कोसलमें गाधि नामके एक बुद्धिमान् श्रोत्रिय, धर्मात्मा ब्राह्मण रहते थे। शास्त्रज्ञान और धर्माचरणका फल विषयोंसे वैराग्य न हो तो शास्त्रज्ञान और धर्माचरणको वन्ध्य ही मानने चाहिये। गाधिको वैराग्य हो गया। वे बन्धु-बान्धवोंसे अलग होकर वनमें तपस्या करने चले गये।
गाधिने वनमें एक सरोवरके जलमें खड़े होकर तपस्या प्रारम्भ की। जलमें वे बराबर आकण्ठ मन रहते थे। भगवद्दर्शनके अतिरिक्त कोई कामना नहीं थी उनके मनमें। आठ महीनेकी कठोर तपस्याके बाद भगवान् विष्णु उनके सम्मुख प्रकट हुए। ब्राह्मणके नेत्र धन्य हो गये। उनका तपस्यासे क्षीण शरीर पुष्ट हो गया एक ही क्षणमें।
‘वर माँगो!’ मेघ गम्भीर वाणीमें प्रभुने कहा । ‘प्रभो! जीवोंको मोहित करनेवाली उस मायाको मैं देखना चाहता हूँ, जिसके द्वारा यह संसार आपमेंअध्यस्त है।’ ब्राह्मणने वरदान माँगा; क्योंकि बहुत विचार करके वह थक गया था; जगत् नित्य है याअनित्य, तथ्य है या अतथ्य – यह उसकी समझमें ठीक आता नहीं था। भगवान् बोले-‘अच्छी बात! मायाको तुम देखोगे और तब उसका त्याग करोगे।’
वरदान देकर गरुडध्वज प्रभु अदृश्य हो गये। कई दिन बीत गये ब्राह्मणको उसी वनमें। अब वे जलमें खड़े रहकर तपस्या नहीं करते थे। वृक्षके नीचे रहकर फल- मूल खाकर भजन करते थे। मायाके दर्शनकी प्रतीक्षामें थे वे ।
एक दिन सरोवरमें स्नान करके विप्रश्रेष्ठ गाधिने हाथके कुशोंसे जलमें आवर्त बनाया और जलमें डुबकी लगाकर अघमर्षण मन्त्रका जप करने लगे। सहसा वे मन्त्र भूल गये। उनके चित्तकी अद्भुत दशा हो गयी। उन्हें लगा कि वे अपने घर लौट आये हैं और वहाँउनका शरीर छूट गया है। अब वे सूक्ष्म शरीरमें हैं। उनके सम्बन्धी रो रहे हैं। उन्होंने सूक्ष्म शरीरमें स्थित होकर देखा कि उनके मृत देहको सम्बन्धी श्मशान ले गये और वहाँ उसे चितामें रखकर जला दिया गया।
सूक्ष्म शरीरमें स्थित गाधिने अनुभव किया कि वह भूतमण्डल नामक देशके एक गाँवमें एक चाण्डाल स्त्रीके गर्भ में पहुँच गया है। यह भूलना नहीं चाहिये कि गाधि यह सब केवल अनुभव कर रहे थे। वस्तुतः उन्होंने तो जलमें अमर्षणके लिये डुबकी लगायी थी। उन्होंने अनुभव किया कि वे चाण्डाल बालक होकर उत्पन्न हुए माता-पिताने उस बालकका नाम कटेज रखा।
चाण्डालकुमार कटंज धीरे-धीरे बढ़ने लगा। वह खूब बलवान् निकला। युवा होनेपर शिकार करनेमें बहुत निपुण हो गया। उसका एक चाण्डाल- कन्यासे विवाह हो गया। कालक्रमसे उसके कई पुत्र हुए। अचानक उस गाँवमें महामारी फैली। चाण्डाल कटंजके स्त्री- पुत्र तथा परिवारके लोगोंको समाप्ति हो गयी उस महामारीमें। अब परिवारहीन शोकाकुल कटंज वह ग्राम छोड़कर निकल पड़ा अनेक देशोंमें वह घूमता भटकता फिरा उस समय कौरदेशका नरेश मर गया था। उस देशकी प्रथा थी कि राजाके मरनेपर एक सुशिक्षित हाथी छोड़ दिया जाता था नगरमें और वह हाथी जिसे अपनी पीठपर बैठा