संस्कारोंका बालमनपर प्रभाव
सत्य एवं सदाचारका पालन करनेमें सत्संगकी तरह बाल्यकालके संस्कारोंका भी बड़ा हाथ होता है। एक साधुको एकबार एक सजीव भिक्षा (बालककी भिक्षा) प्राप्त हुई। साधुने भिक्षा लाकर भिक्षा पात्र गुरुको दिया। पात्र भारी था, इसलिये बालकका नाम वज्रकुमार रखा गया। साध्वियोंद्वारा बच्चेका पालन पोषण किया गया और साधु भी बच्चेको देखा करते थे।
कुछ दिनों बाद बच्चेको खुशहाल देखकर उसकी असली माँ उसे लेने आ गयी। किंतु साधुमण्डली उसे देनेको तैयार नहीं हुई, जिससे वाद-विवाद खड़ा हो गया। राजाके समक्ष निर्णयके लिये यह प्रकरण रखा गया। जन्म देनेवाली माँ विविध प्रकारके खिलौने, मिठाइयाँ आदि लेकर आयी और संघकी ओरसे पुस्तकें और धार्मिक उपकरण रखे गये। सामग्रियोंक बीच बच्चेको रखा गया। बच्चा धार्मिक उपकरणोंकी तरफ बढ़ा। उसने खिलौनोंकी ओर मुँह फेरकर भी नहीं देखा।
तात्पर्य यह है कि एक अबोध बच्चा भी धार्मिक संस्कारोंके कारण खिलौना छोड़कर धार्मिक उपकरणोंकी ओर बढ़ा। यदि इसी प्रकार माताएँ अपने बच्चोंमें जन्मसे ही अच्छे संस्कार डालें, तो आगे चलकर बच्चोंको अपना जीवन ऊँचा उठानेमें कोई दिक्कत नहीं होगी।
[ श्रीबंकटलालजी आसोपा ]
effect of culture on child’s mind
Like satsang, childhood rituals also have a big hand in following truth and virtue. A monk once received a live alms (alms of a child). The monk brought alms and gave the alms bowl to the Guru. The pot was heavy, so the boy was named Vajrakumar. The child was brought up by the sadhvis and the sadhus also looked after the child.
After a few days, seeing the child happy, his real mother came to take him. But Sadhumandali was not ready to give it to him, due to which a debate arose. This episode was kept before the king for decision. The birth mother brought a variety of toys, sweets etc. and books and religious equipment were kept by the Sangh. The child was placed between the materials. The child moved towards the religious instruments. He didn’t even turn his face towards the toys.
The meaning is that even an innocent child left the toy due to religious rites and moved towards religious instruments. Similarly, if mothers inculcate good manners in their children right from birth, then there will be no problem for the children to raise their lives in the future.
[Shribankatlalji Asopa]