जाने क्यों, सम्राट्की नींद एकाएक उड़ गयी। पलंगपर पड़े रहनेके बदले बादशाह उठकर बाहर निकल आया। निस्तब्ध रात्रि थी। पहरेदारने अभी अभी बारहके घंटे बजाये थे।
पासके बैठकखानेमें तेज रोशनीकी एक बढ़िया चिराग जल रही थी। सम्राट्ने कौतूहलवश उस ओर पैर बढ़ाये।
बहीखातोंके ढेरके बीचमें, आयविभागका प्रधान मन्त्री ( Revenue Minister) किसी गहरी चिन्तामें डूबा बैठा था। सम्राट्के पैरोंकी धीमी आहट सुननेतककी उसे सुध नहीं थी। साम्राज्यपर अचानक कोई भारी विपत्ति आ पड़ी हो और उसे दूर करनेका उपाय सोच रहा हो वह इस प्रकार ध्यानमग्र था।
सम्राट् कुछ देरतक यह दृश्य देखता रहा; और मेरे राज्यके ऊँचे अधिकारियोंमें ऐसे परिश्रमी और लगनवाले पुरुष हैं, यह जानकर उसे अभिमान हुआ।
‘क्यों बड़ी चिन्तामें डूब रहे हो, क्या बात है ?’ सम्राट्ने कहा।
मन्त्रीने उठकर सम्राट्का स्वागत किया। अपनीचिन्ताका कारण बतलाते हुए मन्त्रीने कहा – ‘गत वर्षकी अपेक्षा इस वर्ष लगानकी वसूलीके आँकड़े कुछ ज्यादा थे, इसलिये मैंने स्वयं ही इसकी जाँच करनेका निश्चय किया।’
‘इस वर्ष लगान अधिक आया है, इसका तो मुझे भी पता है, परंतु ऐसा क्यों हुआ, यह मालूम नहीं।’ सम्राट्ने यह कहकर आयमन्त्रीकी बातका समर्थन किया।
‘उस कारणको खोज निकालनेके लिये ही मैं जागरण कर रहा हूँ सरकार ! सारे बहीखाते उलट डाले, कहीं खास परिवर्तन नहीं मालूम हुआ। संवत् भी बहुत अच्छा नहीं था’ आयमन्त्रीने असल बात कहनी शुरू की।
‘तो हिसाबमें भूल हुई होगी।’
‘हिसाब भी जाँच लिया। जोड़-बाकी सब ठीक हैं।’ ‘तब तुम जानो और तुम्हारा काम जाने। लगान तो बढ़ा ही है न ?’ इसमें चिन्ताकी कौन-सी बात है ? रात बहुत चली गयी है, अब इस बखेड़ेको कलपर रखो।’ सम्राट्ने उकताकर मुँह फेर लिया।’आमदनी बढ़ी है यह ठीक है, परंतु यहीं तो साम्राज्यके लिये चिन्ताका कारण है । लगानकी कमी सही जा सकती है, परंतु अन्यायकी अगर एक कौड़ी भी खजानेमें आ जाती है तो वह सारे साम्राज्यके अङ्गोंसे फूट-फूटकर निकलती है।’ आयमन्त्रीने अपने उद्वेगका इतिहास धीरे-धीरे कहना आरम्भ किया। ‘सरकार ! यहाँ भी ऐसा ही हुआ है। किसानोंके पैदायश नाममात्रकी है। गयी साल गरमी बहुत पड़ी थी, इससे गङ्गा-यमुना जैसी भरी-पूरी नदियोंका जल भी सूख चला था। जल सूख जानेसे किनारेकी जमीन निकल आयी थी। इस जमीनमें लोगोंने कुछ बाड़े बनाये और उन्हींके द्वारा सरकारी खजाने में कुछ धन ज्यादा आया । आमदनी बढ़नेका यही गुप्त रहस्य है।’
‘नदियाँ सूख गयीं, जल दूर चला गया औरलगान बढ़ा।’ मन्त्रीकी चिन्ताने सम्राट्के दिलपर भी चिन्ताका चेप लगा दिया। कुछ देरतक इन्हीं शब्दोंको वह रटता रहा।
‘नदीका जल सूखना भी तो एक ईश्वरीय कोप है। इस कोपको सिर लेकर लगानकी मौज उड़ानेवाली बादशाही कबतक टिकी रह सकती है ? यह अन्यायका पैसा है। मेरे खजाने में ऐसी एक कौड़ी भी नहीं आनी चाहिये।’ सम्राट्ने अपनी आज्ञा सुना दी। आयमन्त्रीकी चिन्ता अकारण नहीं थी, सम्राट्को इसका अनुभव हुआ।
‘इन गरीब प्रजाका लगान लौटा दो और मेरी ओरसे उनसे कहला दो कि वे रात-दिन गङ्गा-यमुनाको भरी पूरी रखनेके लिये ही भगवान्से प्रार्थना करें। लगानकी बढ़ती नहीं, परंतु यह न्यायकी वृत्ति ही इस साम्राज्यकी मूल भित्ति है।’ सम्राट्ने जाते-जाते यह कहा । धन्य !
