परिवार जीवन है

मेरी सासु मां आजकल चित्रकूट की यात्रा पर गई हुई हैं। अब जब वे घर पर नहीं हैं तो आने-जाने वालों का तांता भी कम है। क्योंकि, उनको जानने-पहचानने वाले हम सबसे अधिक हैं। अब उनके घर पर न होने से जब लोग कम आ रहे हैं, तो न घर फैल रहा है और न धोने वाले बर्तन ही अधिक हो रहे हैं।
अभी शाम के समय बर्तन साफ करने वाली हाउस हेल्प आई। मैंने उसे चाय बनाकर दी, और स्वयं कॉफी का मग लेकर बैठ गई। चाय की चुस्की लेते हुए और बिस्किट का टुकड़ा चबाते हुए उसे न जाने क्या सूझी, कि वह कहने लगे, “दीदी, बच्चों की दादी के होने से काम कितना बढ़ जाता है। ढेर सारे बर्तन हो जाते हैं दोनों समय, घर भी कैसा फैला रहता है। आपका खर्चा भी बहुत हो जाता होगा। अब देखिए, उनके न होने से कितनी शांति है।”
उसकी बात पर मुझे ऐसा क्रोध आया कि जाने उसे क्या कह दूं। परंतु, मैंने इतना ही कहा, “आज तो ऐसा बोल दिया है, आगे से कभी ऐसा मत बोलना, और न ऐसा सोचना। वरना, इस घर में तेरा काम बंद कर दिया जाएगा। मुझे पसंद है अपना फैला हुआ शोर-शराबे वाला घर।”
उसने हैरानी व घबराहट मिश्रित चेहरे से मेरी ओर देखा। मैं अक्सर ऐसी बातें बिना बोले टाल दिया करती हूं। परंतु, आज क्रोध आ ही गया था, और मेरी बुरी आदत कि मैं जब तक अपनी सारी बात न कह लूं, तब तक क्रोध शांत ही नहीं होता।
उस पर संभवतः बहुत अधिक क्रोध इसलिए आ गया था क्योंकि वह पहले भी एक बार बोल चुकी थी कि, “देखो न भाभी, भैया कितने अच्छे हैं। अपने छोटे भाई को भी अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं। उनकी एक आवाज पर दौड़ पड़ते हैं।”
वह धीरे-धीरे जो विष मेरे मस्तिष्क में भरने का प्रयास कर रही थी, उसी का परिणाम था आज का क्रोध। उसे कहां पता था कि ‘फैमिली फर्स्ट’ का रूल मुझे घुट्टी में घोलकर पिलाया गया है। जब परिवार माता पिता भाई वाला परिवार था, तब मेरे लिए वही सबसे इंपॉर्टेंट था। आज परिवार सास देवर पति बच्चों वाला है, तब मेरे लिए यही सबसे इंपॉर्टेंट है। मेरी बस इतनी सी इच्छा है कि मैं अपने परिवार के आसपास रहूं। मैं जहां भी होऊं, उनमें से किसी की एक आवाज पर भागकर उनके पास पहुंच पाऊं। ये इच्छा मेरे पतिदेव की भी है। उन्होंने जयपुर आगरा मुंबई में प्रमोशन व पैसे के साथ मिलने वाले जाने कितने ऑफर त्यागे हैं। उनके लिए भी परिवार केवल उनके बच्चे व पत्नी का नाम नहीं है। उनका भाई व मां भी उनके लिए परिवार का जरूरी हिस्सा हैं।
खैर, मैंने अपनी हाउसहेल्प से कहा, “जानती है, बहुत से लोग बड़े-बड़े घरों में अकेले रहते हैं। उनके पास बात करने वाला कोई नहीं होता। उसके पास पैसा खूब होता है, लेकिन उनका घर उदास निर्जीव सा खड़ा रहता है। मुझे ऐसा घर नहीं चाहिए।”
वो मेरी बात से सहमत नहीं दिखी। क्योंकि, आजकल परिवार नामक संस्था के मायने बहुत बदल गए हैं। कुछ ही ओल्ड स्कूल वाले लोग हैं, जो परिवार को उसी रूप में देखना चाहते हैं, जैसा वो पहले कभी हुआ करता था। असहमति उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी। वह चुपचाप उठकर बर्तन साफ करने चली गई। उसकी नजरों में मैं देवी थी, या अत्याधिक बेवकूफ जो अपना घर लुटा रही है। परंतु, मैं इन दोनों उपाधियों से परे एक आम इंसान हूं। मैं अपनी सास देवर देवरानी पति बच्चों के साथ खूब बातें भी कर लेती हूं, तो कभी-कभी लड़ भी लेती हूं। हमारा परिवार बिल्कुल आम परिवारों जैसा है, हंसता-खेलता, लड़ता-झगड़ता।
हमारे घर में इंसानों को वैल्यू दी जाती है। ह्यूमन लाइफ से बढ़कर कुछ भी नहीं। अगर घरवाले ही खुश नहीं, फिर निर्जीव सा घर या पैसा किस काम का? जिस दिन सासु मां को ये लगने लगेगा कि वे मेरे साथ रह रही हैं, उस दिन से बुरा तो कुछ होगा ही नहीं मेरे लिए। हमारे घर की हेड वे हैं। हम सब उनके साथ रहते हैं। इस बात की खुशी व चमक उनके चेहरे पर देखते ही बनती है। मेरे लिए उनका यह आत्मविश्वास व उनके चेहरे पर झलकती यह खुशी ही काफी है। ईश्वर उनके साम्राज्य को बनाए रखें 🙏