लेता था, उसे राजगद्दी दे दी जाती थी। कीरदेशकी राजधानी श्रीमतीपुरीमें जब चाण्डाल कटज घूमता हुआ पहुँचा तब नगर भली प्रकार सजाया गया था। नवीन नरेशकी खोज करनेके लिये छोड़ा हुआ हाथी नगरमें घूम रहा था। नगरके लोग मार्गमें खड़े थे और अत्यन्त उत्सुक थे यह देखनेको कि राजा होनेका सौभाग्य किसे मिलता है। सहसा हाथी कटेजके पास आया और उसे सूँड़से उठाकर उसने अपने मस्तकपर बैठा लिया। नगरमें नगारे वजने लगे, जयध्वनि होने लगी नवीन नरेशके स्वागतमें।
कटंजने अब अपना नाम छिपा लिया और जाति भी छिपा ली। उसने अपना नाम गवल बतलाया। राजभवनमें उसका स्वागत हुआ। राज्यका संचालन,राजसुख भोग प्राप्त हुए उसे अनेक रानियों बनायी उसने बड़े उत्साहसे उसने कीरदेशमें आठ वर्ष राज्य किया।
एक दिन नगरके चाण्डालोंका कोई उत्सव था। दूर-दूरके चाण्डालोंके सरदार उसमें आये थे। चाण्डाल नगरमें गाते नाचते निकले। कुतूहलवश कौरदेशका | नरेश राजभवनसे अकेला निकला और राजद्वारपर खड़ा होकर चाण्डालोंकी उस भीड़को देखने लगा। उस भीड़में उसके चाण्डाल-ग्रामका एक वृद्ध भी आया था। उसने राजाके रूपमें स्थित कटेजको पहिचान लिया और दूरसे पुकारकर कहा-‘कटंज! तुम यहाँ आ गये हो हमलोगों को छोड़कर ? बड़े सौभाग्य और प्रसनताको बात है कि तुम्हें राजपद और यह उत्तम राजभवन प्राप्त हुआ। हमलोगोंका भी कुछ ध्यान रखना, भाई।
राजाने संकेतसे उस वृद्ध चाण्डालको रोकनेको बहुत चेष्टा की; किंतु वृद्ध अपनी बात तो कह ही चुका था। राजभवनके ऊपरसे रानियाँ झरोखोंसे चाण्डालोंका उत्सव देख रही थीं, राजसेवक तथा कुछ मन्त्री भी आसपास थे। उन सबने वृद्ध चाण्डालकी बात सुन ली सब चाँके–’यह राजा तो चाण्डाल है!’
अब स्वागत-सत्कार तो दूर, कोई सेवकतक राजाको छूना या उससे बोलना नहीं चाहता था। राजभवन और पूरे नगर में खलबली मच गयी। लोगोंके समूह एकत्र हुए। विद्वान् ब्राह्मणोंकी सभा जुटी और विचार होने लगा कि ‘आठ वर्ष चाण्डालके स्पर्श सब लोग रहे, सबको उसके साथ खाना-पीना पड़ा. अब सबकी शुद्धि कैसे हो ?’ विद्वानोंने निश्चय किया कि अब शरीरकी शुद्धि सम्भव नहीं। एक भारी चिता बनाकर उसमें शरीरकी आहुति दे देनी चाहिये।
नगरके बाहर एक भारी चिता बनायी गयी। नगरके ब्राह्मण, जो राजाके यहाँ भोजन कर चुके थे, उन ब्राह्मणोंके परिवार के लोग राजसेवक, रानियाँ अमात्य सब उस जलती चितामें कूद पड़े। यह देखकर राजाको बड़ा दुःख हुआ। उसने सोचा- ‘यह सब अनर्थ मेरे ही कारण हुआ।’ वह भी उसी चितामें कूद पड़ उधर चितामें कूदकर चाण्डाल राजा जला और इधर सरोवरके जलमें डुबकी लगाये ब्राह्मण गाधिको | चेतना लौटी। उन्हें मन्त्र स्मरण हो आया। जप पूराकरके, संध्या-कर्म समाप्त हो जानेपर वे सरोवरसे निकले। उनके मनमें विचित्र विकल्प चल रहे थे— ‘मैंने यह सब क्या देखा? क्या मैं जलमें जागते हुए हो स्वप्न देख रहा था?”
