मानसिक पूजन


वह मंदिर की पूजा में बहुत शानदार सेवा पेश करना चाहता था, लेकिन उसके पास धन नहीं था !

एक दिन की बात है वह एक भागवत कथा में बैठा हुआ था और उसने सुना कि नारायण मन के भीतर (मानसिक) भी पूजे जा सकते हैं !
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उसने इस अवसर का लाभ उठाया क्योंकि वह एक लंबे समय से सोच रहा था कि कैसे बहुत शान से नारायण की पूजा करूं, लेकिन उसके धन पैसे नहीं था।
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जब वह यह समझ गया, कि मन के भीतर नारायण की पूजा कर सकते हैं, तो गोदावरी नदी में स्नान करने के बाद, वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था !
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अपने मन के भीतर वह बहुत खूबसूरत सिंहासन का निर्माण कर रहा था…
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गहनों के साथ लदी और सिंहासन पर भगवान के अर्च विग्रह को रखते हुए, वह अर्च विग्रह का अभिषेक कर रहा था। गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी के जल के साथ..
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फिर बहुत अच्छी तरह से अर्च विग्रह का श्रृंगार कर रहा था, और फूल, माला के साथ पूजा कर रहा था !
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वह बहुत अच्छी तरह से भोजन पका रहा था, और वह भगवान् के लिए मीठे चावल पका रहा था।
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वह परखना चाहता था कि क्या चावल बहुत गर्म तो नहीं है, क्योंकि भगवान् को गर्म भोजन नहीं दिया जाता..
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जैसे ही उसने अपनी उंगली पात्र में डाली तो उसकी उंगली जल गई..
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तब उसका ध्यान टूटा, लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था। केवल वह अपने मन के भीतर वह सब कुछ कर रहा था !
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लेकिन उसने अपनी उंगली जली हुई देखी.. तो वह चकित रह गया !
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इधर वैकुन्ठ में नारायण, मुस्कुरा रहे थे..
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देवी लक्ष्मीजी ने पूछा – आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं
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मेरा एक भक्त अतिप्रभावी मानस पूजन कर रहा है। मेरे अन्य धनिक भक्त सब उच्च साधनो से सामग्रियों से मेरी अर्चना करते है। लेकिन मन भटकता रहता है।
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इस समर्पित भक्त का वास वैकुन्ठ में होना चाहिए, अतः मेरे दूतों को तुरंत भेजो उसे वैकुन्ठ लाने के लिए..
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भक्ति-योग इतना अच्छा है कि भले ही आपके पास भगवान की भव्य पूजा के लिए साधन न हो, आप मन के भीतर यह कर सकते हो। यह भी संभव है !!
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क्या फर्क पड़ता है कि किसका नम्बर कब आना है.. जाना सबने ही है.. हमको अहसास ही नहीं रहता कि हम सफर में ही नहीं.. बल्कि एक लाइन में भी हैं।
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नित्य अच्छें कार्य करें कौन सा दिन आखिरी हैं कोई नही जानता।
जय श्री राम

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