अंत में एक आवश्यक बात बताना चाहूंगी, पैसे के पीछे कितना ही भाग लो, पैसा उतना ही रुकेगा जितना भाग्य में लिखा होगा। फिर पैसे के चक्कर में अपना परिवार क्यों बिखेरना भई? परिवार की महत्ता समझिए। हर सुख-दुख में परिवार ही साथ खड़ा नजर आएगा। सो, जितने भी लोग हों परिवार में, उनका मूल्य समझिए, और उन्हें संभाल कर रखिए। उसने साथ हंसिए-खेलिए, लड़ाई-झगड़ा कीजिए, परंतु उनके साथ रहिए। कभी कहीं दूर रहने भी जाना पड़े तो प्रयास कीजिए कि परिवार के लिए आप हमेशा अवेलेबल रह पाएं।



मेरी सासु मां आजकल चित्रकूट की यात्रा पर गई हुई हैं। अब जब वे घर पर नहीं हैं तो आने-जाने वालों का तांता भी कम है। क्योंकि, उनको जानने-पहचानने वाले हम सबसे अधिक हैं। अब उनके घर पर न होने से जब लोग कम आ रहे हैं, तो न घर फैल रहा है और न धोने वाले बर्तन ही अधिक हो रहे हैं। अभी शाम के समय बर्तन साफ करने वाली हाउस हेल्प आई। मैंने उसे चाय बनाकर दी, और स्वयं कॉफी का मग लेकर बैठ गई। चाय की चुस्की लेते हुए और बिस्किट का टुकड़ा चबाते हुए उसे न जाने क्या सूझी, कि वह कहने लगे, “दीदी, बच्चों की दादी के होने से काम कितना बढ़ जाता है। ढेर सारे बर्तन हो जाते हैं दोनों समय, घर भी कैसा फैला रहता है। आपका खर्चा भी बहुत हो जाता होगा। अब देखिए, उनके न होने से कितनी शांति है।” उसकी बात पर मुझे ऐसा क्रोध आया कि जाने उसे क्या कह दूं। परंतु, मैंने इतना ही कहा, “आज तो ऐसा बोल दिया है, आगे से कभी ऐसा मत बोलना, और न ऐसा सोचना। वरना, इस घर में तेरा काम बंद कर दिया जाएगा। मुझे पसंद है अपना फैला हुआ शोर-शराबे वाला घर।” उसने हैरानी व घबराहट मिश्रित चेहरे से मेरी ओर देखा। मैं अक्सर ऐसी बातें बिना बोले टाल दिया करती हूं। परंतु, आज क्रोध आ ही गया था, और मेरी बुरी आदत कि मैं जब तक अपनी सारी बात न कह लूं, तब तक क्रोध शांत ही नहीं होता। उस पर संभवतः बहुत अधिक क्रोध इसलिए आ गया था क्योंकि वह पहले भी एक बार बोल चुकी थी कि, “देखो न भाभी, भैया कितने अच्छे हैं। अपने छोटे भाई को भी अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं। उनकी एक आवाज पर दौड़ पड़ते हैं।” वह धीरे-धीरे जो विष मेरे मस्तिष्क में भरने का प्रयास कर रही थी, उसी का परिणाम था आज का क्रोध। उसे कहां पता था कि ‘फैमिली फर्स्ट’ का रूल मुझे घुट्टी में घोलकर पिलाया गया है। जब परिवार माता पिता भाई वाला परिवार था, तब मेरे लिए वही सबसे इंपॉर्टेंट था। आज परिवार सास देवर पति बच्चों वाला है, तब मेरे लिए यही सबसे इंपॉर्टेंट है। मेरी बस इतनी सी इच्छा है कि मैं अपने