धूप-छाँव का खेल मनुष्य के जीवन में अनवरत चलता रहता है। कभी वह छाया का आनन्द लेता है, तो कभी वह धूप में तपते हुए परेशान होता है। छाया में जब मनुष्य बैठता है, तब उसकी थकान दूर होती है। उसे ठण्डक का अहसास होता है और आए हुए पसीने से छुटकारा मिलता है। यदि वह किसी वृक्ष की छाया में बैठता है, तो शीतलता के साथ-साथ मीठे फल भी मिलते हैं। वहाँ बैठे पक्षियों का मधुर गान सुनने को मिलता है।
इसके विपरीत जब मनुष्य धूप में चलता है, तब उसे थकावट महसूस होती है। गर्मी लगती है और पसीना भी आता है। कई लोगों का चेहरा धूप में चलने से लाल हो जाता है। इस तरह मनुष्य को बहुत कष्ट होता है। वह इधर-उधर छाया की तलाश करने लगता है, ताकि उसे राहत मिल सके। मनुष्य को सूर्य की गर्मी में कष्ट का अनुभव होता है, पर उससे होने वाले लाभ उसे दिखाई नहीं देते।
छाया में मिलने वाले लाभों की चर्चा हमने अभी ऊपर की, पर सूर्य की धूप से होने वाले लाभ के विषय में विचार करते हैं। सूर्य के प्रकाश से रात्रि के अन्धकार का नाश हो जाता है और सारी पृथ्वी जगमगा उठती है। मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी धूप की बहुत आवश्यक होती है। प्रातः कालीन धूप में लगे पाँव चलने से मनुष्य का शरीर नीरोग रहता है। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है। धूप में बैठने से विटामिन डी की कमी दूर होती है।
छाया यदि मनुष्य को सुख देती है, तो सूर्य की गर्मी भी उसके लिए आवश्यक होती है। वास्तव में जीवन में छाया यानी सुख-समृद्धि आने पर मनुष्य बहुत प्रसन्न होता है, बल्लियों उछलता है। उस समय उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ते। मानो वह किसी और ही ग्रह का प्राणी बन गया हो। तब वह अपने बराबर किसी दूसरे को नहीं समझता। वह हर किसी को देख लेने की हिमाकत करने लगता है। वह स्वयं को ईश्वर से भी महान समझने की भूल कर बैठता है।
इसके विपरीत धूप का सामना होने पर मनुष्य परेशान हो जाता है। इन्सानी प्रकृति है कि तब वह भगवान को कोसता है, उसे लानत-मलानत करता है। वह दुख सहन करने के लिए कतई तैयार नहीं होता। उस समय मनुष्य को स्मरण रखना चाहिए कि इन दुखों और परेशानियों को भोगने के अतिरिक्त उसके पास और कोई चारा नहीं है। ये सब उसकी अपनी बोई हुई फसल है, जिसे वह काट रहा है।
पूर्वजन्म कृत शुभाशुभ कर्मों का फल तो उसे भोगना ही पडता है। अब चाहे वह रोकर भोगे या फिर हँसकर उस कठिन समय को व्यतीत करें। दुख की रात कितनी भी लम्बी क्यों न हो, उसे तो समाप्त होना ही पड़ता है। उसके बाद दूर से चमकता हुआ प्रकाश उसकी राह देख रहा होता है। इसी प्रकार सूर्य को आक्रान्त करने वाले काले घने बादलों के बाद ही तो आकाश में मनमोहक इन्द्रधनुष के दर्शन हमें होते है। यह समय मनुष्य को अपने और पराए की पहचान करवाता है। उसकी इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाता है। इस समय मनुष्य अग्नि में तपे हुए कुन्दन की तरह निखरकर समाज में एक नए रूप में प्रकट होता है।
मनुष्य यदि इस धूप-छाँव के खेल को समझ जाए, तो उसे न कोई परेशानी होती है और न ही कोई कष्ट होता है। वह हर स्थिति में इस द्वन्द्व को सहन करने की क्षमता धारण कर लेता है। फिर उसे इन विपरीत अवस्थाओं में स्थितप्रज्ञ बनने से कोई नहीं रोक सकता। मनुष्य को सदा ही यह स्मरण रखना चाहिए कि जैसे कर्म वह अपने पूर्व जन्मों में करके आता है, उन्हीं की फसल को वह इस जन्म में काटता है। इसके लिए किसी को भी दोष देना व्यर्थ होता है।
प्रत्येक मनुष्य को अपने इस जीवन में बहुत सावधानीपूर्वक, विचारशील बनकर अपने दायित्वों का निर्वहण करना चाहिए। जो भी कर्म वह करे, उन्हें अपने विवेक की कसौटी पर कसकर उसे करना चाहिए। पूर्व जन्मों में उसने क्या किया, वह नहीं जान सकता। परलोक को सुधारने के लिए इस जन्म में अपने कर्मों की शुचिता पर ध्यान अवश्य देना चाहिए। तभी उसके इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर सकते हैं।.
🚩जय जय श्री राम🚩
मनुष्य जीवन में धुप छावं का खेल
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