जैसी नीयत, वैसी बरकत
दानधर्मा प्रकृति भी नीयतके अनुसार बरक्कत (बढ़ोत्तरी) देती है, यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है। एक बार बादशाह जहाँगीर शिकार खेलने जंगलमें गया। दिनभरकी शिकारके पीछे की भाग-दौड़से वह बिलकुल क्लान्त – श्रान्त हो गया। चिलचिलाती धूपके प्रचण्ड तापसे वह बिलबिला उठा-‘लाहौल बिला कूबत! मैं ‘किस आफतमें फँस गया।’ थककर लौटते समय, वह एक किसानके खेतके पास आ पहुँचा। किसानने गन्ना लगा रखा था, बगलमें उसका ईख पेरनेका कोल्हू भी था। अपरिचित, बेहाल, नाजुक युवकको देखकर उसे दया आ गयी। उसने उसे पेड़की छायाके नीचे बिठा दिया और रस निकालने चला गया। शीघ्र ही वह एक कटोरा मीठा रस लेकर हाजिर हो गया। थके-माँदै बादशाहने जब रस पिया तो उसे बड़ा आनन्द आया, लेकिन राजसी संस्कारवश उसके मनमें यह विचार भी आया कि यहाँकी
मिट्टी उपजाऊ है, अतः यहाँपर ‘कर’ बढ़ा दिया जाना चाहिये। बादशाहकी मनोवृत्ति दूषित थी। उसने किसानसे थोड़ा और रस लानेको कहा, किंतु आश्चर्यकी बात अबकी बार गन्ना पेरनेपर रस निकल ही नहीं रहा था। काफी देरके बाद किसान थोड़ा रस लेकर आया। बादशाहने अचकचाकर उससे पूछा- ‘अबकी बार इतनी देर क्यों हुई ? किसानने कहा- ‘यही तो मेरे लिये भी चिन्ताका विषय है। पहले आप बतलाइये कि आप कौन हैं और क्या सोच रहे थे ? जहाँगीरने जब असलियत बतलायी। कि मैं मुल्कका बादशाह हूँ और यह सोच रहा था कि इस क्षेत्रका ‘राज्यकर’ बढ़ा देना चाहिये । बोल उठा- ‘बस, बस। कारण पता चल गया, आपकी नीयत में खोट आ जानेसे बरकत रुक गयी थी। शासकको शोषक नहीं बनना चाहिये।’ बादशाह सिर नीचाकर विदा हो गया।[ श्रीमुकुन्दपतिजी त्रिपाठी ‘रत्नमालीय’ ]
As the intention, so the blessing
Charitable nature also gives Barkat (increase) according to intention, this is a universal principle. Once Emperor Jahangir went to the forest to play hunting. He was completely exhausted from running after the day’s prey. Due to the intense heat of the scorching sun, he woke up crying – ‘Lahaul Bila Kubat! I ‘got caught in what disaster’. While returning tired, he came across a farmer’s field. The farmer had planted sugarcane, beside him was also a sugarcane crusher. Seeing the stranger, helpless, fragile young man, he felt pity. He made him sit under the shade of the tree and went to extract the juice. Soon he appeared with a bowl of sweet juice. When the tired king drank the juice, he was very happy, but due to the royal rituals, the thought also came in his mind that
The soil is fertile, so ‘tax’ should be increased here. The king’s attitude was corrupt. He asked the farmer to bring some more juice, but surprisingly this time the juice was not coming out after crushing the sugarcane. After a long time the farmer brought some juice. The king asked him in surprise – ‘Why did it take so long this time? The farmer said – ‘ This is a matter of concern for me too. First you tell who are you and what were you thinking? When Jahangir told the reality. That I am the king of the country and was thinking that the state tax should be increased in this area. Said – ‘Enough, enough. I came to know the reason, because of a mistake in your intention, the blessings were stopped. The ruler should not become an exploiter.’ The king bowed his head and left. [Shrimukundapatiji Tripathi ‘Ratnamalia’]