श्रीभूदेव मुखोपाध्यायने अपनी एक लाख, साठ हजारकी सम्पत्ति दान करके अपने पिता श्रीविश्वनाथ तर्कभूषणकी स्मृतिमें ‘विश्वनाथ फंड’ स्थापित किया था। इस फंडसे देशके सदाचारी, विद्वान् ब्राह्मणोंको बिना माँगे प्रतिवर्ष पचास रुपयेकी सहायता मनीआर्डरसे उनके घर भेजी जाती थी। पण्डितोंको न तो सहायता पानेके लिये प्रार्थना करनेकी आवश्यकता थी और न फंडके कार्यालयमें आनेकी। इस फंडके प्रथम वर्षकी वृत्तियोंका विवरण ‘एजुकेशन गजट’ में देनेके लियेएक कर्मचारीने सूची बनायी। उसमें लिखा था – ‘इस वर्षमें जिन-जिन अध्यापकों एवं विद्वानोंको ‘विश्वनाथ वृत्ति’ दी गयी, उनकी नामावली।’
श्रीभूदेव बाबूने वह सूची देखी तो अप्रसन्न होकर बोले – ‘तुमने यह क्या लिख मारा है ? इसे इस प्रकार लिखो – ‘इस वर्ष में जिन-जिन अध्यापकों और विद्वानोंने ‘विश्वनाथ-वृत्ति’ स्वीकार करनेकी कृपा की, उनकी नामावली ।’
-सु0 सिं0
Sri Bhudeo Mukhopadhyay had donated his property of Rs. 1 lakh and 60,000 to establish the ‘Vishwanath Fund’ in memory of his father Sri Vishwanath Tarkabhushan. From this fund, the country’s virtuous, learned Brahmins were sent homes without asking for fifty rupees per annum by money order. The scholars did not need to pray for help or come to the office of the Fund. An employee prepared a list of the first year’s scholarships of this fund to be given in the Education Gazette. It read: ‘List of teachers and scholars who were awarded ‘Vishwanath Scholarships’ this year.
Sri Bhudeo Babu saw the list and was displeased and said, ‘What have you written? Write it as follows: ‘A list of teachers and scholars who have been kind enough to accept the ‘Vishwanath-Vritti’ in this year.
-Su0 Sin0