सावन, 4 जुलाई, 2023 से शुभारंभ
तब, जब कभी पेड़ों पर पड़ जाते थे झूले, सावन आते ही, अब खो गई है वे सभी परंपरायें. उसी परंपरा को पुनः जीने की अभिलाषा को पुरा करने के लिये मैनें भी अपने घर के प्रांगण में एक झूला लगा लिया है, सावन की प्रतिझा में जो तीन-चार दिन बाद ही आने वाला है
सावन में पहले थी झूला झूलने की परंपरा, गांवों में पेड़ों पर झूले डाले जाते थे, बहू-बेटियां सावन के गीत गाती थी, अब केवल यादें ही बाकी रह गईं हैं
“सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ.., सावन के झूलों ने मुझको बुलाया”.. जैसे गीत सावन में झूला झूलने की परंपरा को याद दिलाते हैं।
सावन मास की शुरुआत 4 जुलाई से हो जायेगी, लेकिन अब पेड़ों पर ना तो सावन के झूले पड़ते हैं और ना ही बाग-बगीचों में रौनक होती है, जबकि एक जमाने में सावन लगते ही बाग-बगीचों में झूलों का आनंद लिया जाता था. विवाहित बेटियाें को ससुराल से बुलाया जाता था. वे मेहंदी लगाकर सावन के इस मौसम में सखियों के संग झूला झूलने का आनंद लिया करती थी और वहीं, बरसती बूंदें मौसम का मजा और दोगुना कर देती थी, लेकिन अब ये परंपरा खत्म होती जा रही है. अब न तो झूले पड़ते हैं , न ही गीत सुनाई देते हैं ; और न ही सावन की पहली बारिश समय पर हो रही है. मौसम का मिजाज भी हम सब के संग अठखेलियाँ करने लगा है.
पहला सावन उन दिनों मायके में ही मनाने की परंपरा थी और उन दिनों बहन-बेटियाें के लिए पड़ते थे तब झूले. ऐसे में बहन-बेटियां ससुराल से मायके बुला ली जाती थीं और हाथों में मेहंदी रचा कर पेड़ों पर झूला डाल कर झूलती थीं। महिलाएं सावनी गीत गाया करती थीं. अब जगह के अभाव में शहरों में तो कहीं झूले नहीं डाले जाते. घरों में जरूर कहीं-कहीं झूले मिलते हैं, लेकिन पेड़ों पर झूला डालकर झूलने का मजा ही अलग होता था.
वषों पहले, र्हिंडोल, अनेक राज्यों में विजय होने के नित्य उत्सव के तरह भी मनाया जाता था. अनेक हिंडोला कीर्तन राग मेघ, मल्हार, हिंदोल आदि रागिनियों में गाए जाने की प्राचिन काल से ही हमारी परंपरा रही है. तब सच ही कहा जाता था कि “सावन और भादों” मास, दो ऐसे मास होते थे जो झूलों में ही झूलते थे और प्रकृति के रंजन रूप को जीते थे. अब वे सब परंपरायें विलुप्त सी हो गई हैं.
उसी परंपरा को पुनः जीने की अभिलाषा को पुरा करने के लिये मैनें भी अपने घर के प्रांगण में एक झूला लगा लिया है, सावन की प्रतिझा में जो तीन-चार दिन बाद ही आने वाला है
( झूला लगाने में मुझसे सिर्फ एक ही भूल हो गई, झूला जिस पेड़ की डाली पर बांधा हूँ उसके कारण झूला झूलते समय निचे एक छोटे से पौध को चोट लग रही है, इसके कारण झूला को पुनः दुसरी डाली पर बांधूँगा ताकि निचे के पौध आहत न हों )
औरअबअर्ज है_
“जाने कौन रह गया
भीगने से शहर में .. जिसके लिए लौटती है रह रह कर बारिश
Sawan, starting from July 4, 2023 Then, whenever the swings used to fall on the trees, as soon as the monsoon comes, now all those traditions have been lost. To fulfill the desire to live the same tradition again, I have also installed a swing in the courtyard of my house, in the month of Sawan, which is going to come only after three-four days.
Earlier there was a tradition of swinging in Sawan, swings were put on trees in villages, daughter-in-law used to sing songs of Sawan, now only memories are left Songs like “Saawan ke jhoole pade, tum chale aao.., Saawan ke jhoole ne mujhko calla”. The month of Sawan will start from 4th July, but now neither the swings of Sawan fall on the trees nor there is brightness in the gardens, whereas once upon a time swings were enjoyed in the gardens as soon as Sawan started. Married daughters were called from their in-laws’ house. She used to enjoy swinging on the swing with her friends in this season of Sawan by applying henna and on the other hand, the raining drops used to double the fun of the season, but now this tradition is ending. Now neither swings nor songs are heard; Nor is the first rain of Sawan coming on time. The mood of the weather has also started playing tricks with all of us. In those days, it was a tradition to celebrate the first Sawan at home and in those days swings were used for sisters and daughters. In such a situation, sisters and daughters were called from their in-laws to their maternal home and used to swing on the trees after making henna on their hands. Women used to sing Savani songs. Now, due to lack of space, swings are not put anywhere in the cities. Swings are definitely found in some places in the houses, but the fun of swinging on the trees was different. Years ago, Rhindol was also celebrated as a daily victory festival in many states. It has been our tradition since ancient times to sing many Hindola Kirtans in Raag Megh, Malhar, Hindol etc. At that time it was true that the month of “Saawan and Bhadon” were two such months which used to swing in swings and lived the colorful form of nature. Now all those traditions have become extinct. To fulfill the desire to live the same tradition again, I have also installed a swing in the courtyard of my house, in the month of Sawan, which is going to come only after three-four days. (I made only one mistake in installing the swing, because of the branch of the tree on which I have tied the swing, while swinging the swing, a small plant below is getting hurt, due to this I will tie the swing again on another branch so that the plants below are not hurt. not be) and now apply_ Who knows who’s left Getting wet in the city .. for which the rain keeps returning