धर्म तो सदा अभ्युदय ही करता है

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धर्म तो सदा अभ्युदय ही करता है

जब वामन भगवान के आदेशसे उनके पार्षदोंने राजा बलिको बाँध लिया तो ब्रह्माजीने कहा-प्रभो। जो मनुष्य सच्चे हृदयसे कृपणता छोड़कर आपके चरणों में जलका अर्घ्य देता है और केवल दूर्वादलसे भी आपकी सच्ची पूजा करता है, उसे भी उत्तम गतिकी प्राप्ति होती है। फिर बलिने तो बड़ी प्रसन्नतासे धैर्य और स्थिरतापूर्वक आपको त्रिलोकीका दान कर दिया। तब यह दुःखका भागी कैसे हो सकता है?
श्रीभगवान्ने कहा- ब्रह्माजी। मैं जिसपर कृपा करता हूँ, उसका धन छीन लिया करता हूँ; क्योंकि जब मनुष्य धनके मदसे मतवाला हो जाता है, तब वह मेरा और अन्य लोगोंका तिरस्कार करने लगता है। यह बलि दानव और दैत्य दोनों ही वंशोंमें अग्रगण्य और उनकी कीर्ति बढ़ानेवाला है। इसने उस मायापर विजय प्राप्त कर ली है, जिसे जीतना अत्यन्त कठिन है। तुम तो देख ही रहे हो, इतना दुःख भोगनेपर भी यह मोहित नहीं हुआ। इसका धन छीन लिया, राजपदसे अलग कर दिया, तरह तरहके आक्षेप किये, शत्रुओंने बाँध लिया, भाई-बन्धु छोड़कर चले गये, इतनी यातनाएँ भोगनी पड़ीं यहाँतक कि गुरुदेवने भी इसको डाँटा-फटकारा और शापतक दे दिया, परंतु इस दृवतीने अपनी प्रतिज्ञा नहीं छोड़ी। मैंने इससे छलभरी बातें कीं, मनमें छल रखकर धर्मका उपदेश किया; परंतु इस सत्यवादीने अपना धर्म न छोड़ा। अतः मैंने इसे वह स्थान दिया है, जो बड़े-बड़े देवताओंको भी बड़ी कठिनाईसे प्राप्त होता है। सावर्णि मन्वन्तरमें यह मेरा परमभक ‘इन्द्र’ होगा। तबतक यह विश्वकमकि बनाये हुए सुतललोकमें रहे। वहाँ रहनेवाले लोग मेरी कृपादृष्टिका अनुभव करते हैं। इसलिये उन्हें शारीरिक अथवा मानसिक रोग, थकावट, तन्द्रा, बाहरी या भीतरी शत्रुओंसे पराजय और किसी प्रकारके विघ्नोंका सामना नहीं करना पड़ता। तत्पश्चात् उन्होंने बलिको सम्बोधितकर कहा- ‘महाराज इन्द्रसेन! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम अपने भाई-बन्धुओंकि साथ उस सुतललोकमें जाओ, जिसे स्वर्गके देवता भी चाहते रहते हैं। बड़े-बड़े लोकपाल भी अब तुम्हें पराजित नहीं कर सकेंगे, दूसरोंकी तो बात ही क्या है जो दैत्य तुम्हारी आज्ञाका उल्लंघन करेंगे, मेरा चक्र उनके टुकड़े टुकड़े कर देगा। मैं तुम्हारी, तुम्हारे अनुचरोंकी और भोगसामग्रीकी भी सब प्रकारके विघ्नोंसे रक्षा करूँगा। वीर बलि! तुम मुझे वहाँ सदा-सर्वदा अपने पास ही देखोगे। दानव और दैत्योंके संसर्गसे तुम्हारा जो कुछ आसुरभाव होगा, वह मेरे प्रभावसे तुरंत दब जायेगा और नष्ट हो जायगा; क्योंकि धर्म तो सदा अभ्युदय ही करता है।’ [ श्रीमद्भागवत ]

religion always emerges
When his councilors tied King Baliko by the orders of Lord Vaman, Brahmaji said – Lord. The person who leaves miserliness with a true heart and offers water at your feet and worships you truly even with only Durvadal, he also gets the best speed. Then Baline very happily, patiently and steadfastly donated Triloki to you. Then how can it be a partaker of sorrow?
Shri Bhagwan said – Brahmaji. I take away the wealth of the one on whom I have mercy; Because when a man becomes intoxicated with money, then he starts despising me and other people. This sacrifice is the foremost in both the demons and demons and enhances their fame. He has conquered that illusion, which is very difficult to conquer. You are seeing, even after suffering so much, he was not fascinated. Her wealth was taken away, she was separated from the throne, she was attacked in various ways, her enemies tied her up, she left her brothers and friends, she had to suffer so much that even Gurudev scolded her and cursed her, but this goddess did not give up her promise. . I spoke deceitfully to him, preached religion keeping deceit in mind; But this truthful person did not leave his religion. That’s why I have given it that place, which even big gods get with great difficulty. This will be my supreme devotee ‘Indra’ in Savarni Manvantar. Till then he remained in Sutalok created by Vishwakarma. The people living there experience my grace. That’s why they don’t have to face physical or mental illness, tiredness, sleepiness, defeat from external or internal enemies and any kind of obstacles. After that he addressed Baliko and said – ‘ Maharaj Indrasen! May you be well Now you go with your brothers and friends to that Sutalok, which is desired by even the gods of heaven. Even big Lokpal will not be able to defeat you now, what to talk about others who will disobey your orders, my chakra will break them into pieces. I will protect you, your followers and your enjoyments from all kinds of obstacles. Brave sacrifice! You will see me there always with you. Whatever beauty you get from the association of demons and demons, it will be immediately suppressed and destroyed by my influence; Because religion always emerges. [Shrimad Bhagwat]

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