसेफ मीस्टर नामके लड़केको पागल कुत्तेने काट लिया। उसकी मौ बेटेको लेकर पाश्चूरके पास पहुँची ।
खरगोशोंपर, पशुओंपर अभीतक प्रयोग किये गये थे, मनुष्योंपर नहीं। पाश्चूर बहुत देर सोचता रहा। लड़केपर वह इस प्रयोगको करे कि न करे। कहीं प्रयोग असफल हुआ तो ? कहीं हालत सुधरनेके बजाय उलटे बिगड़ गयी तो ? यहाँ तो एक मनुष्यके जीवन-मरणका प्रश्न था।
खतरा तो था, पर पाश्चूरने खतरा उठाया। उसने प्रयोग किया। लड़का तो सारी रात चैनसे सोता रहा, पर पाश्चूर सारी रात जागता रहा। इकतीस दिन हो गये। बीमारी नहीं लौटी। लड़का बिलकुल चंगा हो गया। पागल कुत्तेके काटनेपर पाश्चूरको विजय मिली।
X X X
पाश्चूरने अपना सारा जीवन मनुष्यको रोगोंसे, बीमारियोंसे, कष्टोंसे मुक्त करानेमें लगा दिया।
तमाम वैज्ञानिकोंने इस दिशामें बहुत काम किया है । संसारका दुःख दूर करनेमें इन सबका बहुत बड़ा हाथ है।
पाश्चूर कहता था- ‘मैं तो हर पीड़ित आदमीकीसेवा करना चाहता हूँ, फिर वह चाहे जिस जातिका हो, चाहे जिस रंगका हो, चाहे जिस देशका हो।’
दुखियोंकी सेवा, पीड़ितोंकी सेवा, मानवताकीसेवा! इसीमें तो है मानव जीवनकी सार्थकता।
आओ, पाश्चूरकी तरह हम भी बनें नम्र और सेवापरायण ! [ श्रीकृष्णदत्तजी भट्ट ]
मेरा काम है बचाना, मारना नहीं!
‘आ जा पठ्ठे, मुझसे द्वन्द्व-युद्ध कर।’ प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चूरको डॉक्टर जुलेस गुइरिनने ललकारा। पाश्चूरने बड़ी नम्रतासे इस चुनौतीको यह कहकर बेकार कर दिया- ‘मेरा काम लोगोंको बचाना है, उन्हें मारना नहीं।’
X X Xmas
पाश्चूरने बहुत-से आविष्कार किये। रेशमके कीड़ोंका, शराबके कीड़ोंका पता लगाकर चौपट होनेवाले उद्योगोंको बचाया। पशुओं और आदमियोंमें कीटाणुओंसे रोग पनपते हैं, इसकी खोज की। विषूचिका जैसे संक्रामक रोगको दूर करनेका उपाय निकाला।
उसने गरम करके दूध आदिको कीटाणुहीन रखनेकी ‘पाश्चराइजेशन’ की पद्धति निकाली, जिससे आज संसारको अपार लाभ हो रहा है। चीर-फाड़में गरम पानीका प्रयोग चालूकर हजारोंकी जान बचानेका साधन निकाला।
पर पाश्चूरकी सबसे कीमती देन है- पागल कुत्तेकी दवा ।
जानपर खेलकर उसने यह खोज कर डाली। हजारों-लाखों आदमी अपने प्राणोंके लिये आभारी हैं। पाश्चूरके ।
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एक बड़ा-सा पागल बुलडॉग दर्दसे कराह रहा था। मुँहसे लार टपक रही थी। उसके पिंजड़े में एक खरगोश डाला गया कि वह उसे काट ले, पर वह उसे काटनेको तैयार ही न था। प्रयोगके लिये पागल कुत्तेकी लार आवश्यक थी।
अब क्या हो ?
पाश्चूरने कहा कि ‘इसकी लार तो चाहिये ही। इसके जबड़ोंसे इसे चूसना पड़ेगा, तब इसे सूई लगाकर खरगोशमें प्रवेश कराना होगा।’
गुस्सेसे भरे उस बुलडॉगको मेजपर मजबूतीसे कसकर बाँध दिया गया। पाश्चूर अपने मुँहमें शीशेका एक ट्यूब लेकर उसके मुँहपर झुका
एक-एक बूँद लार उसने कुत्तेके मुँहसे चूसी।
प्रयोगभरको लार इकट्ठी हो जानेपर पाश्चूरने अपने सहयोगियोंसे कहा- ‘मित्रो! अब हमें अपना प्रयोग शुरू करना चाहिये।’
इस जहरकी एक बूँद जान लेनेके लिये काफी थी, पर दूसरोंकी जान बचानेके लिये पाश्चूरने खुशी-खुशी इस खतरेको उठाया।
इस प्रयोगके कुछ ही महीनों बाद जोसेफ मीस्टर नामके लड़केको पागल कुत्तेने काट लिया। उसकी मौ बेटेको लेकर पाश्चूरके पास पहुँची ।
खरगोशोंपर, पशुओंपर अभीतक प्रयोग किये गये थे, मनुष्योंपर नहीं। पाश्चूर बहुत देर सोचता रहा। लड़केपर वह इस प्रयोगको करे कि न करे। कहीं प्रयोग असफल हुआ तो ? कहीं हालत सुधरनेके बजाय उलटे बिगड़ गयी तो ? यहाँ तो एक मनुष्यके जीवन-मरणका प्रश्न था।
खतरा तो था, पर पाश्चूरने खतरा उठाया। उसने प्रयोग किया। लड़का तो सारी रात चैनसे सोता रहा, पर पाश्चूर सारी रात जागता रहा। इकतीस दिन हो गये। बीमारी नहीं लौटी। लड़का बिलकुल चंगा हो गया। पागल कुत्तेके काटनेपर पाश्चूरको विजय मिली।
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पाश्चूरने अपना सारा जीवन मनुष्यको रोगोंसे, बीमारियोंसे, कष्टोंसे मुक्त करानेमें लगा दिया।
तमाम वैज्ञानिकोंने इस दिशामें बहुत काम किया है । संसारका दुःख दूर करनेमें इन सबका बहुत बड़ा हाथ है।
पाश्चूर कहता था- ‘मैं तो हर पीड़ित आदमीकीसेवा करना चाहता हूँ, फिर वह चाहे जिस जातिका हो, चाहे जिस रंगका हो, चाहे जिस देशका हो।’
दुखियोंकी सेवा, पीड़ितोंकी सेवा, मानवताकीसेवा! इसीमें तो है मानव जीवनकी सार्थकता।
आओ, पाश्चूरकी तरह हम भी बनें नम्र और सेवापरायण ! [ श्रीकृष्णदत्तजी भट्ट ]