भक्तका स्वभाव

buddha flower buddhism

प्रह्लादने गुरुओंकी बात मानकर हरिनामको न छोड़ा, तब उन्होंने गुस्सेमें भरकर अग्रिशिखाके समान प्रज्वलित शरीरवाली कृत्याको उत्पन्न किया। उसअत्यन्त भयंकर राक्षसीने अपने पैरोंकी चोटसे पृथ्वीको कँपाते हुए वहाँ प्रकट होकर बड़े क्रोधसे प्रह्लादजीकी छातीमें त्रिशूलसे प्रहार किया; किंतु उस बालककेहृदयमें लगते ही वह झलझलाता हुआ त्रिशूल टुकड़े टुकड़े होकर जमीनपर गिर पड़ा। जिस हृदयमें भगवान् श्रीहरि निरन्तर प्रकटरूपसे विराजते हैं, उसमें लगनेसे वज्रके भी टूक-टूक हो जाते हैं, फिर त्रिशूलकी तो बात ही क्या है ?

पापी पुरोहितोंने निष्पाप भक्तपर कृत्याका प्रयोग किया था, बुरा करनेवालेका ही बुरा होता इसलिये कृत्याने उन पुरोहितोंको ही मार डाला। उन्हें मारकर वह स्वयं भी नष्ट हो गयी। अपने गुरुओंको कृत्याके द्वारा जलाये जाते देखकर महामति प्रह्लाद ‘हे कृष्ण ! रक्षा करो! हे अनन्त ! इन्हें बचाओ !’ यों कहते हुए उनकी ओर दौड़े।

प्रह्लादजीने कहा- ‘सर्वव्यापी विश्वरूप, विश्वस्रष्टा जनार्दन ! इन ब्राह्मणोंकी इस मन्त्राग्रिरूप भयानकविपत्तिसे रक्षा करो। यदि मैं इस सत्यका मानता हूँ। कि सर्वव्यापी जगद्गुरु भगवान् सभी प्राणियों में व्याप्त हैं तो इसके प्रभावसे ये पुरोहित जीवित हो जायें। यदि मैं सर्वव्यापी और अक्षय भगवान्‌को अपनेसे के रखनेवालोंमें भी देखता हूँ तो ये पुरोहितगण जीवित हो जायँ। जो लोग मुझे मारनेके लिये आये, जिन्होंने मुझे जहर दिया, आगमें जलाया, बड़े-बड़े हाथियोंसे कुचलवाया और साँपोंसे डँसवाया, उन सबके प्रति यदि मेरे मनमें एक-सा मित्रभाव सदा रहा है और मेरी कभी पाप – बुद्धि नहीं हुई है तो इस सत्यके प्रभावसे ये पुरोहित जीवित हो जायँ ।’

यों कहकर प्रह्लादने उनका स्पर्श किया और स्पर्श होते ही वे मरे हुए पुरोहित जीवित होकर उठ बैठे और प्रह्लादका मुक्तकण्ठसे गुणगान करने लगे!

-सु0 सिं0

Prahlad did not leave Harinam after obeying the gurus, then he got angry and created a body burning like Agrishikha. That extremely fierce demonic appeared there shaking the earth with the injury of his feet and struck Prahladji’s chest with a trishul in great anger; But as soon as it hit the boy’s heart, the trembling trident broke into pieces and fell on the ground. The heart in which Lord Shri Hari constantly resides in a visible form, even thunderbolts break into pieces if struck in it, then what is the point of Trishul?
Sinful priests had used Kritya on an innocent devotee, evil would have happened to the one who did bad, so Kritya killed those priests only. After killing them, she herself also got destroyed. Seeing his gurus being burnt by actions, Mahamati Prahlad ‘O Krishna! Protect! O Eternal! Save them!’ Saying this, ran towards him.
Prahladji said- ‘The universal form of the world, the creator of the world, Janardan! Protect these Brahmins from this terrible calamity in the form of a mantra. If I believe this to be true. That the omnipresent Jagadguru Bhagwan pervades all living beings, then by its effect these priests become alive. If I see the all-pervading and inexhaustible Lord even in those who are close to me, then these priests will come alive. Those who came to kill me, those who poisoned me, burnt me in fire, crushed me with big elephants and bitten me by snakes, if I have always had the same friendship in my mind and I have never had a sinful mind, then under the influence of this truth May this priest come alive.’
By saying this, Prahlad touched him and as soon as he was touched, the dead priests got up alive and started praising Prahlad with a free voice!

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