नित्य अभिन्न

buddha zen peace

(उमा-महेश्वर)

सदा शिवानां परिभूषणायै सदा शिवानां परिभूषणाय ।

शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥

यह भी एक कथा ही है; किंतु ऐसी कथा नहीं जो हुई और समाप्त हो गयी। घटना नहीं-सत्य है यह और सत्य शाश्वत होता है।

सृष्टि थी नहीं। प्रलय था ऐसा भी नहीं कह सकते। प्रलय तो सृष्टिकी अपेक्षासे होता है। एक अनिर्वचनीय स्थिति थी। एक सच्चिदानन्दघन सत्ता और वह सत्ता सत्के साथ चित् है तथा आनन्दरूप भी है तो यह स्वतः सिद्ध है कि शक्ति-शक्तिमान्समन्वित है। शक्ति-शक्तिमान् जहाँ नित्य अभिन्न हैं । जहाँ आनन्द अनुभूति स्वरूप है।

हमारी यह सृष्टि व्यक्त हुई। सृष्टिका संकल्प और संचालन एक अनिर्वचनीय शक्तिने प्रारम्भ किया। वही शक्ति-शक्तिमान्, वही नित्य अभिन्न सच्चिदानन्दघन | परंतु जगत्के जीव कहते हैं—’वे हमारे पिता-माता हैं।’ इस स्वीकृतिमें जीवोंकी सार्थकता है।सृष्टि चल रही है। सृष्टिका साक्षित्व और पालन दोनों चल रहा है। चल रहा है उसी नित्य अभिन्न परम तत्त्व एवं पराशक्तिके द्वारा। हम जगत्के प्राणी कहते हैं— ‘वे हमारे त्राता हैं, आश्रय हैं।’ इस स्वीकृतिमें हमारा मङ्गल है।

समय आता है-ब्रह्माण्डका यह खिलौना किसी अचिन्त्यके उद्दाम नृत्यमें चूर-चूर हो उठता है। किसीकी नेत्रज्वाला इस पिण्डको भस्मराशि बना देती है। प्रलयाब्धिमें यह बुलबुला विलीन हो जाता है। अपने-आपमें स्थित हो जाता है वह महाकाल और उससे नित्य अभिन्न हैं उनकी क्रियाशक्ति महाकाली। मानव कहते हैं कि ‘वे मुक्तिप्रदाता हैं।’ इस स्वीकृतिमें मानवकी मुक्ति निहित है। वह मृत्युसे परित्राण पा लेता है उन परम तत्त्वके स्मरणसे ।

जगत्की यह नित्य-कथा जिनमें निहित है, जगत्के उन आदिकारण उमा-महेश्वरके चरणोंमें बार-बार प्रणिपात ।

‘जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।’

(Uma-Maheshwar)
You are always the adornment of Lord Śiva, and you are always the adornment of Lord Śiva.
Obeisances to you, who are accompanied by Lord Śiva, and who are accompanied by Lord Śiva.
This is also a story; But not a story that happened and ended. It is not an event-it is true and truth is eternal.
There was no creation. Can’t even say it was a holocaust. Doomsday is expected of creation. It was an undeniable situation. A Sachchidanandaghan entity and that entity is the mind with the truth and is also the form of bliss, so it is self-evident that the power-powerful is combined. Shakti-shaktiman where eternally integral. where joy is the form of feeling.
This creation of ours was expressed. The resolution and operation of creation was initiated by an indescribable force. The same power-powerful, the same eternally integral Sachchidanandaghan But the beings of the world say, ‘They are our fathers and mothers. In this acceptance is the meaning of beings.Creation is going on. Both witnessing and observing creation is going on. is running by the same eternally integral supreme essence and supreme power. We, the creatures of the world, say— ‘He is our Saviour, our refuge. In this acceptance is our good.
The time comes when this toy of the universe is crushed in a wild dance of the unthinkable. Someone’s eye flame turns this body into ashes. This bubble dissolves in the ocean of doom. He becomes situated in himself, Mahakala, and his action power, Mahakali, is eternally integral with him. ‘They are liberators,’ says the human. In this acceptance lies the liberation of man. He is saved from death by remembering those supreme essences.
Repeatedly bowing at the feet of Uma-Maheshwara, the original cause of the world, in whom this daily story of the world is contained.
‘I offer my obeisances to the two fathers of the universe, Parvati and Parameshvara.

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