परिवार के आसपास रहूं। मैं जहां भी होऊं, उनमें से किसी की एक आवाज पर भागकर उनके पास पहुंच पाऊं। ये इच्छा मेरे पतिदेव की भी है। उन्होंने जयपुर आगरा मुंबई में प्रमोशन व पैसे के साथ मिलने वाले जाने कितने ऑफर त्यागे हैं। उनके लिए भी परिवार केवल उनके बच्चे व पत्नी का नाम नहीं है। उनका भाई व मां भी उनके लिए परिवार का जरूरी हिस्सा हैं। खैर, मैंने अपनी हाउसहेल्प से कहा, “जानती है, बहुत से लोग बड़े-बड़े घरों में अकेले रहते हैं। उनके पास बात करने वाला कोई नहीं होता। उसके पास पैसा खूब होता है, लेकिन उनका घर उदास निर्जीव सा खड़ा रहता है। मुझे ऐसा घर नहीं चाहिए।” वो मेरी बात से सहमत नहीं दिखी। क्योंकि, आजकल परिवार नामक संस्था के मायने बहुत बदल गए हैं। कुछ ही ओल्ड स्कूल वाले लोग हैं, जो परिवार को उसी रूप में देखना चाहते हैं, जैसा वो पहले कभी हुआ करता था। असहमति उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी। वह चुपचाप उठकर बर्तन साफ करने चली गई। उसकी नजरों में मैं देवी थी, या अत्याधिक बेवकूफ जो अपना घर लुटा रही है। परंतु, मैं इन दोनों उपाधियों से परे एक आम इंसान हूं। मैं अपनी सास देवर देवरानी पति बच्चों के साथ खूब बातें भी कर लेती हूं, तो कभी-कभी लड़ भी लेती हूं। हमारा परिवार बिल्कुल आम परिवारों जैसा है, हंसता-खेलता, लड़ता-झगड़ता। हमारे घर में इंसानों को वैल्यू दी जाती है। ह्यूमन लाइफ से बढ़कर कुछ भी नहीं। अगर घरवाले ही खुश नहीं, फिर निर्जीव सा घर या पैसा किस काम का? जिस दिन सासु मां को ये लगने लगेगा कि वे मेरे साथ रह रही हैं, उस दिन से बुरा तो कुछ होगा ही नहीं मेरे लिए। हमारे घर की हेड वे हैं। हम सब उनके साथ रहते हैं। इस बात की खुशी व चमक उनके चेहरे पर देखते ही बनती है। मेरे लिए उनका यह आत्मविश्वास व उनके चेहरे पर झलकती यह खुशी ही काफी है। ईश्वर उनके साम्राज्य को बनाए रखें 🙏

In the end, I would like to tell you an important thing, how much you run behind the money, the money will stop as much as the luck. Then why did you spread your family in the affair of money? Understand the importance of family. The family will be seen standing together in every happiness and sorrow. So, all the people in the family, understand their value, and keep them up. He laughed together, fight and fight, but stay with them. If you have to stay away sometimes, then try to always be available for the family.

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