ब्राह्मण गाधिको वनमें कुछ दिन और बीत गये। एक दिन उनके पास उनके पूर्व परिचित एक ब्राह्मण घूमते हुए आये। गाधिने अतिथिका आदरपूर्वक सत्कार किया। फलमूलादि देकर उन्हें तृप्त किया। इसके बाद दोनों तपस्वी जब स्वस्थचित बैठ गये, तब गाधिने पूछा—’आपका शरीर इतना कृश कैसे हो गया है ?”
अतिथि बोले- ‘क्या कहूँ, भाई, भाग्यवश घूमते हुए मैं उत्तर दिशामें स्थित कोरदेशमें पहुँच गया था। उस समृद्ध देशके लोगोंने मेरा बड़ा सत्कार किया। वहाँ मैं एक महीने रह गया। वहीं पता लगा कि उस देशमें एक चाण्डाल राजाने आठ वर्षतक राज्य किया। जब भेद खुला तब देशके सैकड़ों ब्राह्मण अग्रिमें जल मरे और वह चाण्डाल भी अग्रिमें जल मरा यह बात सुनकर उस दूषित देशका अन्न खानेसे जो पाप हुआ था उसका प्रायश्चित्त करने में प्रयाग चला आया। प्रयाग स्नान करके मैंने तीन चान्द्रायणव्रत किये। तीसरे चान्द्रायणका पारण करके मैं यहाँ आया हूँ, इसीसे मेरा शरीर दुर्बल है।’
गाधि तो चौंक पड़े—’आप ठीक कह रहे हैं ?’ ब्राह्मण बोले-‘मैंने कोई बात झूठी नहीं कही है।’
अब गाधिको कहाँ शान्ति मिलती थी। अतिथिके विदा होनेपर दूसरे ही दिन गाधि उस बनको छोड़कर निकल पड़े और अकेले ही घूमते-फिरते, मार्ग पूछ उत्तर दिशामें भूतमण्डल नामके देशमें जा पहुँचे। उस देशमें उन्होंने उस चाण्डाल-ग्रामको ढूंढ़ लिया और उस ग्राममें उस घरको, जिसमें चाण्डालरूपसे रहते अपनेको उसने देखा था, शीघ्र पहचान लिया। अब ब्राह्मण गाधिको वे सब स्थान स्मरण आने लगे, सब पहिचाने से लगने लगे, जहाँ चाण्डाल- देहसे उसने अनेक कार्य किये थे। लोगोंसे पूछनेपर भी उसे कटंज चाण्डालका वही चरित्र सुननेको मिला जो उसनेअनुभव किया था।
उस स्थानमें गाधि पूरे एक महीने रहे। आस पासके लोगोंसे उन्होंने पूछ-ताछ की, किंतु चाण्डाल जीवनकी बातोंके सत्य होनेमें कोई संदेहका कारण उन्हें नहीं मिला। वहाँसे वे आगे चले और अनेक कष्ट उठाकर कीरदेश पहुँच गये। कीरदेशकी राजधानी श्रीमतीपुरीमें पहुँचनेपर उन्हें राजभवन, नगर, गलियाँ आदि सब परिचित लगे। वहीं उन्होंने आठ वर्षतक एक चाण्डालके राज्य करनेकी बात बहुत लोगोंसे सुनी।
“यह सब क्या है ? जलमें मैं दो क्षण डुबकी लगाये रहा और इधर उतने ही कालमें वर्षांतक चाण्डाल ग्राममें रहा और आठ वर्ष यहाँ राज्य किया। इन बातों में सत्य क्या है?’ ब्राह्मण गाधिका चित्त इस उलझनमें पड़कर अत्यन्त व्याकुल हो गया था।
