कोई भी कार्य घटिया ढंगसे मत करना
भारतके लब्धप्रतिष्ठ अभियन्ता और समाजसेवी श्रीविश्वेश्वरैयाने अपनी पुस्तक ‘मेरे कामकाजी जीवनके संस्मरण’ में एक घटनाका उल्लेख किया है। वे उन दिनों मैसूर राज्यके दीवान थे। एक दिन किसी सरकारी कामसे कहीं दौरेपर जा रहे थे। मार्गके एक स्कूलमें यह सूचना किसी प्रकार पहुँच गयी। स्कूलके अध्यापकोंने श्रीविश्वेश्वरैयासे बच्चोंके लिये कुछ कहनेका अनुरोध किया। विश्वेश्वरैया बिना पहलेसे सोचे-समझे और तैयारी किये किसी सार्वजनिक संस्थामें नहीं बोलते थे। पर बच्चोंके प्रेमवश उन्होंने यों ही दो-चार बातें कह दीं। बच्चे और अध्यापक सभी खुश हो गये, पर विश्वेश्वरैयाको सन्तुष्टि नहीं मिली। उन्होंने बादमें सूचना देकर फिरसे अपना कार्यक्रम निर्धारित करवाया और उन्होंने एक सारगर्भित और शिक्षाप्रद भाषण दिया, जिससे छात्रवृन्द ही नहीं, समस्त ग्रामवासियोंको भी बहुत प्रेरणा मिली। अगर वे यह सोचकर रह जाते कि छोटे लड़के अच्छे और साधारण भाषणके अन्तरको नहीं समझते तो उनसे कोई कुछ कहनेवाला नहीं था, पर उनका आरम्भ से ही यह सिद्धान्त था कि कोई भी काम घटिया ढंगसे नहीं करना चाहिये। उथले स्तरपर कार्यकी खानापूर्ति भले ही कर दी जाय, पर उसमें स्थायित्व नहीं आता। अतएव कैसा भी प्रकरण हो, मनुष्यको अपना स्तर गिराना नहीं चाहिये। स्तर ऊँचा रखनेसे उसका प्रभाव अधिक अच्छा होता है। [डॉ0 श्रीविद्याभास्करजी वाजपेयी ]
don’t do anything poorly
India’s eminent engineer and social worker Sri Visvesvaraya has mentioned an incident in his book ‘Memoirs of my working life’. He was the Diwan of Mysore State in those days. One day he was going on a tour for some official work. This information somehow reached a school on the way. The teachers of the school requested Sri Visvesvaraya to say something for the children. Visvesvaraya did not speak in any public institution without prior thinking and preparation. But out of love for the children, he just said one or two things. The children and the teachers all became happy, but Visvesvaraya was not satisfied. Later, after giving information, he got his program fixed again and he gave a concise and educative speech, which not only inspired the students, but also all the villagers. If he remained thinking that little boys did not understand the difference between good and ordinary speech, then there was no one to say anything to him, but his principle from the beginning was that no work should be done in a bad way. Even if the work is done at a shallow level, but there is no stability in it. Therefore, whatever may be the case, man should not lower his level. The higher the level, the better its effect. [Dr. Srividyabhaskarji Vajpayee ]