श्रीविश्वनाथपुरी वाराणसीमें एक साधु गङ्गास्नान कर रहे थे। सहसा उनकी दृष्टि प्रवाहमें बहते एक बिच्छूपर पड़ी। साधुने दया करके उसे हाथपर उठा लिया। बिच्छू तो बिच्छू ही ठहरा, उसकी पीठपरसे पानी नीचे गिरा और उसने अपना भयंकर डंक चला दिया। हाथमें डंक लगनेसे हाथ काँप उठा और बिच्छू फिर पानीमें गिर पड़ा।
साधुके हाथमें भयानक पीड़ा प्रारम्भ हो गयी थी; किंतु उन्होंने आगे झुककर फिर उस बिच्छूको हाथपर उठा लिया और जलसे बाहर आने लगे। बिच्छूने फिरडंक मारा, हाथ फिर काँपा और बिच्छू फिर हाथसे जलमें गिर पड़ा। साधु उसे उठाने फिर जलमें आगे बढ़े।
आस-पास और भी लोग स्नान कर रहे थे। साधु बार बार बिच्छूको उठाते थे और बार-बार वह उनके हाथमें डंक मारता था। लोग इस दृश्यकी ओर आकर्षित हो गये। किसीने कहा- ‘यह दुष्ट प्राणी तो वैसे भी मार देने योग्य है। अपनी दुष्टतासे ही यह मर रहा है तो आप इसे बचानेका निरर्थक प्रयत्न क्यों करते हैं? मरने दीजिये इसे।’
साधुने बिच्छूको हाथपर उठाते हुए कहा – ‘यहक्षुद्र प्राणी अपना डंक मारनेका स्वभाव नहीं छोड़ता है तो मनुष्य होकर मैं अपना दया करनेका स्वभाव कैसे छोड़ दूँ । पशुतासे यदि मानवता श्रेष्ठ है तो मेरी मानवता अवश्य इसकी पशुतापर विजय पायेगी।’
पशुतासे मानवता, क्रूरतासे दया, तमोगुणसे सत्त्वगुण श्रेष्ठ है, बलवान् है, यह तो संदेहसे परे है। साधुकी दयाको विजय पाना ही था। बिच्छूने इस बार अपना डंक सीधा कर दिया। वह ऐसा शान्त हो गया जैसे डंक चलाना उसे आता ही न हो। – सु0 सिं0
A monk was taking a bath in the Ganges in Sri Vishwanathpuri, Varanasi. Suddenly his vision fell on a scorpion flowing in the current. The sage took pity on him and lifted him on his hand. The scorpion remained a scorpion, water fell down its back and it used its fierce sting. Due to the sting in the hand, the hand trembled and the scorpion again fell into the water.
Terrible pain had started in the hand of the monk; But he bent forward and picked up that scorpion on his hand and started coming out of the water. The scorpion stung again, the hand trembled again and the scorpion again fell into the water from the hand. The sages went ahead in the water to pick him up.
Other people were taking bath nearby. The sages used to pick up the scorpion again and again and again and again it used to sting their hands. People got attracted towards this scene. Someone said-‘ This evil creature is worth killing anyway. It is dying because of its own wickedness, so why do you make futile efforts to save it? Let him die.’
Taking the scorpion on his hand, the monk said – ‘If this small creature does not give up its nature of stinging, then how can I, being a human being, give up my nature of kindness. If humanity is superior to animalism, then my humanity will definitely win over its animalism.’
Humanity than animalism, kindness than cruelty, sattva guna than tamo guna is superior, it is stronger, this is beyond doubt. Sage Daya had to win. The scorpion straightened its sting this time. He became as calm as if he did not know how to sting. – Su 0 Sin 0