कीरदेशकी राजधानीसे चलकर गाधि एक पर्वतकी गुफामें पहुँचे और फिर तपस्या करने लगे। डेढ़ वर्षतक उन्होंने केवल एक चुल्लू पानी प्रतिदिन पिया। उनके तपसे भगवान् नारायणने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया। भगवान्ने गाधिसे कहा- ‘ब्रह्मन् ! तुमने मेरी मायाको देख लिया? तुम जिस संसारको देखते हो, सत्य मानते हो, वह केवल भ्रम है। वह आत्माका मनोभाव संकल्पमात्र है। भूत, भविष्य, वर्तमानकाल तथा संसारके सब दृश्य चित्तके ही धर्म हैं। यह जगत्-रूपी जाल जब चित्तसे ही प्रकट हुआ है, तब उसमें एक चाण्डाल और प्रकट हो गया- इसमें आश्चर्य क्या है तुमने जो कुछ देखा, वह सब भ्रमात्मक है और उसके समान ही यह समस्त दृश्य प्रपञ्च भ्रमात्मक है। अब तुम उठो, शान्तचित्तसे अपने नित्यनैमित्तिक कर्तव्य कर्मको करो।”
ब्राह्मणको आश्वासन देकर उसे यह समझाकर कि ‘जैसे बहुत से लोग समान स्वप्न देखें, वैसे ही सदृश भ्रमके कारण तुमने अपने चाण्डालादि रूप देखे और लोगोंने उन घटनाओंका समर्थन किया। तुम्हारा संकल्प ही सब जगह मूर्त होता रहा।’ भगवान् अन्तर्हित हो गये। ब्राह्मण गाधि उस पर्वतपर रहकर ही भगवा आराधना करने लगे। सु0 [सं0 (योगवासिष्ठ)
कोसलमें गाधि नामके एक बुद्धिमान् श्रोत्रिय, धर्मात्मा ब्राह्मण रहते थे। शास्त्रज्ञान और धर्माचरणका फल विषयोंसे वैराग्य न हो तो शास्त्रज्ञान और धर्माचरणको वन्ध्य ही मानने चाहिये। गाधिको वैराग्य हो गया। वे बन्धु-बान्धवोंसे अलग होकर वनमें तपस्या करने चले गये।
गाधिने वनमें एक सरोवरके जलमें खड़े होकर तपस्या प्रारम्भ की। जलमें वे बराबर आकण्ठ मन रहते थे। भगवद्दर्शनके अतिरिक्त कोई कामना नहीं थी उनके मनमें। आठ महीनेकी कठोर तपस्याके बाद भगवान् विष्णु उनके सम्मुख प्रकट हुए। ब्राह्मणके नेत्र धन्य हो गये। उनका तपस्यासे क्षीण शरीर पुष्ट हो गया एक ही क्षणमें।
‘वर माँगो!’ मेघ गम्भीर वाणीमें प्रभुने कहा । ‘प्रभो! जीवोंको मोहित करनेवाली उस मायाको मैं देखना चाहता हूँ, जिसके द्वारा यह संसार आपमेंअध्यस्त है।’ ब्राह्मणने वरदान माँगा; क्योंकि बहुत विचार करके वह थक गया था; जगत् नित्य है याअनित्य, तथ्य है या अतथ्य – यह उसकी समझमें ठीक आता नहीं था। भगवान् बोले-‘अच्छी बात! मायाको तुम देखोगे और तब उसका त्याग करोगे।’
वरदान देकर गरुडध्वज प्रभु अदृश्य हो गये। कई दिन बीत गये ब्राह्मणको उसी वनमें। अब वे जलमें खड़े रहकर तपस्या नहीं करते थे। वृक्षके नीचे रहकर फल- मूल खाकर भजन करते थे। मायाके दर्शनकी प्रतीक्षामें थे वे ।
एक दिन सरोवरमें स्नान करके विप्रश्रेष्ठ गाधिने हाथके कुशोंसे जलमें आवर्त बनाया और जलमें डुबकी लगाकर अघमर्षण मन्त्रका जप करने लगे। सहसा वे मन्त्र भूल गये। उनके चित्तकी अद्भुत दशा हो गयी। उन्हें लगा कि वे अपने घर लौट आये हैं और वहाँउनका शरीर छूट गया है। अब वे सूक्ष्म शरीरमें हैं। उनके सम्बन्धी रो रहे हैं। उन्होंने सूक्ष्म शरीरमें स्थित होकर देखा कि उनके मृत देहको सम्बन्धी श्मशान ले गये और वहाँ उसे चितामें रखकर जला दिया गया।