जाने क्यों, सम्राट्की नींद एकाएक उड़ गयी। पलंगपर पड़े रहनेके बदले बादशाह उठकर बाहर निकल आया। निस्तब्ध रात्रि थी। पहरेदारने अभी अभी बारहके घंटे बजाये थे।
पासके बैठकखानेमें तेज रोशनीकी एक बढ़िया चिराग जल रही थी। सम्राट्ने कौतूहलवश उस ओर पैर बढ़ाये।
बहीखातोंके ढेरके बीचमें, आयविभागका प्रधान मन्त्री ( Revenue Minister) किसी गहरी चिन्तामें डूबा बैठा था। सम्राट्के पैरोंकी धीमी आहट सुननेतककी उसे सुध नहीं थी। साम्राज्यपर अचानक कोई भारी विपत्ति आ पड़ी हो और उसे दूर करनेका उपाय सोच रहा हो वह इस प्रकार ध्यानमग्र था।
सम्राट् कुछ देरतक यह दृश्य देखता रहा; और मेरे राज्यके ऊँचे अधिकारियोंमें ऐसे परिश्रमी और लगनवाले पुरुष हैं, यह जानकर उसे अभिमान हुआ।
‘क्यों बड़ी चिन्तामें डूब रहे हो, क्या बात है ?’ सम्राट्ने कहा।
मन्त्रीने उठकर सम्राट्का स्वागत किया। अपनीचिन्ताका कारण बतलाते हुए मन्त्रीने कहा – ‘गत वर्षकी अपेक्षा इस वर्ष लगानकी वसूलीके आँकड़े कुछ ज्यादा थे, इसलिये मैंने स्वयं ही इसकी जाँच करनेका निश्चय किया।’
‘इस वर्ष लगान अधिक आया है, इसका तो मुझे भी पता है, परंतु ऐसा क्यों हुआ, यह मालूम नहीं।’ सम्राट्ने यह कहकर आयमन्त्रीकी बातका समर्थन किया।
‘उस कारणको खोज निकालनेके लिये ही मैं जागरण कर रहा हूँ सरकार ! सारे बहीखाते उलट डाले, कहीं खास परिवर्तन नहीं मालूम हुआ। संवत् भी बहुत अच्छा नहीं था’ आयमन्त्रीने असल बात कहनी शुरू की।
‘तो हिसाबमें भूल हुई होगी।’
‘हिसाब भी जाँच लिया। जोड़-बाकी सब ठीक हैं।’ ‘तब तुम जानो और तुम्हारा काम जाने। लगान तो बढ़ा ही है न ?’ इसमें चिन्ताकी कौन-सी बात है ? रात बहुत चली गयी है, अब इस बखेड़ेको कलपर रखो।’ सम्राट्ने उकताकर मुँह फेर लिया।’आमदनी बढ़ी है यह ठीक है, परंतु यहीं तो साम्राज्यके लिये चिन्ताका कारण है । लगानकी कमी सही जा सकती है, परंतु अन्यायकी अगर एक कौड़ी भी खजानेमें आ जाती है तो वह सारे साम्राज्यके अङ्गोंसे फूट-फूटकर निकलती है।’ आयमन्त्रीने अपने उद्वेगका इतिहास धीरे-धीरे कहना आरम्भ किया। ‘सरकार ! यहाँ भी ऐसा ही हुआ है। किसानोंके पैदायश नाममात्रकी है। गयी साल गरमी बहुत पड़ी थी, इससे गङ्गा-यमुना जैसी भरी-पूरी नदियोंका जल भी सूख चला था। जल सूख जानेसे किनारेकी जमीन निकल आयी थी। इस जमीनमें लोगोंने कुछ बाड़े बनाये और उन्हींके द्वारा सरकारी खजाने में कुछ धन ज्यादा आया । आमदनी बढ़नेका यही गुप्त रहस्य है।’
‘नदियाँ सूख गयीं, जल दूर चला गया औरलगान बढ़ा।’ मन्त्रीकी चिन्ताने सम्राट्के दिलपर भी चिन्ताका चेप लगा दिया। कुछ देरतक इन्हीं शब्दोंको वह रटता रहा।
‘नदीका जल सूखना भी तो एक ईश्वरीय कोप है। इस कोपको सिर लेकर लगानकी मौज उड़ानेवाली बादशाही कबतक टिकी रह सकती है ? यह अन्यायका पैसा है। मेरे खजाने में ऐसी एक कौड़ी भी नहीं आनी चाहिये।’ सम्राट्ने अपनी आज्ञा सुना दी। आयमन्त्रीकी चिन्ता अकारण नहीं थी, सम्राट्को इसका अनुभव हुआ।
‘इन गरीब प्रजाका लगान लौटा दो और मेरी ओरसे उनसे कहला दो कि वे रात-दिन गङ्गा-यमुनाको भरी पूरी रखनेके लिये ही भगवान्से प्रार्थना करें। लगानकी बढ़ती नहीं, परंतु यह न्यायकी वृत्ति ही इस साम्राज्यकी मूल भित्ति है।’ सम्राट्ने जाते-जाते यह कहा । धन्य !