रसोपासना – भाग-30 !!

आज के विचार

🙏( निकुञ्ज में “बरसा ऋतु” )🙏

🙏ध्यान परायण “रसलोभी” साधक ऐसे ध्यान करें –

“परम सुन्दर श्रीधाम वृन्दावन है…लताओं से वेष्टित है ये श्रीधाम ।

चित्र विचित्र पक्षी हैं यहाँ के… उनकी ध्वनि से दिशाएँ मुखरित होती रहती हैं…श्रीराधा आलिंगित श्याम सुन्दर और श्याम सुन्दर आलिंगित श्री राधा… सखियों का अद्भुत व्यूह है…जिनके सर्वस्व हैं युगल सरकार…और उनकी दिव्य दिव्य लीलाएँ ।

दिव्य युगल सरकार परस्पर दर्शन, स्पर्श और रसास्वादन में सदैव तत्पर रहते हैं…और अन्य समस्त व्यवहारों से मुक्त ।”

बस – अपने मन में ऐसी नित्य स्वारसिक लीलाओं का स्मरण करते रहना चाहिये…एकान्त मिलते ही… मन में विचार करो… “युगल इस समय क्या करते होंगे ?” अगर ईमानदारी से आप ये कर सको… तो सच मानो बहुत शीघ्र आप उस “प्रेम देश” में प्रवेश पा जाओगे ।

पर हाँ… युगल नाम मन्त्र का जाप भी आवश्यक है ।

चलो ! हे रसिकों ! निकुञ्ज में आज वर्षा ऋतु का रस बरसने वाला है ।🙏


ये कौन सखी है ? और हमारे सामने हाथ जोड़े खड़ी है ?

रंगदेवी और ललिता सखी ने देखा… एक अत्यन्त सुन्दर सखी खड़ी है… और कुछ कहना चाह रही है ।

मैं “बरसा ऋतु” हूँ…और मैं चाहती हूँ कि युगल की मैं भी सेवा करूँ…मैं भी उन्हें भिगोकर अपने आपको धन्य बनाऊँ… ।

और हे सखियों ! देखो तो ग्रीष्म की ताप कैसे युगल को झुलसा रही है… इसलिये मेरी ये सेवा स्वीकार की जाए ।

“बरसा ऋतु” ने बड़ी विनम्रता से अपनी प्रार्थना रखी ।

रंगदेवी और ललिता सखी ने युगल की ओर देखा… सच – माथे में मोतियों की तरह पसीने की बूँदें झिलमिला रही थीं…युगल के ।

ललिता ने बरसा ऋतु से कहा…ठीक है…छा जाओ तुम निकुञ्ज में ।

बस… सखियों के कहने की देरी थी… “बरसा” ने आनन्दित होकर प्रणाम किया… और देखते ही देखते… निकुञ्ज के नभ में काले काले बादल छा गए ।

एकाएक बादल घुमड़ घुमड़ कर गरजने लगे…बिजली चमकने लगी…नन्ही नन्ही बूँदें युगल के ऊपर बरसने लगीं…

युगल के आनन्द का कोई ठिकाना नही था…आकाश की ओर देखकर युगल बोले… ये क्या हुआ ? एकाएक ?

🙏हे राधिके ! लगता है…आज ये बदरा हमें भिगोकर ही मानेँगे ।

🙏हाँ प्रियतम ! मुझे भी यही लगता है… पर जाएँ कहाँ ?

