संत इब्राहीम खवास किसी पर्वतपर जा रहे थे। पर्वतपर अनारके वृक्ष थे और उनमें फल लगे थे। इब्राहीमकी इच्छा अनार खानेकी हुई। उन्होंने एक फल तोड़ा; किंतु वह खट्टा निकला, अतः उसे फेंककर वेआगे बढ़े। कुछ आगे जानेपर एक मनुष्य मार्गके पास लेटा हुआ मिला। उसे बहुत-सी मक्खियाँ काट रही थीं; किंतु वह उन्हें भगाता नहीं था इब्राहीमने उसे नमस्कार किया तो वह बोला-‘इब्राहीम अच्छे आये।’एक अपरिचितको अपना नाम लेते देख इब्राहीमको आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा- ‘आप मुझे कैसे पहचानते हैं?’
पुरुष – ‘एक भगवत्प्राप्त व्यक्तिसे कुछ छिपा नहीं रहता । ‘
इब्राहीम—आपको भगवत्प्राप्ति हुई है तो भगवान्सेप्रार्थना क्यों नहीं करते कि इन मक्खियोंको आपसे दूर कर दें।’
पुरुष – ‘इब्राहीम ! तुम्हें भी तो भगवत्प्राप्ति हुई है। तुम क्यों प्रार्थना नहीं करते कि तुम्हारे मनमें अनार खानेकी कामना न हो। मक्खियाँ तो शरीरको ही कष्ट देती हैं; किंतु कामनाएँ तो हृदयको पीड़ित करती हैं।’
Saint Ibrahim Khawas was going to a mountain. There were pomegranate trees on the mountain and they were bearing fruits. Abraham wanted to eat pomegranate. He plucked a fruit; But it turned out to be sour, so they threw it away and moved on. After going a little further, a man was found lying near the road. Many flies were biting him; But he did not drive them away. When Abraham greeted him, he said – ‘Abraham has come.’ Abraham was surprised to see a stranger taking his name. He asked- ‘How do you recognize me?’
Man – ‘Nothing remains hidden from a God-realized person. ,
Abraham- You have attained God, so why don’t you pray to God to keep these flies away from you.’
Male – ‘Ibrahim! You too have attained God. Why don’t you pray that you don’t have the desire to eat pomegranate. Flies only trouble the body; But desires make the heart suffer.’