सूक्ष्म शरीरमें स्थित गाधिने अनुभव किया कि वह भूतमण्डल नामक देशके एक गाँवमें एक चाण्डाल स्त्रीके गर्भ में पहुँच गया है। यह भूलना नहीं चाहिये कि गाधि यह सब केवल अनुभव कर रहे थे। वस्तुतः उन्होंने तो जलमें अमर्षणके लिये डुबकी लगायी थी। उन्होंने अनुभव किया कि वे चाण्डाल बालक होकर उत्पन्न हुए माता-पिताने उस बालकका नाम कटेज रखा।
चाण्डालकुमार कटंज धीरे-धीरे बढ़ने लगा। वह खूब बलवान् निकला। युवा होनेपर शिकार करनेमें बहुत निपुण हो गया। उसका एक चाण्डाल- कन्यासे विवाह हो गया। कालक्रमसे उसके कई पुत्र हुए। अचानक उस गाँवमें महामारी फैली। चाण्डाल कटंजके स्त्री- पुत्र तथा परिवारके लोगोंको समाप्ति हो गयी उस महामारीमें। अब परिवारहीन शोकाकुल कटंज वह ग्राम छोड़कर निकल पड़ा अनेक देशोंमें वह घूमता भटकता फिरा उस समय कौरदेशका नरेश मर गया था। उस देशकी प्रथा थी कि राजाके मरनेपर एक सुशिक्षित हाथी छोड़ दिया जाता था नगरमें और वह हाथी जिसे अपनी पीठपर बैठा लेता था, उसे राजगद्दी दे दी जाती थी। कीरदेशकी राजधानी श्रीमतीपुरीमें जब चाण्डाल कटज घूमता हुआ पहुँचा तब नगर भली प्रकार सजाया गया था। नवीन नरेशकी खोज करनेके लिये छोड़ा हुआ हाथी नगरमें घूम रहा था। नगरके लोग मार्गमें खड़े थे और अत्यन्त उत्सुक थे यह देखनेको कि राजा होनेका सौभाग्य किसे मिलता है। सहसा हाथी कटेजके पास आया और उसे सूँड़से उठाकर उसने अपने मस्तकपर बैठा लिया। नगरमें नगारे वजने लगे, जयध्वनि होने लगी नवीन नरेशके स्वागतमें।
कटंजने अब अपना नाम छिपा लिया और जाति भी छिपा ली। उसने अपना नाम गवल बतलाया। राजभवनमें उसका स्वागत हुआ। राज्यका संचालन,राजसुख भोग प्राप्त हुए उसे अनेक रानियों बनायी उसने बड़े उत्साहसे उसने कीरदेशमें आठ वर्ष राज्य किया।
एक दिन नगरके चाण्डालोंका कोई उत्सव था। दूर-दूरके चाण्डालोंके सरदार उसमें आये थे। चाण्डाल नगरमें गाते नाचते निकले। कुतूहलवश कौरदेशका | नरेश राजभवनसे अकेला निकला और राजद्वारपर खड़ा होकर चाण्डालोंकी उस भीड़को देखने लगा। उस भीड़में उसके चाण्डाल-ग्रामका एक वृद्ध भी आया था। उसने राजाके रूपमें स्थित कटेजको पहिचान लिया और दूरसे पुकारकर कहा-‘कटंज! तुम यहाँ आ गये हो हमलोगों को छोड़कर ? बड़े सौभाग्य और प्रसनताको बात है कि तुम्हें राजपद और यह उत्तम राजभवन प्राप्त हुआ। हमलोगोंका भी कुछ ध्यान रखना, भाई।
राजाने संकेतसे उस वृद्ध चाण्डालको रोकनेको बहुत चेष्टा की; किंतु वृद्ध अपनी बात तो कह ही चुका था। राजभवनके ऊपरसे रानियाँ झरोखोंसे चाण्डालोंका उत्सव देख रही थीं, राजसेवक तथा कुछ मन्त्री भी आसपास थे। उन सबने वृद्ध चाण्डालकी बात सुन ली सब चाँके-‘यह राजा तो चाण्डाल है!’