युगल इधर उधर देखने लगे थे… क्यों कि बरसा अब अच्छी ही बरसने वाली थी


🙏तभी – रंगदेवी ने एक सुन्दर सा छत्र लाकर श्याम सुन्दर के हाथों में दिया…वो छत्र बहुत सुन्दर था… मोतियों की झालर, मणि जटित, जरी के बेल बूटाओं से मण्डित…अत्यंत सुन्दर था… वो छत्र देकर सखियाँ चली गयीं…ताकि स्वतन्त्र हो युगल बरसा ऋतु में विहार कर सकें ।

प्रिया जु भींग रही हैं…श्याम सुन्दर के हाथों में छत्र है ।

🙏तब बड़े प्रेम से श्याम सुन्दर कहते हैं…हे प्यारी ! देखो तो… कैसी नन्ही नन्ही बूँदें बरस रही हैं…ऐसे तो आपको सबरो श्रृंगार भीग जावेगो…और फिर शीतल वयार भी चल रही है…आपकू जाड़ो भी लग रह्यों होयगो…को आप मेरी बात मानो… मेरे या छत्र के नीचे आजाओ ।…बड़े प्रेम से श्याम सुन्दर ने अपनी प्रियतमा श्री राधा रानी से कहा ।

🙏इतने प्रेमपूर्ण बोल सुनकर श्रीजी आनन्दित हो उठीं…और वो तुरन्त श्याम सुन्दर के निकट छत्र के नीचे आगयीं ।

अब तो बस श्याम सुन्दर के आनन्द का ठिकाना नही था… दोनों के अंग छुव रहे हैं…रोमांच हो रहा है श्याम सुन्दर को ।

दूर खड़ी हैं छुप कर सखियाँ…वो सब युगल के इस “बरसा की झाँकी” का आनन्द ले रही है…

“देखि युगल छबि सावन लाजै !
उत घन इत घनश्याम लाडिलो,
उत दामिनी इत प्रिय संग राजै !!”

सखी ! देखो तो… युगल की इस छबि को देखकर तो सावन भी लजा रही है…आहा !

एक छत्र के नीचे विराजित युगलवर बरसा का जिस तरह आनन्द ले रहे हैं…ये अद्भुत है… ।

उधर “घन” हैं…तो इधर “घनश्याम” हैं…उधर “बिजुली” चमक रही है “घन” बादलों के मध्य में… तो इधर “घनश्याम के साथ विद्युत वरनी श्रीजी सुशोभित हैं” ।

सखियाँ मल्हार गा रही हैं…और वर्णन करती जा रही हैं ।

सखी ! देखो तो ! उधर से बरसती हुयी बूँदें “जल कण” की माला लग रही हैं…तो इधर हमारी श्यामा जु के कण्ठ में मोतियों का हार विराज रहा है ।

सखी देखो ! अपनी फेंट से श्याम सुन्दर नें बाँसुरी निकाल ली है… और अधरों में रख कर बाँसुरी को बजा रहे हैं…

कैसा लग रहा है अब ? रंगदेवी ने ललिता की ओर मुस्कुरा कर पूछा ।

सखी ! दिव्य लग रहा है…जैसे – उधर मोर बोल रहे हैं…और इधर श्याम सुन्दर की बाँसुरी बज रही है…आहा ! सुन्दर ध्वनि से निकुञ्ज गूँज रहा है…सखी ! उधर मोर नाच रहे हैं… इधर प्रिया जु की पायल बाज रही है… आनंद की अतिरेकता हो रही है ये तो ।

चित्रा सखी बोली – सखी देखो… ऊपर रंग बिरंगे बादल छाये हैं…और इधर हमारे युगल सरकार के रंग बिरंगे वस्त्रों की अलग ही शोभा है… उधर बादल घुमड़ घुमड़ कर आरहे हैं…तो सखी ! इधर हमारे युगलवर के नेत्र कमल कैसे इधर उधर मँडरा रहे हैं…उफ़ !

