एक अयाची वृत्तिके महात्मा काशी गये। सुबहसे शाम हो गयी, पर न तो उन्होंने किसीसे कुछ माँगा और न कुछ खाया। संध्याको एक वृद्ध उनके पास आये और उनको कुछ खानेको दिया, तब उन्होंने खाया। इस तरह वे वृद्ध रोज आकर उनको खिला देते। एक दिन एक वृद्धा भी वृद्धको ढूँढ़ती हुई वहाँआयी। अब उसने आकर वृद्धके साथ भोजन बनाकर उनको दिया। उसी दिन रातको उनको स्वप्न आया कि तुम्हारे मनमें यह दृढ़ विश्वास था कि ‘काशीमें भगवान् शिव-पार्वतीके दर्शन हो ही जायँगे। इसीलिये हमलोग वृद्ध-वृद्धा बनकर आये थे।’ यह स्वप्न देखकर महात्मा भाव-विह्वल होकर फूट-फूटकर रोने लगे।
A philanthropic Mahatma went to Kashi. From morning to evening, he neither asked anyone for anything nor ate anything. In the evening an old man came to him and offered him something to eat, then he ate. In this way, those old people would come everyday and feed them. One day an old woman also came there looking for the old man. Now he came and cooked food with the old man and gave it to him. On the same day at night, he had a dream that you had a firm belief that ‘Lord Shiva-Parvati will be seen in Kashi. That’s why we came as old people.’ Seeing this dream, Mahatma started crying bitterly.