अब स्वागत-सत्कार तो दूर, कोई सेवकतक राजाको छूना या उससे बोलना नहीं चाहता था। राजभवन और पूरे नगर में खलबली मच गयी। लोगोंके समूह एकत्र हुए। विद्वान् ब्राह्मणोंकी सभा जुटी और विचार होने लगा कि ‘आठ वर्ष चाण्डालके स्पर्श सब लोग रहे, सबको उसके साथ खाना-पीना पड़ा. अब सबकी शुद्धि कैसे हो ?’ विद्वानोंने निश्चय किया कि अब शरीरकी शुद्धि सम्भव नहीं। एक भारी चिता बनाकर उसमें शरीरकी आहुति दे देनी चाहिये।
नगरके बाहर एक भारी चिता बनायी गयी। नगरके ब्राह्मण, जो राजाके यहाँ भोजन कर चुके थे, उन ब्राह्मणोंके परिवार के लोग राजसेवक, रानियाँ अमात्य सब उस जलती चितामें कूद पड़े। यह देखकर राजाको बड़ा दुःख हुआ। उसने सोचा- ‘यह सब अनर्थ मेरे ही कारण हुआ।’ वह भी उसी चितामें कूद पड़ उधर चितामें कूदकर चाण्डाल राजा जला और इधर सरोवरके जलमें डुबकी लगाये ब्राह्मण गाधिको | चेतना लौटी। उन्हें मन्त्र स्मरण हो आया। जप पूराकरके, संध्या-कर्म समाप्त हो जानेपर वे सरोवरसे निकले। उनके मनमें विचित्र विकल्प चल रहे थे— ‘मैंने यह सब क्या देखा? क्या मैं जलमें जागते हुए हो स्वप्न देख रहा था?”
ब्राह्मण गाधिको वनमें कुछ दिन और बीत गये। एक दिन उनके पास उनके पूर्व परिचित एक ब्राह्मण घूमते हुए आये। गाधिने अतिथिका आदरपूर्वक सत्कार किया। फलमूलादि देकर उन्हें तृप्त किया। इसके बाद दोनों तपस्वी जब स्वस्थचित बैठ गये, तब गाधिने पूछा—’आपका शरीर इतना कृश कैसे हो गया है ?”
