एक भिक्षुक अचानक राजा हो गया था। उस देशके संतानहीन नरेशने घोषणा की थी कि उनकी मृत्युके पश्चात् जो पहिला व्यक्ति नगरद्वारमें प्रवेश करे, उसे सिंहासन दे दिया जाय । भाग्यवश नगरद्वारमें प्रवेश करनेवाला पहिला व्यक्ति वह भिखारी था। मन्त्रियोंने उसे राजतिलक कर दिया।
भिक्षुक क्या जाने राजप्रबन्ध राजसेवक स्वच्छन्द व्यवहार करने लगे। अधीनस्थ सामन्तोंने कर देना बंद कर दिया। प्रजा उत्पीड़ित होने लगी राजसेवकोंद्वारा। मन्त्री मनमानी करने लगे। नरेश कुछ करता भी तो अनुभवहीन होनेके कारण परिणाम उलटा निकलता। उसके विरुद्ध राज्यमें असंतोष बढ़ता जाता था। स्वयंवह अत्यन्त क्षुब्ध हो उठा था । घूमते हुए उसका एक पुराना मित्र उस नगरमें आया । राजासे उसने मिलनेकी इच्छा प्रकट की। एकान्तमें राजा उससे मिला। मित्रने कहा- ‘आपके सौभाग्यपर मैं बधाई देने आया हूँ ।’
राजाने कहा—‘मेरे दुर्भाग्यपर रोओ और भगवान्से प्रार्थना करो कि मैं इस विपत्तिसे शीघ्र छूट जाऊँ । जब मैं भिक्षुक था तो भिक्षामें जो भी रूखी-सूखी रोटी मिलती थी उसे खाकर निश्चिन्त रहता था। परंतु आजकल तो अनेक चिन्ताओंके कारण मैं सदा दुःखी रहता हूँ। मुझे ठीक निद्रातक नहीं आती।’
– सु0 सिं0
A beggar had suddenly become a king. The childless king of that country had announced that the throne should be given to the first person who enters the city gate after his death. Luckily the first person to enter the city gate was that beggar. The ministers crowned him.
Don’t know the beggar, Rajprabandh, Rajsevak started behaving freely. The subordinate feudatories stopped paying taxes. The subjects started being harassed by the royal servants. Ministers started doing arbitrariness. Even if the king had done something, due to his inexperience, the result would have turned out to be opposite. Discontent in the state kept increasing against him. He himself was very upset. While roaming around, an old friend of his came to that city. He expressed his desire to meet the king. The king met him in solitude. Friend said- ‘I have come to congratulate you on your good fortune.’
The king said – ‘Weep over my misfortune and pray to God that I may get rid of this calamity soon. When I was a beggar, I used to be relaxed by eating whatever dry bread I got in alms. But nowadays I am always sad due to many worries. I can’t even sleep well.’
– Su 0 Sin 0