‘सीडलीट्जका पता चला?’ प्रशियाके सम्राट् फ्रेडरिक महान् वंशी-वादनमें मस्त थे। रातकी कालिमा अपने पूरे उत्कर्षपर थी। वे अपने शिबिरमें बैठकर सोच रहे थे युद्धकी गतिविधि ।
‘आज सेनापति किसी कठिन मोरचेपर उलझ गये हैं। उनका कहना है कि पोमेरनिया (यूरोपका एक जपनद) – के युद्धमें विजय प्राप्त करके ही रहेंगे। वे इस समय नहीं उपस्थित हो सकेंगे, सम्राट् !’ दूतने अभिवादन किया।
‘हमें इस जार्नडार्फ ग्राममें शिबिरमें रहते बहुत दिन हो गये और हमारे रूसी शत्रु अभी रणभूमिमेंडटे हैं; फिर भी सेनापतिने मेरी आज्ञाका उल्लङ्घन किस तरह किया ? मेरी आज्ञा न माननेका अर्थ है। मृत्यु।’ सम्राट्ने वंशी-वादन बंद कर दिया। रात बढ़ती जा रही थी; चारों ओर भयानक नीरवता थी l
‘मुझे सीडलीट्जका सिर चाहिये।’ सम्राट्का इतना कहना था कि चरके हाथसे मसाल नीचे गिर पड़ी; वह काँपने लगा। ‘मेरी आज्ञाके उल्लङ्घनका मूल्य केवल सिर है।’ फ्रेडरिककी आँखें लाल हो गयीं। चर शिबिरके बाहर हो गया। रात साँय-साँय कर रही थी ।युद्ध अपनी चरम सीमापर था। रूसी सैनिक प्रशाके (जर्मनी) सैनिकोंका डटकर सामना कर रहे थे। सेनापति सीडलीट्ज एक क्षणके लिये भी असावधान नहीं थे। दूत आ पहुँचा। सेनापति आश्चर्यचकित हो गये फ्रेडरिककी आज्ञासे ।
‘सम्राट्से कहो कि युद्धके समाप्त होनेपर मैं यह सिर उनकी नंगी तलवारकी प्यासी धारको भेंट कर दूँगा, पर इस समय युद्ध-भूमिमें प्रशाके सम्राट् और प्रजाकी सेवाके लिये मैं इसका उपयोग तो करूँगा ही। मुझे इस पवित्र कार्यसे कोई भी जागतिक शक्ति विमुख नहीं कर सकती।’ सीडलीट्जका स्पष्ट उत्तर था और उन्होंने सेनाको आगे बढ़नेका आदेश दिया।
‘इस विजयका श्रेय तुम्हें है, सीडलीट्ज !’ सम्राट्नेशिबिरसे बाहर आकर सेनापतिका अभिनन्दन किया। ‘आपके चरणोंमें मेरा सिर उपस्थित है सम्राट् ! आपकी नंगी तलवार जिसकी प्रतीक्षा कर रही थी उसे स्वीकार कीजिये।’ सेनापतिने गम्भीरता प्रकट की।
‘इस सिरने असंख्य सिर उन्नत किये हैं; इसने मृत्युको अमरतामें बदल दिया है। इस सिरपर प्रशाकी जनता पुष्प-वृष्टि करेगी।’ फ्रेडरिकने सेनापति सीडलीट्जको गले लगा लिया। दोनोंके रोम-रोम सिहर उठे।
‘मैंने तुमको आज समझा है। तुम रत्न हो, रत्न । तुमने देशके हितके लिये, राष्ट्रके सम्मानरक्षणके लिये मेरी असामयिक आज्ञाके उल्लङ्घनसे जो यश कमाया है वह यूरोपके इतिहासकी एक पवित्र मौलिक घटना हैं। कर्तव्यपरायणता और आज्ञापालनका मर्म निगूढ़ है।’ सम्राट् प्रसन्न होकर वंशी बजाने लगे। चारों ओर मूक संगीतका माधुर्य वातावरणमें परिव्याप्त हो उठा ।
– रा0 श्री0
‘Seidlitz found?’ Emperor Frederick the Great of Prussia was engrossed in playing the dynasty. The blackness of the night was at its full height. They were sitting in their camp thinking about the activities of the war.
‘Today the generals are entangled in a difficult front. They say that Pomerania (one of Europe’s Japnad) – will remain after winning the war. He will not be present at this time, Emperor!’ The messenger greeted.
‘It has been a long time since we camped in this Zorndorf village, and our Russian enemies are still on the battlefield; Still how did the commander disobey my order? It means disobeying me. death.’ The emperor stopped playing Vanshi. The night was progressing; There was an eerie silence all around.
‘I want Seidlitz’s head.’ The emperor had so much to say that the spice fell down from the charke’s hand; He started trembling. ‘The price of my disobedience is only the head.’ Frederick’s eyes turned red. Char got out of the camp. The night was getting evening and evening. The war was at its peak. Russian soldiers were strongly facing the soldiers of Prasache (Germany). Commander Seidlitz was not careless even for a moment. The messenger arrived. The generals were surprised by Frederick’s order.
‘Tell the emperor that after the end of the war, I will present this head to the thirsty bearer of his naked sword, but at this time I will definitely use it for the service of the emperor and the people of Prussia in the battlefield. No worldly power can dissuade me from this holy work.’ Seidlitz had a clear answer and ordered the army to advance.
‘The credit for this victory is on you, Seidlitz!’ The emperor came out of Shibir and greeted the commander. ‘My head is present at your feet, Emperor! Accept what your naked sword was waiting for.’ The commander expressed seriousness.
‘This head has uplifted innumerable heads; It has turned death into immortality. The administrative public will shower flowers on this head. Frederick embraced Commander Seydlitz. Both of them shuddered.
‘I have understood you today. You are a gem, a gem. The fame that you have earned by violating my untimely order for the good of the country, for the protection of the honor of the nation, is a holy fundamental event in the history of Europe. The meaning of dutifulness and obedience is deep.’ The emperor was pleased and started playing flute. The melody of silent music pervaded the atmosphere all around.