अतिथि बोले- ‘क्या कहूँ, भाई, भाग्यवश घूमते हुए मैं उत्तर दिशामें स्थित कोरदेशमें पहुँच गया था। उस समृद्ध देशके लोगोंने मेरा बड़ा सत्कार किया। वहाँ मैं एक महीने रह गया। वहीं पता लगा कि उस देशमें एक चाण्डाल राजाने आठ वर्षतक राज्य किया। जब भेद खुला तब देशके सैकड़ों ब्राह्मण अग्रिमें जल मरे और वह चाण्डाल भी अग्रिमें जल मरा यह बात सुनकर उस दूषित देशका अन्न खानेसे जो पाप हुआ था उसका प्रायश्चित्त करने में प्रयाग चला आया। प्रयाग स्नान करके मैंने तीन चान्द्रायणव्रत किये। तीसरे चान्द्रायणका पारण करके मैं यहाँ आया हूँ, इसीसे मेरा शरीर दुर्बल है।’
गाधि तो चौंक पड़े—’आप ठीक कह रहे हैं ?’ ब्राह्मण बोले-‘मैंने कोई बात झूठी नहीं कही है।’
अब गाधिको कहाँ शान्ति मिलती थी। अतिथिके विदा होनेपर दूसरे ही दिन गाधि उस बनको छोड़कर निकल पड़े और अकेले ही घूमते-फिरते, मार्ग पूछ उत्तर दिशामें भूतमण्डल नामके देशमें जा पहुँचे। उस देशमें उन्होंने उस चाण्डाल-ग्रामको ढूंढ़ लिया और उस ग्राममें उस घरको, जिसमें चाण्डालरूपसे रहते अपनेको उसने देखा था, शीघ्र पहचान लिया। अब ब्राह्मण गाधिको वे सब स्थान स्मरण आने लगे, सब पहिचाने से लगने लगे, जहाँ चाण्डाल- देहसे उसने अनेक कार्य किये थे। लोगोंसे पूछनेपर भी उसे कटंज चाण्डालका वही चरित्र सुननेको मिला जो उसनेअनुभव किया था।
उस स्थानमें गाधि पूरे एक महीने रहे। आस पासके लोगोंसे उन्होंने पूछ-ताछ की, किंतु चाण्डाल जीवनकी बातोंके सत्य होनेमें कोई संदेहका कारण उन्हें नहीं मिला। वहाँसे वे आगे चले और अनेक कष्ट उठाकर कीरदेश पहुँच गये। कीरदेशकी राजधानी श्रीमतीपुरीमें पहुँचनेपर उन्हें राजभवन, नगर, गलियाँ आदि सब परिचित लगे। वहीं उन्होंने आठ वर्षतक एक चाण्डालके राज्य करनेकी बात बहुत लोगोंसे सुनी।
“यह सब क्या है ? जलमें मैं दो क्षण डुबकी लगाये रहा और इधर उतने ही कालमें वर्षांतक चाण्डाल ग्राममें रहा और आठ वर्ष यहाँ राज्य किया। इन बातों में सत्य क्या है?’ ब्राह्मण गाधिका चित्त इस उलझनमें पड़कर अत्यन्त व्याकुल हो गया था।
कीरदेशकी राजधानीसे चलकर गाधि एक पर्वतकी गुफामें पहुँचे और फिर तपस्या करने लगे। डेढ़ वर्षतक उन्होंने केवल एक चुल्लू पानी प्रतिदिन पिया। उनके तपसे भगवान् नारायणने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया। भगवान्ने गाधिसे कहा- ‘ब्रह्मन् ! तुमने मेरी मायाको देख लिया? तुम जिस संसारको देखते हो, सत्य मानते हो, वह केवल भ्रम है। वह आत्माका मनोभाव संकल्पमात्र है। भूत, भविष्य, वर्तमानकाल तथा संसारके सब दृश्य चित्तके ही धर्म हैं। यह जगत्-रूपी जाल जब चित्तसे ही प्रकट हुआ है, तब उसमें एक चाण्डाल और प्रकट हो गया- इसमें आश्चर्य क्या है तुमने जो कुछ देखा, वह सब भ्रमात्मक है और उसके समान ही यह समस्त दृश्य प्रपञ्च भ्रमात्मक है। अब तुम उठो, शान्तचित्तसे अपने नित्यनैमित्तिक कर्तव्य कर्मको करो।”
ब्राह्मणको आश्वासन देकर उसे यह समझाकर कि ‘जैसे बहुत से लोग समान स्वप्न देखें, वैसे ही सदृश भ्रमके कारण तुमने अपने चाण्डालादि रूप देखे और लोगोंने उन घटनाओंका समर्थन किया। तुम्हारा संकल्प ही सब जगह मूर्त होता रहा।’ भगवान् अन्तर्हित हो गये। ब्राह्मण गाधि उस पर्वतपर रहकर ही भगवा आराधना करने लगे। सु0 [सं0 (योगवासिष्ठ)