वैसे सच बात ये है कि… बरसा को भी मात दे रहे हैं हमारे युगल सरकार… रंगदेवी ने कहा….. तो सब सखियों ने आनन्दित हो रंगदेवी को गले से लगा लिया… और अपनी प्रसन्नता व्यक्त की ।🙏


बरसा थम गयी है अब… तब श्याम सुन्दर ने छत्र को हटा दिया… और यमुना पुलिन पर भ्रमण करने लगे… युगल, शोभा निरख रहे हैं पुलिन की… पर तभी… नभ में घन फिर घुमड़ने लगे… घन घोर घटा क्षणों में ही नभ में छा गयी… गर्जना होने लगी… बिजुली चमकने लगी…डर गयीं प्रिया जु और प्रियतम के हृदय से लग गयीं…बस क्या था… “बरसा सखी” को श्याम सुन्दर ने ऊपर की ओर देखकर धन्यवाद कहा…और श्रीजी को अपने हृदय से लगाकर श्याम सुन्दर अविचल खड़े ही रहे और रस की अनुभूति करने लगे थे ।

प्यारे ! ये बरसा तो फिर बरस गयी ? अब क्या करेंगे ?

हाँ प्यारी ! मैंने छत्र भी छोड़ दिया… अब हम भीग ही जायेंगे ।

श्याम सुन्दर मन ही मन आनन्दित होते हुए बोले ।

अब क्या होगा प्रियतम ! डरती हुयी श्रीजी बोल उठीं ।

कुछ नही प्यारी !… लो ! मेरी ये काली कमरिया है ना… इसको हम दोनों ओढ़ लेते हैं…बूँदे इसमें टिकेंगी नहीं…झर जायेंगी… ।

हाँ… ये ठीक रहेगा… श्रीजी ने कहा ।

श्याम सुन्दर ने प्रसन्नता से काली कमरिया श्रीजी को ओढ़ा दी… और स्वयं भी उसके नीचे आगये ।

बादल फिर जोर से गरजे… बिजली चमकी… और बूँदे पड़ने लगीं ।

श्री जी से श्याम सुन्दर बोले… प्यारी ! आप आजाओ ! मेरे और निकट आजाओ… नही तो आप पूरी भींग जाओगी…श्रीजी और पास आ रही है…और पास… श्याम सुन्दर इतने प्रसन्न हैं जिसकी कोई सीमा नही है ।

हे सखियों ! देखो इस झाँकी को… काली कमरिया में युगल कैसे लग रहे हैं… और फिर ये दोनों ही यमुना जल में झुक कर कैसे अपने आपको निहार रहे हैं… अद्भुत लग रहा है ये दृश्य तो ।

रंगदेवी दूर से सब सखियों को दिखा रही हैं ।

ललिता सखी बोलीं…काली कमरिया में हमारी श्रीजी तो ऐसी लग रही हैं…जैसे “स्वच्छ काले पर्वत में सुवर्ण की खानी झलक रही हो”… आहा ! क्या दिव्य छवि है ये ।

बरसा फिर बन्द हो गयी…काली कमरिया उतार ली युगल सरकार ने ।

यमुना के किनारे किनारे चल रहे हैं अब…और बड़े प्रसन्न हैं ।

पर फिर ये क्या हुआ ?

बरसा तो फिर शुरू हो गयी…और इस बार बरसा ज्यादा तेज़ थी ।

अब क्या करें ? श्रीजी ने कहा ।

श्याम सुन्दर बोले… महल चलते हैं…

पर प्यारे ! महल यहाँ नही हैं… और पता नही सखियाँ भी कहाँ चली गयीं…

अच्छा ! देखो ! प्यारी ! वो सामने घना कदम्ब का वृक्ष है…उसी के नीचे जाकर खड़े हो जाते हैं हम… और कुछ देर में सखियाँ भी आजायेगी…और बरसा भी रुक जायेगी ।

ऐसा कहते हुए कदम्ब वृक्ष की ओर युगल सरकार चल दिए…

पर ये क्या… बरसा रुक गयी थी फिर एकाएक… और सामने महल दिखाई देने लगा था… श्रीजी प्रसन्नता से उछल पडीं…।

सखियाँ एकाएक प्रकट हो गयीं…श्री जी ने सबको अपने हृदय से लगाया… पर उदास हमारे श्याम सुन्दर हो गए थे ।🙏

शेष “रस चर्चा” कल

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *