तुलसी जी की नजर में ज्योतिः ब्रह्म स्वरूप श्रीराम है ‘सत्य- शिव- सुंदर’ : परम् रामभक्त संत तुलसी दास जी सिद्ध साधकइ होने के साथ- साथ जीवन मंत्रद्रष्टा तथा नीतिशास्त्र विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक भी थे-- इसका बलिष्ठ प्रमाण उनके सारस्वत रचनाओं में भरपूर है। वे श्रीराम भगवान श्रीजगन्नाथ जी को ज्योति ब्रह्म स्वरूप 'सत्य- शिव- सूंदर' मानकर, तारक मन्त्र 'राम' नाम में खुद को समर्पित किया था।। तुलसी जी की विद्वता : "चिंता से चतुराई से घटे, घटे रूप और ज्ञान। चिंता बड़ी अभागिनी, चिंता चिता समान।। 'तुलसी' भरोसे ईश्वर के, निर्भय हो के सोय। अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय।।" गोस्वामी जी के उपरोक्त दोहे में दर्शित कथन का मतलब ये है कि-- "चिंता" से सृष्ट चतुराई अर्थात् "धूर्त्तता" यानी नकारात्मक शातिर गुण ही आत्म- दहनप्रद "चिता" के अग्नि समान है। इस कारण से "रूप" यानी शरीर और "ज्ञान" यानी विचार- विवेचन शक्ति में "घटौति" यानी अवक्षय आती है। तो, "होनी" हो या "अनहोनी", जो कुछ भी हो जाये, परिणाम से वेफिकर रह कर, सब को ईश्वर पर छोड़ दो और निश्चिन्त होकर "सो" जाओ। यंहा गोस्वामी जी कहना चाहते है की निर्विकार होकर सिर्फ इष्टकर्म करते रहो और निर्भय मन से शांति में जीने के लिए ईश्वर- भरोषा- मार्ग को चुन लो।। यंहा ईश्वर कौन है, कंहा मिलेंगे, पहचान कैसे करेंगे-- ऐसे अनेकानेक प्रश्न खड़े हो जाते है। ये सब की एक ही उत्तर-- "ईश्वर (राम) है सत्य, शिव, सुंदर" स्वरूप ज्योतिःब्रह्म। इस अध्यात्म तथ्य को सावित करने के लिए आर्ष वचन भी है; यथा--
“सत्य- सत्यमेवेश्वरो लोके
सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलानि सर्वाणि
सत्यान्नास्ति परं पदम् ।।” भावार्थ है: "सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव- विभव का मूल है; सत्य (श्रीराम भगवान श्रीजगन्नाथ) से बढ़कर और कुछ नहीं है।।"